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निषेधाज्ञा के बाद भी जंगलों में लगता है शराबियों का अड्डा

जलपाइगुड़ी: कहीं लाइसेंसी शराब की दुकान तो कही गीत-संगीत से झमाझम बार.उसके बाद भी जंगल जाकर शराब और बीयर पीने का क्रम जारी है.आलम यह है कि वन विभाग की निषेधाज्ञा के बाद भी भारी संख्या में लोग खासकर युवा पीढ़ी और कॉलेज छात्र छुट्टी के दिन यहां के जंगलों में अड्डा जमाते हैं और […]

जलपाइगुड़ी: कहीं लाइसेंसी शराब की दुकान तो कही गीत-संगीत से झमाझम बार.उसके बाद भी जंगल जाकर शराब और बीयर पीने का क्रम जारी है.आलम यह है कि वन विभाग की निषेधाज्ञा के बाद भी भारी संख्या में लोग खासकर युवा पीढ़ी और कॉलेज छात्र छुट्टी के दिन यहां के जंगलों में अड्डा जमाते हैं और शराब के नशे में जमकर मौज मस्ती करते हैं.इसकी वजह से वन्य प्रणियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.पिकनिक के इस मौसम में डुवार्स के विभिन्न जंगलों में यही आलम है.प्राप्त जानकारी के अनुसार युवा पीढ़ी के लोग जंगलों में जाकर शराब पीकर मस्ती करते हैं और लौटते वक्त शराब और बीयर की बोतलों को वहीं छोड़ आते हैं.
इसके अलावा इन बोतलों को तोड़ भी दिया जाता है.ऐसा नहीं है कि वन विभाग को इसकी जानकारी नही है. वन विभाग के कर्मचारियों को इसकी पूरी जानकारी है.कइ मौके पर तो उनके सामने ही सबकुछ होता है उसके बाद भी ना तो इसे रोकने की कोइ कोशिश होती है और ना ही ऐसे उत्पाती शराबियों के खिलाफ कोइ कार्यवाही की जाती है.डुवार्स के मोराघाट रेंज के रेंजर अजय घोष का कहना है कि शराब तथा बीयर की बोतलों को तोड़कर जंगल में हाथी के कोरिडोर के साथ ही जहां तहां फेंक दिया जाता है.कभी भी हाथी के पैर में ये कांच के टूकड़े लग सकते हैं.इससे हर हमेशा ही हाथियों के घायल होने की संभावना बनी रहती है. ऐसा नहीं है कि वन विभाग ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाइ नहीं करती है. अबतक कइ लोगों को पकड़ा गया है.

पूछताछ के बाद पता चलता है कि इनमें से अधिकांश छात्र हैं.ऐसे छात्रों को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया है. इसबीच एक वन अधिकारी का कहना है कि यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है. यदि कांच के टूकड़े से कोइ हाथी घायल हो जाता है तो उसका गुस्सा काफी भड़क जाता है. ऐसी स्थिति में हाथी रिहायशी इलाके में भी घुस सकता है. यदि हाथी एक बार रिहायशी इलाके में घुस गया तो वह काफी बड़ा तांडव मचा सकता है.

उस वन अधिकारी ने आगे बताया कि शराब का यह दौर रात को नहीं बल्कि दिन को ही चलता है.डुवार्स के सोनाखाली,खुट्टीमारी सहित अन्य जंगलों में इस प्रकार का आलम देखा जा सकता है.हांलाकि यह भी सही है कि इनसब पर निगरानी के लिए वन विभाग में और भी कर्मचारियों की आवश्यकता है.वन विभाग के अधिकारियों का भी कहना है कि कर्मचारियों की संख्या कम होने के कारण ऐसे तत्वों पर निगरानी रख पाना संभव नहीं हो पा रहा है.इनका कहना है कि आम वन कर्मचारी ही नहीं,रेंजर से लेकर बीट ऑफिसर तक के कइ पद खाली पड़े हैं,जिसे तत्कारल भरे जाने की आवश्यकता है.यहां उल्लेखनीय है कि जाड़े के समय खाने की तालाश में हाथियों की विभिन्न स्थानों पर आवाजाही बढ़ जाती है. कइ बार हाथी रिहायशी इलाके में भी आ जाते है.कइ हाथी के इन कांच के टूकड़ों से घायल होने की भी खबर है.

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