रोम : इटली के प्रधानमंत्री मैटियो रेंजी ने आज तड़के घोषणा की कि संवैधानिक सुधार पर जनमत संग्रह में हार मिलने के बाद वह अपने पद से इस्तीफा दे रहे हैं. प्रधानमंत्री ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘सरकार चलाने का मेरा अनुभव यहीं समाप्त होता है.’ रेंजी ने इस जनमत संग्रह में अपना भविष्य दांव पर लगा दिया था. उन्होंने ‘नो कैंप’ की ‘असाधाराण स्पष्ट’ जीत के बाद यह घोषणा की. गृह मंत्री के अनुमानों के अनुसार फाइव स्टार मूवमेंट के नेतृत्व में नो कैंप ने मतदान करने वालों के 59.5 प्रतिशत समर्थन के साथ जनमत संग्रह में जीत हासिल की. करीब 70 प्रतिशत इतालवी कल मतदान करने लिए योग्य थे.
इस जनमत संग्रह में काफी कुछ दांव पर लगा होने और विभिन्न अहम मामलों के इससे जुड़े होने के कारण असाधारण रूप से बड़ी संख्या में मतदान हुआ. रेंजी ने कहा कि वह अपनी कैबिनेट की अंतिम बैठक के बाद अपना इस्तीफा सौंपने के लिए आज राष्ट्रपति सर्जियो मैटारेला से मुलाकात करेंगे. इसके बाद मैटारेला पर नयी सरकार की नियुक्ति की जिम्मेदारी होगी. यदि वह ऐसा नहीं कर पाएंगे तो उन पर शीघ्र चुनाव कराने की जिम्मेदारी होगी.
अधिकतर विशेषज्ञों इस बात की सर्वाधिक संभावना देखते हैं कि रेंजी के बाद प्रशासन की जिम्मेदारी वर्ष 2018 में चुनाव होने तक उनकी ही डेमोक्रेटिक पार्टी का कोई केयरटेकर संभालेगा. रेंजी के बाद काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स के अध्यक्ष पद का कार्यभार संभालने के लिए वित्त मंत्री पियर कार्लो पैडोआन सर्वाधिक लोकप्रिय उम्मीदवार हैं. इटली के प्रधानमंत्री को औपचारिक रूप से काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स का अध्यक्ष कहा जाता है.
68 साल पुराना है इटली का मौजूदा संविधान
इटली का संविधान 1948 में बना था. 68 साल पुराने इस संविधान में बदलाव को समय की जरूरत माना जा रहा है. ऐसे भी लोग हैं, जो इसमें संशोधन की गुंजाइश देखते हैं. इस जनमत संग्रह को ‘ब्रेग्जिट’ के बाद यूरोप में सत्ता विरोधी भावनाओं को जाहिर करने के माध्यम के रूप में देखा जा रहा था. हालांकि इसका आह्वान इटली के प्रधानमंत्री मैटियो रेनजी ने किया है, लेकिन बहुत से लोग इसे सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर करने के एक माध्यम के रूप में देख रहे थे.
क्या है संविधान संशोधन में
‘सीएनएन’ के अनुसार, रेंजी (41) संविधान में संशोधन कर ऊपरी सदन सीनेट की शक्तियां कम करते हुए इसके सदस्यों की संख्या 315 से 100 सीमित करना चाहते हैं. विपक्षियों का कहना है कि सीनेट की शक्तियां कम होने की स्थिति में प्रधानमंत्री के हाथों में काफी शक्तियां आ जायेंगी.