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कहीं दवा नहीं, तो किसी जगह डॉक्टर का ही पता नहीं

रांची: नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के तहत राज्य के चार जिलों में चल रहे मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति खराब है. वित्त वर्ष 2010-11 में जमशेदपुर, दुमका, पलामू व गुमला में चल रहे इन केंद्रों में छह वर्ष बाद भी पूरी व्यवस्था नहीं हो पायी है. गुमला में तो सेंटर के शुरू होते ही वहां […]

रांची: नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के तहत राज्य के चार जिलों में चल रहे मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति खराब है. वित्त वर्ष 2010-11 में जमशेदपुर, दुमका, पलामू व गुमला में चल रहे इन केंद्रों में छह वर्ष बाद भी पूरी व्यवस्था नहीं हो पायी है. गुमला में तो सेंटर के शुरू होते ही वहां के मनोचिकित्सक ने नौकरी छोड़ दी थी. अन्य तीन जिलों में चिकित्सक तो हैं, पर सुविधाओं की कमी है. सेंटर पर आनेवाले मरीज का सही इलाज नहीं हो पाता. नियमत: इन केंद्रों पर मरीजों को भरती करने के साथ-साथ बाहर रेफर करने के लिए एंबुलेंस की सुविधा रहनी थी, पर हालत यह है कि कई जगह पर लेटने की भी जगह नहीं है.
दवा भी बाहर से खरीदनी पड़ती है. दुमका स्थित स्वास्थ्य केंद्र में एक साल से दवा नहीं है, तो गुमला में भी पिछले वर्ष की दवा से ही काम चलाया जा रहा है. गुमला में हर हफ्ते बुधवार को रिनपास, रांची से एक मनोचिकित्सक आते हैं. अन्य दिन यहां के मरीज स्थानीय व्यवस्था के भरोसे रहते हैं. कुछ ऐसी ही स्थिति जमशेदपुर व पलामू की भी है. जानकारी के अनुसार चालू वित्त वर्ष में अन्य आठ जिलों में भी ऐसे केंद्र शुरू करने हैं, पर पहले से चल रहे चार केंद्रों की स्थिति को देखते हुए इस पर संशय है.

दूसरी ओर नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के स्टेट को-अॉर्डिनेटर डॉ आरपी गुप्ता इस स्थिति के लिए हालात को दोषी ठहराते हैं. पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि न आदमी हैं और न ही दवा, फिर कैसे चले सेंटर. पर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी निराश नहीं हैं. उन्होंने कहा कि जल्द ही सब ठीक हो जायेगा.

केस स्टडी
सुविधा नहीं है : डॉ महतो
दुमका के मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में एक साल से दवा नहीं है. मरीज बाजार से दवा खरीदते हैं. केंद्र में हर दिन 20 से 25 लोग पहुंचते हैं. केंद्र में पदस्थापित मनोचिकित्सक डॉ विनोद कुमार महतो बताते हैं कि केवल एक कमरे में ही केंद्र सिमट हुआ है. इस वजह से आज तक यहां आउटडोर सेवा ही शुरू नहीं हो सकी. मरीजों को भरती नहीं कर पाते.
कैसे शुरू हुआ था केंद्र
वित्त वर्ष 2010-11 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू यह योजना रिनपास, रांची के माध्यम से संचालित होती थी. वित्त वर्ष 2014-15 में इसे नेशनल हेल्थ मिशन के तहत लाया गया, लेकिन केंद्र से मिलनेवाला फंड रिनपास को ही जाता रहा. चालू वित्त वर्ष में फंड जिला को जाने लगा है. जिलों में केंद्र शुरू करने के पीछे केंद्र सरकार की यह धारणा थी कि गांव के मरीजों को गांव में ही सुविधा मिल जाये. राज्य के गिने-चुने बड़े अस्पतालों में सामान्य मानसिक रोगियों की भीड़ नहीं लगे.
कहां-कहां शुरू होना है
वर्ष 2016 में ऐसे केंद्र धनबाद, खूंटी, कोडरमा, लोहरदगा, रामगढ़, साहेबगंज, सरायकेला व सिमडेगा में शुरू करने की योजना है.
स्वास्थ्य मंत्री से सीधी बात
सवाल : क्या आपको पता है कि जिलों में चलनेवाले सेंटरों की स्थिति ठीक नहीं?
जवाब : जी पता है, पर अब सब ठीक हो जायेगा.
सवाल : कब तक ठीक होगा?
जवाब : दो माह के अंदर सब ठीक हो जायेगा. पूरी प्रक्रिया तेजी से जारी है. कहीं कोई दिक्कत नहीं होगी.
सवाल : अन्य आठ जिलों में इस वित्त वर्ष खुल पायेगा केंद्र?
जवाब : सब कुछ होगा. जो दिक्कत थी, वो दूर हो चुकी है. आप निश्चिंत रहें. सभी सेंटरों के साथ-साथ राज्य के सभी अस्पतालों की स्थिति भी बेहतर होती जा रही है.
बोले स्टेट को-अॉर्डिनेटर
सवाल : क्या आपको पता है कि जिलों में चलनेवाले सेंटरों की स्थिति ठीक नहीं?
जवाब : पता है, जब कर्मचारी ही नहीं होगा तो कैसे चलेगा.
सवाल : क्यों आदमी नहीं है?
जवाब : सब सरकार स्तर से होना है. प्रपोजल भेजा गया है.
सवाल : अन्य आठ जिलों में कब शुरू होगा?
जवाब : जब तक मैनपावर नहीं होगा, कुछ नहीं होगा. हर चीज में दिक्कत है. दवा नहीं, साधन नहीं. सब कुछ संबंधित लोगों को बता दिया गया है. जब सब सुविधा होगी, तभी कुछ होगा.

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