उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में सीटों को लेकर सपा और कांग्रेस के बीच आज सीटों का बंटवारा हो सकता है. आज दोनों दलों में चुनावी गंठबंधन के भी हो जाने की उम्मीद है. राज्य विधानसभा के पहले चरण के चुनाव के नामांकन-पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. इस चरण के चुनाव के लिए 24 जनवरी तक नामांकन-पत्र दाखिल किये जा सकेंगे. इस बीच एक दिन अवकाश भी रहेगा. बसपा और भाजपा अपने उम्मीदवारों की सूची पहले ही जारी कर चुकी हैं. लिहाजा सपा और कांग्रेस को अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करने की स्वाभाविक जल्दीबाजी है. चुनाव आयोग से सपा और उसके चुनाव चिह्न की लड़ाई का पटाक्षेप हो चुका है. सपा के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस के तमाम नेता गंठबंधन के पक्ष में शुरू से हैं. अब तक की खबर के मुताबिक आज गंठबंधन पर अंतिम फैसला हो जाने की पूरी संभावना है.
कुछ सीटों को लेकर दोनों दलों को भले ज्यादा माथ-पच्ची करनी पड़े, वरना ज्यादातर सीटों पर सहमति आसानी से बन सकती है. राज्य विधानसभा की 403 सीटें हैं. अखिलेश यादव ने पहले 235 सीटों के उम्मीदवारों की सूची बनायी थी. अब मुलायम सिंह यादव ने 40 उम्मीदवारों के नाम अखिलेश को सौंपे हैं. इनमें कई नाम अखिलेश की सूची वाली विधानसभा सीटों के लिए भी हैं. कांग्रेस 100 सीटाें की मांग कर रही हैं. कुछ छोटे दलों को भी गंठबंधन में शामिल करने की रणनीति है. लिहाजा कुछ सीटें उनके लिए भी रखी जायेंगी.
अब तक की खबर के मुताबिक समाजवादी पार्टी 300 सीटों पर खुद चुनाव लड़ना चाहती है. सपा की ओर से कहा जा रहा है कि कांग्रेस को 80-90 सीटें दी जा सकती हैं. बाकी 13-23 सीटें छोटी पार्टियों को मिल सकती हैं.
सीटों के बंटवारे का फॉमूला चाहे जो भी हो, गंठबंधन तय है. सपा के राम गोपाल यादव इस बात को दुहरा चुके हैं कि कांग्रेस से उनकी पार्टी का चुनावी गंठबंधन तय है. वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने भी कहा है कि दोनों दलों का गठबंधन होना पक्का होगा. उधर कांग्रेस की शीला दीक्षित ने मुख्यमंत्री बनने की दौड़ से अपना नाम पहले ही वापस ले लिया है. कांग्रेस पिछले 27 सालों से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर है और वह अपने बूते कोई बड़ा कारनामा करने की स्थिति में नहीं है. पिछले चुनाव में 355 सीटों पर चुनाव लड़ कर उसने 28 सीटें जीती थीं और उसे 11.63 फीसदी वोट मिले थे. हालांकि तब भी उसे 6 सीटों का फायदा हुआ था और 3.03 फीसदी वोट शेयर उसका बढ़ा था, मगर 403 सीटों वाली राज्य विधानसभा में उसकी यह कामयाबी भी बहुत बड़ी नहीं थी. इस बार भी अकेले दम पर वह बड़ा बदलाव या कामयाबी हासिल करने की स्थिति में नहीं है.
वहीं सपा के लिए बसपा के साथ-साथ भाजपा भी बड़ी चुनौती है. खास कर ब्राह्मण, मुसलिम और पिछड़ा वोट बैंक को लेकर सपा पूरी तरह निश्चिंत नहीं हो सकती. उत्तरप्रदेश के विषय में यह साधारण गणित है कि जो दल या गंटबंधन 30 फीसदी के करीब वोट हासिल कर लेगा, उसका सत्ता पर कब्जा करीब-करीब तय होता है. 2005 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 29.5 फीसदी वोट लाया था और वह सत्ता में आयी थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा 29.13 फीसदी वोट लाया था और सत्ता उसके खाते में आयी थी. भाजपा दोनों विधानसभा चुनावों में करीब 17 फीसदी वोट ला सकी थी, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उसने 42.3 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था. हालांकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के वोट ट्रेंड अलग-अलग होते हैं, लेकिन इसके बावजूद उसके वोट शेयर का 17 से 42.3 फीसदी हो जाना, नोटबंदी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिला व्यापक जनसमर्थन और पिछले दो सालों में बदली राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए सपा बहुत आश्वस्त नहीं हो सकती. ऊपर से सपा में हाल में आये तूफान से उपजा असंतुष्ट गुट और सत्ता में होने से पैदा होने वाली एंटी इनकंवेंसी भी अपना असर डाल सकते हैं.
बहरहाल, कांग्रेस और सपा दोनों का कॉमन एजेंडा भाजपा की बढ़त को रोकना और सत्ता से उसे दूर रखना है. लिहाजा दोनों के लिए चुनावी गंठबंधन बड़ी जरूरत है. अखिलेश को उम्मीद है कि गंठबंधन के तहत चुनाव लड़ा गया, तो 300 सीटें आसानी से जीती जा सकती हैं.