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खो रही है सिलीगुड़ी के भुटिया मार्केट की पहचान
हाथ से बुने पारंपरिक गरम कपड़े नदारद कारखानों में मशीन से बने स्वेटरों की भरमार सिलीगुड़ी. सिलीगुड़ी का ऐतिहासिक भुटिया मार्केट अपना ऐतिहासिक स्वरूप खोते जा रहा है. जाड़े के मौसम में तकरीबन तीन-चार महीने तक स्थानीय हाकिमपाड़ा स्थित सिलीगुड़ी महकमा परिषद के सामने जीटीएस क्लब मैदान में गरम कपड़ों के लिए लगने वाले इस […]
हाथ से बुने पारंपरिक गरम कपड़े नदारद
कारखानों में मशीन से बने स्वेटरों की भरमार
सिलीगुड़ी. सिलीगुड़ी का ऐतिहासिक भुटिया मार्केट अपना ऐतिहासिक स्वरूप खोते जा रहा है. जाड़े के मौसम में तकरीबन तीन-चार महीने तक स्थानीय हाकिमपाड़ा स्थित सिलीगुड़ी महकमा परिषद के सामने जीटीएस क्लब मैदान में गरम कपड़ों के लिए लगने वाले इस अस्थायी मार्केट का इतिहास पचास वर्षों से भी अधिक पुराना है. 40-50 वर्ष पहले भुटिया मार्केट सिलीगुड़ी अस्पताल के सामने से लेकर कोर्ट मोड़ के बीच कचहरी रोड में लगता था. बाद में एक वर्ष के लिए यह मार्केट हाकिमपाड़ा स्थित त्रिलोक मैदान (अब परिवर्तित नाम कंचनजंघा स्टेडियम) में लगा. इसके बाद इसे हाकिमपाड़ा स्थित जीटीएस क्लब मैदान में स्थानांतरित कर दिया गया. तब से प्रतिवर्ष इसी मैदान में तीन-चार महीनों के लिए यह अस्थायी मार्केट सजता आ रहा है.
सिलीगुड़ी के पुराने लोगों से मिली जानकारी के अनुसार, भुटिया मार्केट में पहाड़ से गरम कपड़ों के कारोबारी ही अपनी अस्थायी दुकानें लगाते हैं. इस मार्केट में पहाड़ के दार्जिलिंग, कर्सियांग, कालिम्पोंग के अलावा पड़ोसी राज्य सिक्किम के गंगटोक, नामची, छांगू लेक, नाथुला के अलावा दुर्गम पहाड़ी इलाकों से जाड़े के मौसम पहाड़वासी समतल यानी सिलीगुड़ी या अन्य क्षेत्रों की ओर रुख करते हैं. प्रत्येक वर्ष नवंबर में ही ये पहाड़वासी समतल में आकर अपना अस्थायी बसेरा डाल लेते हैं और फरवरी-मार्च तक यहीं इन्हीं इलाकों में रहते करते हैं.
इस दौरान अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए तीन-चार महीनों तक गरम कपड़ों की अस्थायी दुकानें लगाते हैं. ये दुकान लगाने वाले अधिकांशतः पहाड़ पर रहने वाले भुटिया समुदाय से जुड़े लोग ही हैं. इसलिए जहां ये लोग इस तरह की दुकानें लगाते है वहां इन्हें भुटिया मार्केट नाम दे दिया गया है. इस भुटिया मार्केट की खासियत हाथ से बुने पारंपरिक गरम कपड़ों की है. लेकिन आधुनिकता का रंग अब इस मार्केट पर भी चढ़ने लगा है. अब हाथ से बुने गरम कपड़ों की जगह मशीनों से बने लुधियाना, अमृतसर, दिल्ली के रंग-बिरंगे स्वेटर वगैरह ने ले ली है.
दार्जिलिंग घूमने आये पटना के सैलानियों की एक टीम भुटिया मार्केट आयी हुई थी. उनसे जब बात की गयी, तो टीम के मुखिया व पेशे से सरकारी स्कूल के शिक्षक उपेंद्र मिश्रा ने कहा कि भुटिया मार्केट पर छायी आधुनिकता देखकर हमें मायूस होना पड़ रहा है. भुटिया मार्केट में अब पहले जैसी बात नहीं रही. बच्चे-बुजुर्ग समेत कुल 13 सदस्यों की हमारी टीम है, जो दार्जिलिंग व सिक्किम भ्रमण पर रवाना होंगे. पहाड़ पर इन दिनों बर्फबारी भी हो रही है.
श्री मिश्रा का कहना है कि पहाड़ पर हाड़ कंपाने वाली शीत लहर से बचने के लिए हमने भुटिया मार्केट में हाथ से बुने स्वेटर, कार्डिगन, टोपी, हाथ के मौजे, चादर वगैरह खरीदने का विचार किया था. जो काफी गरम भी होते हैं, लेकिन यहां लुधियाना, अमृतसर, दिल्ली का माल बिक रहा है. ये आधुनिक रंग-बिरंगे स्वेटर तो सभी जगहों पर मिलते हैं. ऐसी भी बात नहीं है कि खरीदार या सैलानी भुटिया मार्केट नहीं आते. आते जरूर हैं, लेकिन हाथ से बुने गरम कपड़े नहीं मिलने से मायूस हो जाते हैं. यहीं वजह है कि अब भुटिया मार्केट में पहले जैसी रौनक नहीं है.
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