अभिनेता ,निर्माता और निर्देशक राकेश रोशन अपनी फिल्मों से इंडस्ट्री में काबिल फिल्मकार माने जाते हैं. वह जल्द ही ऋतिक के साथ फिल्म काबिल से टिकट खिड़की पर दस्तक देने वाले हैं. उनकी इस फिल्म और कैरियर पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत
काबिल फिल्म से किस तरह से जुड़ना हुआ
ऋतिक ने एक दिन कहा कि एक लाइन सुनी कहानी की. उसे बहुत अच्छी लगी थी. संजय गुप्ता हम दो साल से काम करने की कोशिश कर रहे हैं, मिलते थे बातचीत होती थी लेकिन कुछ भी ठोस नहीं हो पा रहा था इसी बीच संजय जज्बा में मशरुफ हो गए. उसके बाद उन्होंने ऋतिक को काबिल फिल्म की कहानी सुनायी.
मैंने संजय को कहा कि दो साल से हम साथ में फिल्म बनाने की सोच रहे हैं और तुमने ऋतिक को कहानी सुना दी. उसने कहा कि नहीं नहीं सर अभी यह कहानी मैंने भी सुनी है. मैंने उसे कहानी सुनने के लिए बुलाया लेकिन सुनाने से पहले मैंने उससे कहा कि कहानी दो लाइन में बताना क्योंकि कहानी दो लाइन की ही होनी चाहिए.
दो लाइन में अगर मुझे समझ आ गयी तो ही मैं फिल्म बनाऊंगा. जैसे ही उसने दो लाइन में कहानी को बताया. मैं उठा और हाथ मिलाकर कहा कि हम यह फिल्म बनाएंगे. दो लाइन की कहानी है कि एक अंधा लड़का है एक अंधी लड़की है. दोनों प्यार करते हैं फिर दोनों की शादी हो जाती है. वह अपनी बीवी को कहता है कि मैं तुम्हारे इतने काबिल बनूंगा कि जिंदगी में तुम्हें कभी अंधेरा महसूस नहीं होगा लेकिन कुछ ऐसा उसकी पत्नी के साथ हो जाता है कि वह उसे बचा नहीं पाता है फिर उसके बाद बदले की कहानी शुरु होती है.
अंधा होने का बावजूद वह किस तरह से उन चार लोगों को सजा देता है. ये पार्ट मुझे बहुत अच्छा लगता है कि एक अंधा आदमी जो देख नहीं सकता है. वो उन लोगोें को कैसे पहचानेगा और पहचान भी लेगा तो उन्हें कैसे सजा देगा. इसके बाद कहानी में और काम किया गया. संजय गुप्ता ने कहा कि आप इमोशन में माहिर हैं. इस कहानी में इमोशन जोड दीजिए. मैंने कहा कि कहानी ऐसी है कि अपने आप इसमें इमोशन आएगा. मैं इमोशन में माहिर और वो टेक्नीकल में माहिर है. हमदोनो ने मिलकर एक अलग फिल्म बनाने की कोशिश की है
आपको काम्प्लेक्स किरदार और कहानियां ज़्यादा पसंद आती है इससे पहले आप ह्ऋतिक को कोई मिल गया में स्पेशल चाइल्ड की भूमिका में दिखा चुके हैं और अब काबिल में ह्ऋतिक का किरदार देख नहीं सकता है
ज़िन्दगी की यही बात मुझे पसंद है।जो चीज़ मुझे चुनौती देती है।मुझे वह करना बहुत पसंद है. मुझे याद है मैं दसवीं की परीक्षा दे रहा था।मैं पढ़ने में अच्छा नहीं था. स्कूल भी जाता नहीं था ।जब एग्जाम नज़दीक आने लगा तो मेरे पिता ने कहा कि तुमने तो साल पर पढाई कुछ की नहीं है।फेल होना तुम्हारा तय है।फेल होने से बेहतर है कि तुम एग्जाम ही मत दो लेकिन मैंने कहा कि मैं एग्जाम दूंगा।वह बात मुझे चैलेंज की तरह लगी और मुझे चैलेंज लेना पसंद है।जिस लड़के के पास होने की उम्मीद नहीं थी वह फर्स्ट क्लास में पास हुआ।68 प्रतिशत मेरे नंबर आये थे।मेरी तरह ऋतिक को भी चुनौतियाँ पसंद है।अपनी पहली ही फिल्म में उसने दोहरी भूमिका को निभाया।वह सुपरहीरो के किरदार को उतनी ही विश्वसनीयता से निभा सकता है।जितना गुज़ारिश की भूमिका को
ऋतिक के अलावा क्या कभी कोई और एक्टर को कास्ट करना आपके जेहन में आता है
जब आपके घर में कोई टैलेंटेड होता है और वो आपका बेटा होता है तो फिर अगर आप किसी के बारे में भी सोच नहीं सकते हों।वो गलत लगता है टैलेंट के साथ ।ऋतिक को जब भी मैंने कोई चुनौती दी है ।उसने उसे पूरा किया है।जो भी किरदार लेता है उसी खूबी से निभाता है. वह मेहनत करता है. वही एक्टर हैं जो इतने कम समय में इतने अलग अलग किरदार को निभाया है.
