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राष्ट्रीय फलक पर छा रहीं दियारा की लड़कियां
नवगछिया की 50 से ज्यादा लड़कियां खिलाड़ी बनीं विकास सिन्हा मेहनत, लगन व कर्मठता से कोई भी मुकाम हासिल की जा सकती है, चाहे समय अनुकूल हो या प्रतिकूल. कई ऐसी ही कहानियां हैं भागलपुर जिले के बिहपुर दियारा की लड़कियों की. आज यहां की लड़कियां राष्ट्रीय स्तर के फलक पर अपनी पहचान बना रही […]
नवगछिया की 50 से ज्यादा लड़कियां खिलाड़ी बनीं
विकास सिन्हा
मेहनत, लगन व कर्मठता से कोई भी मुकाम हासिल की जा सकती है, चाहे समय अनुकूल हो या प्रतिकूल. कई ऐसी ही कहानियां हैं भागलपुर जिले के बिहपुर दियारा की लड़कियों की. आज यहां की लड़कियां राष्ट्रीय स्तर के फलक पर अपनी पहचान बना रही हैं.
दियारा क्षेत्र के हरियो गांव की रहनेवाली ज्योति सीनियर नेशनल महिला कबड्डी चैंपियनशिप के लिए बिहार टीम की सदस्य है. 27 से 30 नवंबर तक पटना में आयोजित राष्ट्रीय कबड्डी प्रतियोगिता में ज्योति ने भाग लिया. दियारा क्षेत्र का हरियो गांव कभी अपराधग्रस्त गांव के लिए जाना जाता था. आज पूरे नवगछिया अनुमंडल के बिहपुर व खरीक से 50 से ज्यादा लड़कियां विभिन्न खेलों में अपना परचम लहरा रही हैं.
अपराधग्रस्त माहौल से बाहर निकली ज्योति : ज्योति कहती हैं कि कभी यह क्षेत्र अपराधग्रस्त था. यहां अपराधियों का वर्चस्व कायम था. रोजाना हत्या व लूट की घटनाएं घटती थीं.
जब वह स्कूल पहुंची, तो उसके गांव के अापराधिक घटनाओं की ही चर्चा होती. ज्योति कहती है कि वह इसे बदलना चाहती थी, लेकिन वह कुछ कर नहीं पा रही थी. इसी बीच ज्योति की मुलाकात कबड्डी कोच गौतम कुमार प्रीतम से हुई. इसके बाद ज्योति के जीवन का लक्ष्य ही बदल गया. अब उसकी एक ही मंजिल थी और वह कि उसे राष्ट्रीय स्तर पर कबड्डी में छा जाना था. इसके बाद ज्योति ने अपना लक्ष्य तय किया और उस ओर अपनी मेहनत शुरू कर दी. ज्योति ने गौतम से कबड्डी के गुर सीखे.
ज्योति कहती है कि जैसा बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु और उनके कोच गोपीचंद का रिश्ता है, उसी तरह उनका रिश्ता गौतम सर से है. बिना उनकी प्रेरणा के इस मुकाम को हासिल नहीं किया जा सकता था. आज वह राष्ट्रीय कबड्डी टीम में अपने क्षेत्र का नाम रोशन कर रही है. ज्योति का चयन पहले क्लब, उसके बाद जिले और राज्य स्तर से होकर राष्ट्रीय स्तर पर कबड्डी टीम में हुआ. अब वह राष्ट्रीय स्तर पर कुछ नया करना चाहती है. वह कहती है कि उनका नाम पीवी सिंधु की तरह हो, इसके लिए वह प्रयासरत है.
खुशबू को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने का जुनून : खगड़ा की खुशबू कमारी कहती है कि कबड्डी के खिलाड़ी को सरकार प्राथमिकता दे और अन्य राज्य सरकारों की तरह सुविधाएं मुहैया कराये. खुशबू पहले जिला कबड्डी की खिलाड़ी थी. इसके बाद उसका चयन बिहार टीम के लिए किया गया.
कबड्डी लीग खेल कर लौटी खुशबू कहती है कि 27 से 30 नवंबर के बीच पटना में आयोजित कबड्डी में प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, लेकिन राष्ट्रीय खेल के लिए चयन होना बड़ी उपलब्धि है. आनेवाले खेल में उनका और उनकी टीम का अच्छा प्रदर्शन होगा. अभी से उसकी तैयारी शुरू हो गयी है. इसके पूर्व बनारस में तिलकामांझी विश्वविद्यालय की टीम का भी वह हिस्सा रही है. खुशबू फिलहाल स्नातक की छात्रा है. वर्ष 2013 से शुरू हुआ यह कारवां अब राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान बना कर रुकेगा.
सपना ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा : पकड़ा की रहनेवाली व कबड्डी खिलाड़ी सपना कहती हैं कि वर्ष 2006 से ही कबड्डी खेल रही है. तब वह छठी कक्षा की छात्रा थी. अच्छे प्रदर्शन से जूनियर से सीनियर में खेलने का मौका मिला. जब आठवीं कक्षा में पहुंची तो राज्य स्तर पर खेलने गोड्डा गयी. उसके बाद हरियाणा, उत्तराखंड व फिर भोपाल में कबड्डी प्रतियोगिता में भाग लिया. वह विश्वविद्यालय के वर्ष 2014 में ओड़िशा, 2015 में भुवनेश्वर और 2016 में बनारस में कबड्डी टीम का हिस्सा रही है. अभी पटना में राष्ट्रीय कबड्डी प्रतियोगिता खेल कर लौटी है.
ये लड़कियां भी लहरा रहीं परचम : केवल ज्योति ही नहीं है, इस खेल में लड़कियां क्षेत्र का नाम रोशन कर रही है. पूजा कुमारी, संगीता कुमारी, पूनम कुमारी सहित कई लड़कियाें के नाम इस फेहरिस्त में हैं. इसके अलावा औलियाबाद की शर्मिला कुमारी, राघोपुर की अनुपम गुड्डी, पकड़ा की सपना कुमारी, खगड़ा की खुशबू कुमारी, मुस्कान व पूजा, तेतरी की चांदनी कुमारी, प्रीति रानी, नाथनगर की स्टेला लोतिका, अंशिका भारती, घोघा की मधुरानी सहित कई लड़कियां राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रही है. ये सभी लड़कियां अभी कॉलेज की छात्राएं हैं.
क्षेत्र की लड़कियों को मिले मौका : गौतम
कोच व तिलकामांझी विश्वविद्यालय के कबड्डी खेल के चयनकर्ता गौतम कुमार प्रीतम कहते हैं कि कबड्डी बिहार की पहचान है. दियारा की कई लड़कियां राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम रोशन कर रही हैं. आज इन लड़कियों ने क्षेत्र को नयी पहचान दी है. आज नवगछिया अनुमंडल का खरीक व बिहपुर में इनको इनके नाम से पहचाना जाता है. गौतम कहते हैं कि शुरुआती दौर में लड़कियां खेलने को तैयार नहीं थीं. उनके माता-पिता को समझाने के बाद खेल में आगे आये. आज परिणाम सामने है. इन खिलाड़ियों ने अपने नाम से क्षेत्र के नाम के साथ-साथ माता-पिता को भी अपनी पहचान दी है. गौतम कहते हैं कि अगर सरकार खिलाड़ियों को मौका दे, तो राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यहां से खिलाड़ी पैदा होंगे. खिलाड़ी आत्मनिर्भर बनें, इसके लिए सरकार काे प्रयास करना चाहिए. कबड्डी हमारे राज्य की पहचान है.
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