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कॉरपोरेट विदेश मंत्री क्यों जरूरी

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक एक्सॉन मोबिल के सीइओ रेक्स टिलरसन में कुछ तो ऐसी खूबियां हैं, जिनकी वजह से ट्रंप ने उन्हें विदेश मंत्री बनने लायक समझा. टिलरसन के नाम से नाइत्तेफाक रखनेवाले आपत्ति कर रहे हैं कि जिसका कभी कूटनीति से वास्ता नहीं रहा, जिसने राजनीति के गलियारों को नहीं देखा, […]

पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
एक्सॉन मोबिल के सीइओ रेक्स टिलरसन में कुछ तो ऐसी खूबियां हैं, जिनकी वजह से ट्रंप ने उन्हें विदेश मंत्री बनने लायक समझा. टिलरसन के नाम से नाइत्तेफाक रखनेवाले आपत्ति कर रहे हैं कि जिसका कभी कूटनीति से वास्ता नहीं रहा, जिसने राजनीति के गलियारों को नहीं देखा, ऐसे व्यक्ति को इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी क्यों दी जानी चाहिए? ऐसा नहीं कि ट्रंप ने नये विदेश मंत्री का नाम दे दिया और अमेरिका ने उसे स्वीकार कर लिया. टिलरसन के नाम की पुष्टि पहले अमेरिकी सीनेट की ‘फॉरेन रिलेशंस कमेटी’ करेगी, उसके बाद सीनेट की बैठक में उस पर वोटिंग होनी है. फॉरेन रिलेशंस कमेटी में 19 सदस्य हैं, जिसमें से टिलरसन के पक्ष में दस सदस्यों का मत जरूरी है. इस कमेटी के चेयरमैन बॉब कुर्कर स्वयं विदेश मंत्री पद के दावेदार थे.
अमेरिकी संसद का ऊपरी सदन ‘सीनेट’ कितना असरदार है, उसका अंदाजा ऐसी नियुक्तियाें से ही लगता है. 100 सदस्यों वाली सीनेट में 54 सीनेटर रिपब्लिकन के और 44 विपक्षी पार्टी डेमोक्रेट के हैं.
दो सीटें निर्दलीय सीनेटर संभाल रहे हैं. राष्ट्रपति ओबामा की हालत यह थी कि सुप्रीम कोर्ट के जज की नियुक्ति के लिए उन्होंने जस्टिस मेरिक गारलैंड के नाम की अनुशंसा की थी, उसे सीनेट ने निरस्त कर दिया. कम-से-कम सदन में बिना दांत वाले राष्ट्रपति की स्थिति ट्रंप की नहीं रहेगी. ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी के सभी 54 सीनेटरों को आईने में उतारने का काम शुरू कर चुके हैं. लेकिन, सीनेट के बाहर विपक्षी डेमोक्रेट इस आरोप की पुष्टि में लगे हैं कि अमेरिकी राजनीति का रिमोट कंट्रोल पुतिन के हाथों में जा रहा है.
रेक्स टिलरसन पुतिन के करीबी लोगों में से हैं, इसके लिए किसी ठोस सुबूत की आवश्यकता नहीं रह गयी है. बोरिस येल्तसिन जब रूस के प्रधानमंत्री थे, रेक्स टिलरसन उनके भी पसंद के लोगों में से रहे हैं. रूसी तेल कंपनी ’रोजनेफ्ट’ के चेयरमैन इगोर सेचिन 2012 तक उप प्रधानमंत्री रह चुके हैं. पुतिन के बाद इगोर सेचिन रूस की सबसे ताकतवर हस्ती माने जाते हैं. उनसे मित्रता के कारण टिलरसन की कंपनी को आर्कटिक के ‘केरा सी ऑयल फील्ड’ में तेल दोहन का काम मिला था.
