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त्रासदी के सबक

रविवार की सुबह कानपुर के पास पटना-इंदौर एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों यात्री घायल हैं. हादसे के कई घंटे बीत जाने के बावजूद रेल मंत्रालय और संबद्ध विभागों की तरफ से न तो दुर्घटना के कारणों के बारे में बताया गया है, और […]

रविवार की सुबह कानपुर के पास पटना-इंदौर एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों यात्री घायल हैं. हादसे के कई घंटे बीत जाने के बावजूद रेल मंत्रालय और संबद्ध विभागों की तरफ से न तो दुर्घटना के कारणों के बारे में बताया गया है, और न ही मृतकों तथा घायलों की निश्चित संख्या और नामों की जानकारी दी गयी है.

इस त्रासदी ने भारतीय रेल प्रबंधन में व्याप्त कमियों को भयावह रूप से एक बार फिर उजागर किया है. कानपुर रेल प्रणाली का महत्वपूर्ण केंद्र होने के साथ देश के व्यस्ततम रेल मार्गों में भी एक है.

इसके बावजूद घटना के तुरंत बाद राहत और बचाव न पहुंच पाना बेहद चिंताजनक है. घटनास्थल से मिल रही जानकारियों के अनुसार, यदि यात्रियों को समय पर मदद मिल जाती और आसपास चिकित्सा के बेहतर इंतजाम होते, तो अनेक जानें बचायी जा सकती थीं. रेल हमारे देश की सबसे बड़ी परिवहन प्रणाली है जिसमें रोजाना करोड़ों लोग यात्रा करते हैं और भारी मात्रा में सामानों की ढुलाई की जाती है. इस कारण इसके प्रबंधन, इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा पर अत्यधिक दबाव भी है. हर साल रेल बजट में बड़ी राशि इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने, रख-रखाव को प्रभावी बनाने तथा परिचालन को सुरक्षित बनाने के लिए निर्धारित की जाती है.

लेकिन, जैसा कि रेल को बेहतर बनाने का सुझाव देने के लिए गठित बिबेक देबरॉय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, खर्च और उसके उपयोग का समुचित हिसाब-किताब रखने में रेल का रिकॉर्ड बहुत खराब है. एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि यात्री गाड़ियों की औसत गति 36 किलोमीटर प्रति घंटे है, जबकि मालगाड़ियां 26 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं.

वर्ष 2012 में प्रकाशित विश्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक भारतीय रेल की उत्पादकता अंतरराष्ट्रीय स्तर से बहुत नीचे है. यात्री ट्रेनों के परिचालन का आर्थिक बोझ भी रेल की समस्याओं में से एक है, लेकिन पिछले दो सालों में किराये में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से तेज बढ़ोतरी भी हुई है. सरकार ने लंबित परियोजनाओं को पूरा करने और पटरियों की संख्या बढ़ाने के काम पर ध्यान देने को अपनी प्राथमिकता बनाया है. ऐसे में मौजूदा मार्गों तथा गाड़ियों को सुरक्षित बनाने का मौका सरकार के पास था और है. पटना-इंदौर एक्सप्रेस जैसी अनेक दुर्घटनाओं की खबरें आती रही हैं.

परंतु उन पर लोगों का विशेष ध्यान इसलिए नहीं गया क्योंकि हताहतों की संख्या बहुत कम थी या फिर इनमें कई मालगाड़ियां थीं. जिस देबरॉय समिति की रिपोर्ट के आधार पर रेल मंत्रालय ने अनेक पहलें की हैं, उसमें यात्रियों की संरक्षा और सुरक्षा पर त्वरित ध्यान देने की बात प्रमुख नहीं है. भारतीय रेल की 458 लंबित परियोजनाओं का पांच लाख करोड़ के करीब है. सरकार की कोशिशों के बावजूद अपेक्षित निवेश नहीं हो पा रहा है.

पिछले कुछ समय से रेल मंत्रालय यात्री सुविधाओं को बढ़ाने और रेलवे स्टेशनों को बेहतर बनाने का दावा कर रहा है. बीच-बीच में सोशल मीडिया पर यात्रियों की गंभीर शिकायतों के शीर्ष स्तर से त्वरित समाधान की खबरें भी चर्चा में रहती हैं. यह सब स्वागतयोग्य है, पर दुर्घटना से बचने तथा दुर्घटना की स्थिति में राहत और बचाव के जरूरी कामों को हाशिये पर डाल दिया गया. पिछले बजट में रेल इंफ्रास्ट्रक्चर के आधुनिकीकरण में आगामी पांच सालों में 8.5 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की गयी थी. रेल प्रणाली को डिजिटल बनाने को प्रमुख लक्ष्यों में रखा गया था. इस हादसे से सबक लेते हुए सरकार को खर्च की प्राथमिकता में जान-माल की सुरक्षा सबसे पहले रखना चाहिए.

नयी पटरियां बिछाना जरूरी है और इस दिशा में प्रगति भी संतोषजनक है, लेकिन अगर पुरानी पटरियों की मरम्मत और निगरानी में लापरवाही खतरनाक है. यदि रेल में डिजिटल तकनीक, नवोन्मेष और स्टार्ट अप को प्रोत्साहित किया जा रहा है, तो उसका बड़ा हिस्सा बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के काम में लगाया जाना चाहिए. इसी तरह से निवेश के समुचित भाग को भी संरक्षा और सुरक्षा जैसे मदों में खर्च किया जाना चाहिए. रेल भारतीय अर्थव्यवस्था और सकल घरेलू उत्पादन की जीवन रेखा है. सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम होने के नाते उसे सिर्फ लाभ और हानि के वाणिज्यिक गणित से संचालित नहीं किया जा सकता है. रेल प्रबंधन कम किराया का तर्क देकर अपनी जिम्मेवारियों से मुक्त नहीं हो सकता है.

उसे अपने प्रबंधन और प्रशासन की खामियों का भी मूल्यांकन करना चाहिए तथा अपेक्षित सुधार का प्रयास करना चाहिए. भ्रष्टाचार, लापरवाही और गैरजरूरी खर्चों जैसी समस्याओं का निदान जरूरी है. कई बार देखा गया है कि विलंब से चलने के कारण ट्रेनों को बिना साफ-सफाई और कल-पूर्जों की जांच के फिर से रवाना कर दिया जाता है. पटरियों की नियमित निगरानी का काम भी लचर ढंग से किया जाता है. ऐसी गलतियों को सुधार कर दुर्घटनाओं में काफी कमी की जा सकती है. उम्मीद है कि रेल मंत्रालय और संबद्ध विभाग कानपुर की इस दुखद घटना से समुचित सबक लेंगे.

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