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…भाई साहब, काम तो करने दीजिए

गुहार. डॉक्टर बाबू ! हमर मरीज बड़ा सिरियस छैय, जल्दी देखल जाय पूर्णिया : सदर अस्पताल का आपातकालीन कक्ष मरीजों का लाइफ लाइन माना जाता है. यहां पहुंचने वाले मरीजों के जीवन व मृत्यु में बहुत ही कम फासला रहता है. डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों की तत्पतरता से किसी की जान बच जाती है तो […]

गुहार. डॉक्टर बाबू ! हमर मरीज बड़ा सिरियस छैय, जल्दी देखल जाय

पूर्णिया : सदर अस्पताल का आपातकालीन कक्ष मरीजों का लाइफ लाइन माना जाता है. यहां पहुंचने वाले मरीजों के जीवन व मृत्यु में बहुत ही कम फासला रहता है. डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों की तत्पतरता से किसी की जान बच जाती है तो वह तुरंत मरीजों के मसीहा बन जाते हैं. लेकिन जरा सी चूक उसे यमराज भी बना देती है. जो यदा-कदा मरीजों के परिजनों का आक्रोश हंगामा व तोड़फोड़ की शक्ल में सामने आती है. ऐसा क्यों और कौन सी परिस्थिति में होती है,इसका जायजा शनिवार के दोपहर प्रभात खबर की टीम ने इसका जायजा लिया.
परिजनों की भीड़ भी एक समस्या : एक-एक गंभीर मरीजों के साथ लगभग आधा दर्जन से भी अधिक लोग आपातकालीन कक्ष में घुस कर अफरा-तफरी मचाये हुए थे. आपातकालीन कक्ष के सुरक्षा में लगे होम गार्ड के जवान भी भीड़ को बाहर निकालने में विफल हो रहे थे. तभी अस्पताल प्रबंधक मैडम पहुंची और परिजनों से बाहर निकलने की अपील की. इस अपील का असर बस इतना हुआ कि अंदर का भीड़ बरामदे पर आकर ठहर गया. इस बीच सूई -टांका कर रहे पारा मेडिकल कर्मी परिजनों पर झल्ला उठे,कहा भाई साब काम तो करने दीजिए. लेकिन परिजनों ने उसकी एक न सुनी. एक कर्मी ने बताया कि यदि परिजनों की भीड़ हमें तंग नहीं करे तो हम सहजता से जल्दी बाजी में काम निबटा लेंगे.
स्ट्रेचर व टेबल नहीं था खाली डाॅक्टर की बेचारगी भी थी देखने लायक
सदर अस्पताल का आपातकालीन कक्ष. समय दोपहर के 12. 15 बज रहे थे. कक्ष के आगे मरीजों के तीन चार वाहन लगे थे. हालात ऐसे बन गये थे कि न स्ट्रेचर खाली था और न ही ट्रीटमेंट टेबल. मरीजों को टेबल व स्ट्रेचर के लिए इंतजार करना पड़ा. आठ-आठ मरीज एक साथ कक्ष के सामने टेबल व स्ट्रेचर छेके हुए थे. वहां तैनात डॉक्टर की बेचारगी भी देखने लायक थी. डॉक्टर साहब मरीज को देख कर चैंबर में घुसे ही थी. एक महिला परिजन रोते हुए डॉक्टर से गुहार लगाते हुए बोली‘ डॉक्टर साहेब हमर मरीज के ठंडा मार देलैय छैय,बहुत सिरियस छैय. जल्दी देखल जाय’. पूर्व में देखे गये मरीजों को दवा भी नहीं लिख पाये थे. महिला की गुहार लगाने पर दौड़े चले गये. यह सिलसिला दिन भर चलता रहा. एक जानकार ने बताया कि यहां हर हमेशा दो डॉक्टरों की तैनाती होनी चाहिए. लेकिन एक ही डॉक्टर से काम लेने के कारण यह स्थिति बनी रहती है.
परिजन न करें डिस्टर्व तो दे सकते हैं बेहतर सेवा
डॉक्टरों की कमी के कारण समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. हर प्रकार की छोटी-मोटी परेशानियों को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है. परिजन हमें डिस्टर्व नहीं करें, तो हम बेहतर सेवा देने में सक्षम हैं.
डॉ एम एम वसीम,सिविल सर्जन,पूर्णिया

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