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एक सराहनीय पहल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा सांसदों और विधायकों से कहा है कि वे आठ नवंबर की नोटबंदी के बाद से 31 दिसंबर तक की अवधि में अपने बैंक खातों में हुए लेन-देन के विवरण पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के पास जमा करें. खबरों के अनुसार, उन्होंने मंगलवार को भाजपा संसदीय दल की बैठक में यह […]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा सांसदों और विधायकों से कहा है कि वे आठ नवंबर की नोटबंदी के बाद से 31 दिसंबर तक की अवधि में अपने बैंक खातों में हुए लेन-देन के विवरण पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के पास जमा करें. खबरों के अनुसार, उन्होंने मंगलवार को भाजपा संसदीय दल की बैठक में यह निर्देश जारी किया है. भारतीय राजनीति में धन और बल का दखल लगातार बढ़ता जा रहा है तथा इसके तार शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार के जरिये जमा किये जानेवाले कालेधन से जुड़े हैं. केंद्र सरकार ने कालेधन के खिलाफ लड़ाई के एक चरण के बतौर नोटबंदी की घोषणा की है. अब प्रधानमंत्री ने अपनी पार्टी के निर्वाचित प्रतिनिधियों के खातों का हिसाब मांग कर एक सराहनीय पहल की है, जिसका अनुकरण अन्य दलों को भी करना चाहिए. सार्वजनिक जीवन में शुचिता और पारदर्शिता से ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है.
नेताओं और दलों की आमदनी और खर्च के लेखा-जोखा के लिए कायदे-कानून हैं तथा चुनाव से पूर्व हर उम्मीदवार को अपनी आर्थिक हैसियत का ब्यौरा देना होता है. हालांकि, ये नियम नाकाफी हैं और चुनाव प्रक्रिया में उत्तरोत्तर सुधार की जरूरत है. लेकिन, इस दिशा में हर छोटे-बड़े कदम का स्वागत होना चाहिए. भाजपा सांसदों और विधायकों से विवरण मांगने का निर्देश ऐसा ही एक कदम है. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि केंद्र में सत्तारूढ़ होने के साथ अनेक राज्यों में भी पार्टी की सरकारें हैं. क्या पार्टी इन विवरणों को सार्वजनिक करेगी या अगर कोई दोषपूर्ण लेन-देन सामने आता है, तो संबंधित जन-प्रतिनिधि पर क्या कार्रवाई होगी, ऐसे सवालों पर भाजपा का रुख अभी सामने नहीं आया है.
लेकिन, इतना जरूर कहा जाना चाहिए कि ऐसे फैसलों का असर पार्टी के भीतर और अन्य राजनीतिक दलों पर पड़ता है. भाजपा और अन्य पार्टियां अगर आंतरिक पारदर्शिता को एक सीमा तक भी सुनिश्चित कर दें, तो इससे हमारा लोकतंत्र मजबूत ही होगा. यह भी उल्लेखनीय है कि पार्टियों द्वारा अपने आय-व्यय और उम्मीदवार द्वारा चुनाव में किये जानेवाले खर्च का सही विवरण देने में कोताही बरती जाती है. इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए चुनाव आयोग तथा अन्य संस्थाओं को समुचित अधिकार दिये जाने चाहिए. उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्देश से सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता लाने में मदद मिलेगी.

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