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जन-आंदोलन है शराबबंदी अभियान

बिहार में नीतीश सरकार द्वारा लागू की गयी पूर्ण शराबबंदी की घोषणा 2016 में देशभर में बड़ी चर्चा का विषय बनी. इस निर्णय ने विभिन्न राज्य सरकारों को शराब की खरीद-बिक्री और पीने-पिलाने के बारे में कड़े नियम बनाने की प्रेरणा दी. कुछ समय पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने राजमार्गों के किनारे शराब बेचने पर पूर्ण […]

बिहार में नीतीश सरकार द्वारा लागू की गयी पूर्ण शराबबंदी की घोषणा 2016 में देशभर में बड़ी चर्चा का विषय बनी. इस निर्णय ने विभिन्न राज्य सरकारों को शराब की खरीद-बिक्री और पीने-पिलाने के बारे में कड़े नियम बनाने की प्रेरणा दी. कुछ समय पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने राजमार्गों के किनारे शराब बेचने पर पूर्ण पाबंदी लगा दी है. शराबबंदी और इसके सफल कार्यान्वयन पर वर्षांत शृंखला की यह प्रस्तुति…
सुरेंद्र किशोर
वरिष्ठ पत्रकार
बिहार के लिए 9 जुलाई, 2015 का दिन ऐतिहासिक साबित हुआ. उस दिन पटना की एक सभा में जीविका से जुड़ी महिलाओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सार्वजनिक रूप से यह मांग की थी कि राज्य में शराबबंदी लागू की जाए. नीतीश कुमार ने इस मांग पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए तत्काल उसी मंच से यह आश्वासन दे दिया कि यदि अगले चुनाव में जनता ने जनादेश दिया, तो इसे अवश्य लागू करेंगे.
नवंबर, 2015 में नीतीश कुमार को एक बार फिर जनादेश मिला. उनकी सरकार ने एक अप्रैल, 2016 से इसे लागू करने का फैसला कर लिया. वह शराबबंदी का पहला चरण था. फिर 5 अप्रैल, 2016 को राज्य कैबिनेट की बैठक हुई. इस बैठक के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद मीडिया को संबोधित किया. बैठक के फैसले का विवरण देते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने पूर्ण शराबबंदी का ऐतिहासिक फैसला किया है. इस फैसले के तहत राज्य सरकार ने राज्य में देशी, मसालेदार और विदेशी शराब के उत्पादन, बिक्री और पीने पर पूरी तरह रोक लगा दी है.
इससे पहले राज्य सरकार ने एक अप्रैल से सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में शराबबंदी की थी. वैसे तो 9 जुलाई, 2015 की घटना को ताजा सरकारी निर्णय का श्रेय मिलता है, पर हाल में मुख्यमंत्री ने इस सिलसिले में एक अन्य बात भी बतायी. उन्होंने कहा कि जब वे पटना के मुसल्लहपुर हाट के एक निजी छात्रावास में रहते थे, उन्हीं दिनों नशाबंदी की जरूरत तीव्रता से महसूस की थी. उन दिनों लोगों को वहां नशा करके हंगामा करते वे देखा करते थे.
वैसे तो अनेक राजनीतिक तथा गैर-राजनीतिक लोग यह बात महसूस करते रहे हैं कि अत्यधिक शराबखोरी से न सिर्फ सामाजिक व पारिवारिक जीवन बरबाद हो रहे हैं, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है. कार्यक्षमता घट रही है. अपराध बढ़ रहे हैं और सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है.
पर 1977 के बाद कभी शासन ने नशाखोरी के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया. सन 1977 में केंद्र की तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार ने शराबबंदी की प्रक्रिया शुरू की थी. पहली किस्त में शराब की एक-चौथाई दुकानें तब बंद करायी गयी थीं. हालांकि राजनीतिक अस्थिरता के उस दौर में वह काम आगे नहीं बढ़ सका यानी सामाजिक सुधार का यह काम रुक गया.
अत्यधिक नशाखोरी का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि गांधी युग का असर समय के साथ धीरे-धीरे कम होने लगा. प्रभुत्वशाली वर्ग में अधिक-से-अधिक शराबखोरी का चलन हो गया. हाल के वर्षों में तो शराब के अनेक व्यापारी भी विधायिकाओं के सदस्य बनने लगे. मनमोहन सरकार के कार्यकाल में तो हद हो गयी. एक संसदीय समिति ने केंद्र सरकार से यह सिफारिश कर दी थी कि विमानों के घरेलू उड़ानों में भी शराब परोसने की अनुमति दी जाए. यह सिर्फ संयोग नहीं था कि विजय माल्या भी उस समिति के एक सदस्य थे.
