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जवानों के खराब खाना, जूता साफ करवाने संबंधी शिकायत पर बैन की नीति उचित नहीं : रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा विशेषज्ञ

!! विश्वत सेन !! देश में इन दिनों जवानों को खराब खाना देने, उनसे अफसरों द्वारा जूता साफ करवाने व अपने कुत्ते को घूमाने का काम करवाने का मुद्दा चर्चा में है. इस मुद्दे पर गृह मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री कार्यालय भी सक्रिय है. गृह मंत्रालय ने बीएसएफ जवान तेज बहादुरकी खराब खाने की शिकायत पर […]

!! विश्वत सेन !!

देश में इन दिनों जवानों को खराब खाना देने, उनसे अफसरों द्वारा जूता साफ करवाने व अपने कुत्ते को घूमाने का काम करवाने का मुद्दा चर्चा में है. इस मुद्दे पर गृह मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री कार्यालय भी सक्रिय है. गृह मंत्रालय ने बीएसएफ जवान तेज बहादुरकी खराब खाने की शिकायत पर कल पीएमओ को भेजी रिपोर्ट में उसे झूठी शिकायत करार दिया. उधर, तेज बहादुर द्वारा साहसपूर्ण कदम उठाये जाने के बाद सेना व अर्द्धसैन्य बलों के कई जवानों ने अपने-अपने ढंग से अपनी शिकायत दर्ज करायी है. आर्मी के लांस लायक यज्ञ प्रताप सिंह ने अपनी शिकायत में कहा कि उनसे अफसर जूता साफ करवाते हैं व कुत्ते घुमवाते हैं. ऐसे में सरकार जागी है और उसने एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया है, जिस पर शिकायत की जा सकती है. सार्वजनिक रूप से व सोशल मीडियाकेमाध्यम से बढ़ती शिकायतों को देखते हुए कल सेना प्रमुख बिपिन रावत ने भी कल कहा कि जवान उन्हें निजी तौर पर शिकायत कर सकते हैं और उनकी शिकायत को गोपनीय रखा जायेगा. रावत ने यह भी कहा कि उनके शिकायत निवारण के तरीके से संतुष्ट नहीं होने परजवान दूसरे ढंग से वे शिकायत कर सकते हैं. यह मुद्दा तब और अहम हो जाता है, जब बिहार के औरंगाबाद में एक सीआइएसएफ जवान ने 12 जनवरी को छुट्टी नहीं मिलने पर अपने चार साथियों की गोली मार कर हत्या कर दी. यह अलग बात है कि उसके बारे में परिवार द्वारा कहा जा रहा है कि वह मानसिक रूप से बीमार है.इसकेबारे में प्रभात खबर डॉटकॉम ने आंतरिक सुरक्षा व रक्षा मामलों के दोजानकारपूर्व सैन्य अधिकारी सी उदय भास्कर व पूर्व आइपीएस आनंद शकर से सेबात की.जानिए क्या है उनकी राय :

अनुशासन का दूसरा नाम सेना, अर्द्धसैनिक बल और राज्य पुलिस बल के जवानों को माना जाता है. अगर अनुशासनहीनता के बाद कोई उसे अपने मूलभूत अधिकार के साथ जोड़कर संघर्ष करता है, तो यह गलत होगा. वहीं, यदि सेना, अर्द्धसैनिक बल अथवा राज्य पुलिस के किसी जवान के अनुशासन में कोई कमी हो, तो बेशक उसे सजा दी जा सकती है, पर यदि वह सोशल मीडिया पर अधिकारियों की कारगुजारी को उजागर करता है और उस पर सख्ती बरती जाती है या फिर सैन्य बल, अर्द्धसैनिक बल, सीमा सुरक्षा बल व राज्य पुलिस बलों के जवानों के सोशल मीडिया और स्मार्टफोन पर रोक लगाने का दिशा-निर्देश जारी किया जाता है, तो फिर इसे कैसे उचित माना जा सकता है? हां,इसे सिर्फ सुरक्षाव गोपनीयता की चुनौतियों के मद्देनजर उचित ठहराया जा सकता है. अगर सरकार या संबंधित बल के अधिकारी जवानों की पारिवारिक गतिविधियों पर रोक लगाते हैं, तो इससे जवानों के अंदर कुंठा व अवसाद और अधिक पैदा होगा. इससे माहौल बिगड़ने का भी खतरा बना रहता है. यह कहना है, सेना और पुलिस के सेवानिवृत्त शीर्ष अधिकारियों का.

बिहार पुलिस के पूर्व महानिदेशक आनंद शंकर ने सीमा सुरक्षा बल के एक जवान तेज बहादुर यादव द्वारा बल में खराब खाना परोसे जाने को लेकर सोशल मीडिया पर जारी वीडियो के सवाल पर कहा कि सोशल मीडिया पर वीडियो के जरिये सीमा सुरक्षा बल के जवान की शिकायत करना गलत नहीं है. कहीं न कहीं अफसरों के कार्यकलापों में कमी तो है, जिससे जवानों को घटिया खाना मिलता है. उन्होंने कहा कि चाहे वह पुलिस हो, सेना हो या फिर अर्द्धसैनिक बल हो, हर जगह अफसरों को खाना मिलने के पहले जवानों को खाना परोसने की परंपरा है.