फिल्म मेकिंग में आप लंबे समय से हैं,किसी फिल्म को बनाते हुए आपका थॉट प्रोसेस क्या होता है.
मैं उन्ही एक्टर को लेता है. जो बहुत ज्यादा अनुशासित होते हैं. मैं जब साइन करते हैं तभी बता देता हूं कि मैं फिल्म खुशी के लिए बना रहा हूं इसलिए उसको बनाते हुए मैं किसी तरह का टेंशन नहीं चाहता हूं. अगर सुबह नौ बजे का शिफ्ट है तो आपको नौ बजे मेकअप के साथ तैयार रहना पड़ता है. यह सब बातें कॉट्रेक्ट में लिखी होती है. अगर किसी दिन आपने शूटिंग कैंसिल कर दी.
आपकी तबीयत ठीक नहीं है तो कोई बात नहीं है लेकिन अगर आप सिर्फ अपनी खुशी के लिए शूटिंग कैंसिल कर देते हैं तो आपको उसके लिए अपने पैसे कटवाने पडेंगे. पिक्चर बनाना पिकनिक की तरह होना चाहिए लेकिन उसमे अनुशासन होना बहुत जरुरी है. मैंने इस बात का ख्याल शुरुआत से ही रखा है. वैसे मेरी पूरी शूटिंग यूनिट मेरे परिवार की तरह है. मैं जब कभी बाहर शूटिंग पर जाता हूं. जिस होटल में मैं रुकता हूं. वहीं अपनी पूरी यूनिट को भी रखवाता हूं. मुंबई में भी मैं यूनिट के साथ खाना खाता हूं लंच करता हूं. मेरा वेनिटी वैन नहीं होता है. मुझे यह सब अच्छा लगता है. जब मेरी पूरी यूनिट मेरे साथ है तो मैं क्यों अकेले वैनिटी वैन में छिपकर खाना खाऊं.
क्या जब आप एक्टर थे तब भी आप वक्त के पांबद थे.
हां जब मैं सिर्फ एक्टर था उस वक्त भी मैं वक्त की बहुत कद्र करता था क्योंकि मुझे पता है कि अनुशासन सफलता की पहली सीढ़ी है. अगर आप अनुशासित हैं तो सफलता आपके अगले कदम पर है.
क्या यही वजह थी कि काबिल में आपने कोई स्थापित अभिनेत्री को न चुनकर यामी को मौका दिया.
मैं हमेशा टीम के साथ चलता हूं. सबने मुझे कहा कि लड़की का रोल टफ है इसलिए किसी स्थापित अभिनेत्री की जरुरत होगी. जो अच्छी एक्ट्रेस हो. मुझे लग रहा था कि ऐसी लड़की लेना चाहिए जो अभी अभी उभर रही हो. वह ज्यादा मेहनत से काम करेगी. ऋतिक के सामने काम करेगी तो और ज्यादा मेहनत करेगी. अपनी टीम के कहें अनुसार मैं कई बड़ी बड़ी अभिनेत्रियों के पास काबिल की कहानी को लेकर गया.
मैं उन अभिनेत्रियों का नाम नहीं लेना चाहूंगा लेकिन सच्चाई ये है कि मैं आधे मन से उनके पास जाता था और आधे मन से ही कहानी सुनाता था. जिसके बाद वह मना कर देती तो मैं टीम से कहता कि उसने तो मना कर दिया.
अब क्या. सबने बोला कि अब तो नई को लेना होगा.मैंने यामी के काम को देखा था विक्की डोनर और सनम रे में. मुझे लगा कि यह लड़की सूट करेगी. सुंदर है. नेक्स्ट डोर है, स्वीट है, नेकनीयत है. नई है तो मेहनत भी खूब करेगी. मैंने यामी को बुलाया. वो आॅफिस में आयी और उस दरवाजे से यहां सोफे पर बैठी तभी मैंने तय कर लिया कि वह इस फिल्म में होगी.
एक समय था जब दो सुपरस्टार एक साथ फिल्मों में नजर आते थे. आपकी फिल्म करन अर्जुन में शाहरुख और सलमान साथ नजर आए थे आपको लगता है कि अब वह संभव है कि दो सुपरस्टार एक साथ फिल्मों में नजर आएं. हां संभव है. निर्माता निर्देशक स्ट्रांग होना चाहिए क्योंकि घोड़ा समझ जाता है कि राइडर उपर बैठा है या नहीं. एक सेंकेड में घोडा समझ जाता है कि राइडिंग आती है. दोनों स्टार्स को साथ में बैठकर कहानी सुनायी थी ताकि कोई असुरक्षा की भावना न रहे. आप उसी समय कहिए अगर कोई परेशानी है. उसके बाद मैं एक लाइन नहीं बदलूंगा. एक बार आपने कहानी सुनने के बाद फिल्म को हां कह दिया तो फिर सेट पर आपको अपने डायलॉग के साथ पहुंचना होगा.