इस बीच हाल के वर्षों में केरल सरकार के बाद नीतीश सरकार ने शराबबंदी की दिशा में ठोस कदम उठाया. ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि बिहार के गांवों से यह खबरें आने लगीं थीं कि देशी-विदेशी शराब पीकर कम ही उम्र में युवक मरने लगे हैं. दरअसल, अपने देश में शराब सेवन में आम तौर पर मात्रा का संयम नहीं रहता. इसका सर्वाधिक दुष्परिणाम पारिवारिक जीवन पर पड़ रहा था. बेलगाम शराबखोरी पुलिस व आबकारी अफसरों के लिए लाभकारी धंधा बन चुका था. अब बिहार में स्थिति बदल रही है. सामाजिक सुधार जैसी स्थिति है. हालांकि, अवैध ढंग से शराबखोरी की शिकायतें अब भी आ रही हैं, लेकिन उन लोगों पर कड़ी कार्रवाई भी हो रही है. पर साथ-साथ शराब छोड़ रहे परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधर रही है.
पहले की अपेक्षा अब अधिक पारिवारिक शांति है. मूर्ति विसर्जन तथा बारात पार्टी के साथ चलनेवाले उदंड युवक पहले शराब के नशे में आये दिन सड़कों पर अशोभनीय दृश्य उपस्थित करते थे. अब वैसे नजारे बिहार में शायद ही नजर आते हैं.
शराबबंदी से इस तरह कई अन्य लाभ भी नजर आ रहे हैं. हां, शराबबंदी कानून के कड़ा होने की शिकायतें जरूर मिलती रहती हैं. पुलिस द्वारा उसका जहां-तहां दुरुपयोग भी हो रहा है. नीतीश कुमार ने कानून में सुधार के लिए नेताओं व सामान्य लोगों से सुझाव मांगे हैं. हालांकि, उन्होंने गत माह जोर देकर कहा है कि किसी भी हालत में बिहार उत्पाद संशोधन कानून, 2016 को समाप्त नहीं किया जायेगा. उन्होंने सलाह दी है कि पूरे देश में शराबबंदी लागू की जानी चाहिए. अभी कुछ ही राज्यों में है.
संभवतः अगले लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार शराबबंदी को चुनावी मुद्दा बना सकते हैं. नीतीश ने कहा है कि बिहार में सफलतापूर्वक शराबबंदी लागू होने पर जनांदोलन के रूप में पूरे देश में इसकी मांग होगी. तब वह देश के मतदाताओं को यह आश्वासन देंगे कि केंद्र में उनकी पार्टी सत्ता में आयेगी, तो शराबबंदी लागू करेगी.
बिहार का अनुभव बताता है कि पूरे देश में शराबबंदी लागू होने से ही बिहार में शराबबंदी कानून को अक्षरशः लागू करने में सुविधा होगा. याद रहे कि बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद पड़ोसी राज्यों के बिहार से सटे इलाकों में शराब की दुकानों की संख्या काफी बढ़ गयी है.
बिहार में शराबबंदी को लागू किये आठ महीने से अधिक हो गये. राज्य सरकार के इस फैसले को उस समय मजबूती मिली, जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में सभी नेशनल हाइवे और स्टेट हाइवे पर चल रही शराब की दुकानों को बंद करने का आदेश दिया. सरकार ने शराबबंदी को कड़ाई से लागू करने के लिए ठोस कदम उठाये हैं. दो अक्तूबर, 2016 से इसके लिए कड़े कानून बनाये गये हैं. किसी भी घर में शराब पकड़ी गयी, तो सभी वयस्क सदस्यों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जायेगा. कानून ऐसे बने हैं कि कोई सरकारी आदमी किसी को जबरन फंसाने की भी हिम्मत नहीं कर पायेगा. सरकार ने अधिकारियों पर भी जुर्माना और दंड का प्रावधान किया गया है.
अभियान का दूसरा चरण
शराबबंदी का दूसरे चरण का अभियान 21 जनवरी से शुरू होगा. 21 जनवरी को शराबबंदी और नशाबंदी के पक्ष में दुनिया का सबसे बड़ी मानव शृंखला बनायी जायेगी. इसमें दो करोड़ लोग शामिल होंगे. यह अभियान 21 जनवरी, 2017 से 22 मार्च, 2017 तक चलेगा.

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