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यूपी चुनाव में अखिलेश की छवि के भरोसे कांग्रेस की नैया

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि के भरोसे अपनी नैया पार लगाना चाहती है. उसकी चुनावी रणनीति सपा के आंतरिक झगड़े में फंसी हुई है. लिहाजा चुनाव की तारीखों का एलान हुए करीब एक सप्ताह हो चुका है, मगर पार्टी अब तक यह तय नहीं कर पायी है कि […]

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि के भरोसे अपनी नैया पार लगाना चाहती है. उसकी चुनावी रणनीति सपा के आंतरिक झगड़े में फंसी हुई है. लिहाजा चुनाव की तारीखों का एलान हुए करीब एक सप्ताह हो चुका है, मगर पार्टी अब तक यह तय नहीं कर पायी है कि वह किस सीट से किसे चुनाव लड़ायेगी. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भूमिका कैसी होगी, यह अब तब साफ नहीं हो सका है.
हालांकि पार्टी नेताओं का एक वर्ग यह मानता है कि कांग्रेस को अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए. ऐसे नेताओं की राय है कि भले ही इस चुनाव में कांग्रेस बहुत अच्छे नतीजे न दे पाये, लेकिन पार्टी की संगठनात्मक ताकत को बचाने और दूरगामी लाभ हासिल करने के लिए पार्टी को ऐसा ही करना चाहिए. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी यही राय रखते हैं. वह सभी 403 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की मंशा सार्वजनिक कर चुके हैं. वहीं पार्टी के महासचिव और प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद सहित पार्टी का शीर्ष नेतृत्व गंठबंधन के पक्ष में है.
पार्टी का एक वर्ग यह मान रहा है कि सपा में मुलायम और अखिलेश में से किसी एक को चुुनने की नौबत आती है, तो मुलायम सिंह के साथ जाना ज्यादा सही होगा, क्योंकि जातीय और राजनीतिक समीकरण के तहत उसका परंपरागत वोट बैंक है तथा कांग्रेस के मिल जाने से उसका प्रभाव ज्यादा होगा. वहीं दूसरा वर्ग अखिलेश की विकासवादी और युवा छवि पर ज्यादा भरोसा कर रहा है.
उधर पार्टी के शीर्ष नेता अखिलेश यादव के साथ जाने का संकेत दे रहे हैं. अखिलेश यादव और उनकी पत्नी के साथ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साझा चुनाव प्रचार की बन रही योजना भी इसी संभावना की ओर संकेत कर रही है कि कांग्रेस अखिलेश के भराेसे इस बार के विधानसभा चुनाव की नैया पार उतरना चाहती है, लेकिन सपा का आंतरिक झगड़ा आड़े आ रहा है.
दूसरी ओर, चुनाव लड़ने की मंशा रखने वाले कांग्रेसी नेताओं की बेचैनी बढ़ी हुई है. उनका मानना है कि चुनावी स्टैंड तय करने में हो रही देरी उनके और उनकी पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है. गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है, लेकिन पिछले 27 सालों से वह राज्य की सत्ता से बेदखल है. इस बार के चुनाव से उसे सत्ता में वापसी तो नहीं, लेकिन अपनी राजनीतिक हैसियत को मजबूत कर पाने की बड़ी उम्मीद है. यह उम्मीद भी अखिलेश यादव की छवि पर टिकी है.

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