नये लोगों को आप क्या सीख देना चाहेंगे जो फिल्म मेकिंग में आना चाहते हैं
जो कामयाब लोग हैं उनसे सीखना चाहिए. मैं अमिताभ से उतना ही क्लोज नहीं हूं. जब भी मैसेज करता हूं . उनका जवाब आता है. मैं अगर शूटिंग कर रहा हूँ और आसपास वह भी शूट कर रहे हैं. मैं उनसे मिलने यह उन्हें देखने भर ही सही जाता ज़रूर हूँ. अमिताभ बच्चन बैठे हैं. एक्टिंग कर रहे हैं. मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है. कोई आदमी कामयाब क्यों है. उसको खुद को सोच के एनलाइज करना होगा. उससे आपको सीखते रहना होगा भले ही वह आपको न सीख रहा हो.
इन दिनों कॉपरेट स्टूडियों लगातार बंद हो रहे हैं लेकिन निर्माता के तौर पर आप अब भी इंडस्ट्री में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्शाए हुए हैं. क्या वजह मानते है. ?
दो चीजों होती है. माइंड में ट्रैफिक कम होनी चाहिए ताकि आप सही चीज सोच सकें. देखिए पांच पिक्चर मैं भी बना सकता हूं. मैं सोचता हूं कि पांच पिक्चर से अच्छा है कि मैं एक फिल्म अच्छी बनाऊं. उससे नाम भी होगा और शोहरत भी कमाएंगे और पैसे भी आएंगे. कॉपरेट से जुड़ गया हूं तो मतलब उन्होंने पैसे दे दिए तो मुझे फिल्म बनानी ही है. मुझसे ऐसे प्रेशर में काम नहीं होता है. मैं अपनी मन का राजा हूं. जब पिक्चर बनानी है तब बनानी है. मैं एक पिक्चर तीन साल में बनाता हूं और कॉरपोरेट हाउस एक साल में तीन से चार फिल्में बनाती है.
आप चार फिल्में बनाएंगे तो काम बेस्ट तो होने से रहा. ऐसे में बंद ही होगें स्टूडियो.
प्रोड्यूसर क्या होता है संगीत की जानकारी होनी चाहिए स्टोरी, स्क्रीनप्ले डायलॉग, एडिटिंग, संगीत , कैमरा वर्क सबकुछ आपको पता होना चाहिए. आपको किसी चीज का नॉलेज नहीं है सिर्फ पैसें हैं तो आप निर्माता नहीं बन जाएंगे. हॉलीवुड में भी कॉपरेटस हैं. उनके बोर्ड़ में जब बैठता हूं तो उनके डायरेक्टर में से फिल्म से जुड़े लोग होते हैं जो स्क्रिप्ट राइटर होता है. कैमरामैन होता है. जो पिक्चरें बना चुके हैं. उसे फिल्म मेकिंग में महारत है. इंडस्ट्री के बारे में जानते हैं. यहां तो स्कूल से पास हुए और रख देते हैं कॉरपोरेट में हम फिल्मेकर्स के साथ डील करने के लिए जिनको फिल्ममेंकिग की एबीसीड़ी भी नहीं पता है. ऐसे लोग काम करेंगे तो कॉरपोरेट स्टूडियों बंद ही होंगे.
आखिर में इन दिनों रईस के साथ काबिल की बॉक्स आॅफिस भिंडत पर काफी कुछ कहा जा रहा है आपने कहा कि हॉलीवुड में कभी बैटमैन और सुपरमैन की फिल्मों के बीच क्लैश नहीं होता है लेकिन हमारी इंडस्ट्री में क्लैश अब आम बात हो गयी है.
हॉलीवुड वाले इस दौर से गुजर चुके हैं और सीख भी ले चुके हैं कि इगो को अपने पॉकेट में रखना चाहिए. हमारे क्लैसेस इगो की वजह से होते हैं और बाद में पछताते भी हैं. वक्त आएगा जब हमारे यहां भी लोग समझेंगे लेकिन नुकसान खाकर. जब मैंने फिल्म एनाऊंस की थी. मेरी ये फिल्म अगस्त के अंत तक पूरी हो चुकी थी. मेरे पास चार महीने थे. नवंबर में सोच रहा था कि रिलीज करूं, लेकिन देखा सभी के डेट्स पहले से तय है.
मैं किसी दूसरी फिल्म के साथ क्लैश नहीं करना चाहता था. वैसे भी जो भी फिल्में नवंबर दिसंबर में रिलीज हुई. वह पहले से ही तय थी. मैं अपनी फिल्म को क्यों बीच में लेकर आऊं. सबलोग मेहनत करते है. जनवरी मैंने तय किया था क्योंकि उस वक्त कोई फिल्म नहीं थी. मैंने उनको समझाया. छोटे हैं मेरे. दो हफ्ते पहले आ जाइए या दो हफ्ते बाद में लेकिन वह नहीं मान रहे. क्या कर सकते हैं.