टिलरसन को 2013 में पुतिन ने ‘आॅर्डर ऑफ फ्रेंडशिप अवाॅर्ड’ से नवाजा था. यह वही साल था, जब यूक्रेन के सवाल पर अमेरिका से पुतिन की तनातनी चल रही थी. 2014 में यूक्रेन को लेकर प्रतिबंध का दौर चला, तो अमेरिकी, यूरोपीय कंपनियां क्रेमलिन की काली सूची में आ चुकी थीं. मगर, टिलरसन जिस एक्सॉन मोबिल के सीइओ थे, उसका बाल भी बांका नहीं हुआ. एक्सॉन मोबिल को एक अरब डॉलर के नुकसान से टिलरसन बचा ले गये. टिलरसन 2006 से एक्सॉन मोबिल के सीइओ हैं. डाटा प्रदाता कंपनी ‘इक्विलर’ के अनुसार, ‘दस साल में टिलरसन ने इस कंपनी को चौबीस अरब डॉलर का फायदा पहुंचाया है.’
स्टीवेन कूल्स की किताब, ‘प्राइवेट एम्पायरः एक्सॉन मोबिल एंड अमेरिकन पावर’ में इसकी तफसील है कि कैसे टिलरसन की निजी नेटवर्किंग पचास से अधिक देशों में है, जिस कारण दुनिया के पांच दिग्गज सीइओ में उनका नाम आता है. टिलरसन चीन से लेकर मध्यपूर्व के उन शासकों के संपर्क में रहे हैं, जो दुनियाभर में ऊर्जा कूटनीति को आगे बढ़ाते रहे हैं. 2007 में टिलरसन ने न्यूयाॅर्क स्थित ‘काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस’ की सभा में कहा था कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कूटनीति के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा. 2009 में टिलरसन ने कहा था कि ‘कार्बन टैक्स’ लगाना जरूरी है. 2013 में ग्लोबल सिक्योरिटी फोरम की संगोष्ठी में टिलरसन ने प्रशांत-पारीय पार्टनरशिप की वकालत की थी.
टिलरसन के सुझाव पर ‘ट्रांस पैसेफिक’ के ग्यारह देशों ने व्यापार में आ रही बाधाओं के निराकरण और मुक्त बाजार व्यवस्था पर काम करना शुरू किया था.
टिलरसन के नाम की अनुशंसा पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलिजा राइस, जेम्स बेकर और अमेरिका के पूर्व प्रतिरक्षा मंत्री बॉब गेट्स ने की थी. विदेश मंत्री बनने की रेस में 2012 में रिपल्किन पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार मिट रोमनी, रिपब्लिकन सीनेटर व ‘फॉरेन रिलेशंस कमेटी’ के अध्यक्ष बॉब कुर्कर, न्यूयाॅर्क के मेयर रूडी जिउलियानी, पूर्व जनरल डेविड पेटरास, यूएन में अमेरिका के दूत रहे जॉन बोल्टन शामिल थे.
टिलरसन खुद धन कुबेर हैं, इसलिए अनुमान है कि ट्रंप कैबिनेट में जानेवाले वाल स्ट्रीट के लोगों से उनकी गहरी छनेगी. अमेरिकी कूटनीति का अब काॅरपोरेट चेहरा होगा, उपसंहार इसी से करना चाहिए.
नाटो आधारित अमेरिकी विदेश नीति के दिन लदेंगे, जिसकी वजह से रूस निशाने पर रहा है. अमेरिका मुक्त ऊर्जा व्यापार को विदेश नीति का अहम हिस्सा बनायेगा. मार्च 2007 में टिलरसन ‘काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस’ में ‘ग्लोबल फ्री मार्केट फॉर एनर्जी’ की वकालत कर चुके हैं. तो क्या इससे दुनिया में ऊर्जा व्यापार की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी? पेट्रोलियम उत्पाद महंगे होंगे? नोटबंदी में उलझा भारत इस वास्ते कितना तैयार है? सोचिये और मंथन कीजिये!

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