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संजय ने बनाये 250 शास्त्रीय संगीत साधक

मुजफ्फरपुर : संगीत की साधना आसान नहीं है. लेकिन इससे भी मुश्किल शिष्यों को साधनारत करना है. कई संगीत साधक शिष्यों को संगीत की परंपरा दे रहे हैं. लेकिन शहर में ऐसे भी साधक हैं, जिन्होंने खुद को संगीत के प्रति समर्पित किया ही, शिष्यों को भी संगीत की ऊंचाई तक पहुंचाया. ऐसे ही साधक […]

मुजफ्फरपुर : संगीत की साधना आसान नहीं है. लेकिन इससे भी मुश्किल शिष्यों को साधनारत करना है. कई संगीत साधक शिष्यों को संगीत की परंपरा दे रहे हैं. लेकिन शहर में ऐसे भी साधक हैं, जिन्होंने खुद को संगीत के प्रति समर्पित किया ही, शिष्यों को भी संगीत की ऊंचाई तक पहुंचाया. ऐसे ही साधक डॉ संजय कुमार ने शास्त्रीय संगीत के सैकड़ों शिष्य तैयार किये. इनके संगीत शिक्षण का ही असर रहा कि इनके शिष्य दीपक ने गैंग ऑफ वासेपुर फिल्म में दो गाने गाकर अपनी पहचान बना ली. इनके कई शिष्य फिल्मों में संगीत निर्देशन कर रहे हैं. डाॅ संजय कुमार ने भी हिंदी फिल्म पलक तक में संगीत दिया है. हालांकि इन्हें संतुष्टि संगीत प्रशिक्षण से ही मिलती है.

कोल्हापुर से ठुमरी सीखी तो दिया प्रशिक्षण : डॉ संजय कुमार शहर में संगीत प्रशिक्षण के बाद ठुमरी व दादरा में विशेष पकड़ के लिए कोल्हापुर गये. यहां दो वर्षों तक इन्होंने कल्पना शृंगार से प्रशिक्षण लिया. शहर लौटने के बाद इन्होंने संगीत का प्रशिक्षण देना शुरू किया. पिछले 36 वर्षों से ये लगातार छात्र-छात्राओं को संगीत का गुर सिखा कर उन्हें विभिन्न मुकाम तक पहुंचा रहे हैं. इनके शिष्यों में रवीजा वत्स, कविता कुमारी, अनुपमा कुमारी व मुकेश कुमार सहित 250 शिष्यों की लंबी शृंखला है. सबसे बड़ी बात यह है कि डॉ संजय आर्थक रूप से कमजोर छात्रों को निशुल्क शिक्षा देते हैं. शर्त सिर्फ संगीत के अनुशासन का पालन करना होता है.
शहर की संगीत परंपरा को दी ऊंचाई : डॉ संजय कुमार संजू ने शहर की संगीत परंपरा को ऊंचाई दी है. संगीत शिक्षण की शुरुआत इन्होंने 1980 से शुरू की. शहर के मशहूर शास्त्रीय संगीतज्ञ चंद्रशेखर सिंह, रामसिंह, पं.श्यामलाल मिश्र, पं.सत्यनारायण पाठक व डॉ अरविंद कुमार से संगीत का प्रशिक्षण लिया. शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को आत्मसात करने के बाद इन्होंने संगीत प्रशिक्षण का क्षेत्र चुना. डॉ संजय कहते हैं कि संगीत सीखने व साधना करने में अंतर है.
मेरे दादा स्व. भीष्म प्रसाद सिंह सितारवादक थे, पिता स्व.विनोद कुमार सिंह तबला में सिद्धहस्त थे. घर में संगीत का माहौल मिला तो में रुचि जगी. लेकिन संगीत सीखना व साधना करना दो चीजें हैं. संगीत तभी निखरता है, जब साधना की जाती है. मेरी कोशिश रहती है कि छात्रों में साधना की ललक पैदा की जाये, ताकि वे एक दिन शहर का नाम ऊंचा कर सके.
गैंग ऑफ वासेपुर फिल्म से संजय के शिष्य दीपक ने बनायी पहचान

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