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चिंताजनक व्यापार घाटा

दो देशों के बीच आर्थिक-संबंध भले आपसी सहमति से तय होते हैं, पर स्वायत्ता का राग अलाप कर इस सहमति से मुकरना या अपना आर्थिक हित साधने के लिए उसे एकबारगी बदल देना अब किसी देश के लिए संभव नहीं है. चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे की खबरों के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था का यह […]

दो देशों के बीच आर्थिक-संबंध भले आपसी सहमति से तय होते हैं, पर स्वायत्ता का राग अलाप कर इस सहमति से मुकरना या अपना आर्थिक हित साधने के लिए उसे एकबारगी बदल देना अब किसी देश के लिए संभव नहीं है.
चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे की खबरों के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था का यह तल्ख सच फिर सरकार के सामने है. वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में कहा है कि भारत और चीन दोनों विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य हैं और इस नाते चीन से आयात कम करने का कोई भी उपाय संगठन के नियमों के दायरे में ही किया जा सकता है, ऐसा कोई फैसला एकतरफा नहीं हो सकता. मंत्री की यह स्वीकारोक्ति बीते अक्तूबर माह के अंत में चली चर्चा को देखते हुए बहुत महत्वपूर्ण है. तब, सांस्कृतिक संगठनों का एक तबका स्वदेशी सामानों की हिमायत करते हुए चीनी सामानों के बहिष्कार पर जोर दे रहा था और यह खबर भी आयी थी कि चीन के साथ व्यापार घाटा कम करने के लिए भारत अपने बाजार में चीनी मालों को मिल रहे शुल्क छूट को कम या खत्म कर सकता है.
चीन को भारत का निर्यात पिछले वित्त वर्ष में नौ बिलियन डॉलर यानी करीब 600 अरब रुपये का था, जबकि चीन से हमारा आयात 61 बिलियन डाॅलर यानी लगभग 4,100 अरब रुपये का रहा. करीब 3,500 अरब रुपये के इस व्यापार घाटे के इस साल और बढ़ने के आसार हैं, क्योंकि मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल से सितंबर) के बीच यह व्यापार घाटा 25 अरब डॉलर से अधिक का हो चुका है. व्यापार-घाटा कम करने का कोई एकतरफा उपाय डब्ल्यूटीओ के नियमों के दायरे में रहने के कारण भारत नहीं कर पाता तो फिर राह यही है कि या तो भारत चीन से होनेवाले आयात की प्रकृति बदले या फिर भारतीय सेवा और सामानों को चीन के बाजार की जरूरत के मुताबिक आकर्षक बनाये. इन दोनों ही बातों की सूरत अभी नजर नहीं आती, क्योंकि चीन से होनेवाले आयात का बड़ा हिस्सा ऊर्जा और दूरसंचार क्षेत्र की चीजों का है और ये क्षेत्र फिलहाल देश की अर्थव्यवस्था में उभार पर हैं, सो इनकी आवश्यकता की पूर्ति अनिवार्य है.
दूसरे, औद्योगिक उत्पादन का इंडेक्स (आइआइपी) फिलहाल गिरावट पर है, जो देश के भीतर और बाहर भारतीय वस्तुओं की मांग में कमी का संकेतक है. उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्पादन और घरेलू मांग की वृद्धि और चीनी बाजार में भारतीय सामानों की मांग बढ़ाने जैसे ठोस उपाय करके व्यापार घाटा कम करने की कोशिश की जायेगी.

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