कहीं न कहीं गड़बड़ तो है

इसके साथ ही, सेना, अर्द्धसैनिक बल और पुलिस में यह भी परंपरा है कि इसके आला अधिकारी हर महीने मेस में जाकर खाने को टेस्ट करते हैं और देखते हैं कि खाना अच्छा बनाया जा रहा है या नहीं. सेना में तो जवान और अफसर को एक साथ एक पांत में बैठकर खाने की परंपरा है. इसके साथ ही, परंपरा यह भी है कि यदि सेना, अर्द्धसैनिक बल और पुलिस में जवानों की शिकायत सुनने के लिए हर महीने अधिकारियों की एक सभा का आयोजन होता है, जहां उसकी शिकायतों को सुनने के बाद उस पर अमल किया जाता है. पूर्व पुलिस महानिदेशक आनंद शंकर ने यह कहा कि यदि अनुशासन, परंपरा और नियमों के बावजूद अर्द्धसैनिक बल का कोई जवान सोशल मीडिया पर शिकायत करता है, तो इसमें दोष जवान का नहींहै बल्कि यह बल की उस टुकड़ी के अधिकारी की कमी है कि उसने जवानों की शिकायतें नहीं सुनीं.

गृह मंत्रालय के निर्देश पर हो सकारात्मक दृष्टिकोण

बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक आनंद शंकर ने कहा कि अर्द्धसैनिक बल या फिर सेना के जवानों का सोशल मीडिया में बात शेयर किये जाने को लेकर गृह मंत्रालय ने यदि कोई दिशा-निर्देश जारी किया है, तो उसे सकारात्मक तरीके से देखना चाहिए. उन्होंने कहा कि चाहे वह कोई सेना का जवान हो, पुलिस का जवान हो या फिर किसी अर्द्धसैनिक बल का ही जवान क्यों न हो, हर जवान देश और समाज हित के लिए अनुशासन से बंधा है. ड्यूटी पर तैनात होने के दौरान परिवार से संपर्क होना बेहद जरूरी है और मेरा मानन है कि सरकार परिवार से बात कराने के लिए कोई ऐसा एप विकसित करे, जो जवानों को उसके परिवार से हर हमेशा संपर्क में रखे. वहीं, जवान यदि परिवार के अलावा किसी सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने मूलभूत अधिकार की तरह करना चाहेगा, तो वह गलत होगा. इससे फिर अनुशासन भंग होगा और फिर यह विधि के विरुद्ध माना जायेगा.

जवानों का परिवार से संपर्क का हो सशक्त और सुलभ साधन

बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक आनंद शंकर ने कहा कि जहां तक जवानों में कुंठा और अवसाद पैदा होने की बात है, तो इसमें दो राय नहीं कि जब वह परिवार और समाज से दूर रहेगा और उसे उसके परिवार से संपर्क करने का कोई जरिया नहीं रहेगा, तो वह अवसाद और कुंठा का शिकार होगा ही. जवानों के मन में इस तरह की भावना को नहीं पनपने देने के लिए सरकार के साथ-साथ सैन्य, अर्द्धसैनिक बल और पुलिस के अधिकारियों को विचार करना होगा. मासिक सभा या मासिक कल्याण सभा में जवानों की शिकायतों को सुनना होगा और उस पर अमल कर उसकी शिकायतों को दूर करना होगा. अनुशासन को सकारात्मक बिंदु से देखना होगा और उसे अपने मूल अधिकार से ऊपर समझना होगा, तभी जवान निर्मल मन से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर पायेंगे.

आज के हालात में सोशल मीडिया या स्मार्टफोन पर बैन लगाना उचित नहीं

वहीं, रक्षा विशेषज्ञकमोडोर उदय भास्कर ने भी प्रभात खबर डॉट काम से बातचीत में इस मुद्दे पर अपनी राय रखी. गृह मंत्रालय द्वारा सोशल मीडिया पर जवानों के पोस्ट डालने से पहले उसे सेंसर करने के निर्देश के सवाल पर सेना के पूर्व अधिकारी सी उदय भास्कर कहते हैं कि आज के माहौल में सोशल मीडिया पर रोक लगाने या उसे सेंसर करने का निर्देश जारी करना उचित नहीं है और ऐसा हो पाना संभव भी नहीं है. उन्होंने कहा कि विकसित देशों ने भी अभी कुछ साल पहले ऐसा करने का प्रयास किया था, लेकिन ऑपरेशनल दृष्टिकोण से ऐसा हो पाना संभव नहीं हुआ, तो फिर उन विकसित देशों की सरकारों को अपना निर्देश वापस लेना पड़ा. वैसे ही भारत में भी सरकार द्वारा सोशल मीडिया और स्मार्टफोन के इस्तेमाल पर रोक लगाना संभव और उचित नहीं है. इससे माहौल और अधिक बिगड़ेगा.

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