आफत. जेब में पैसे नहीं, स्कूलों से लोग फीस जमा करने की मांग रहे मोहलत
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बच्चों की फीस व राशन उधार में
आफत. जेब में पैसे नहीं, स्कूलों से लोग फीस जमा करने की मांग रहे मोहलत समस्तीपुर : मम्मी स्कूल की फीस कब जमा होगी. टीचर पूछ रहे थे … अधिकांश घरों में स्कूल से लौटने के बाद बच्चे अपने अभिभावकों से कुछ इसी तरह का प्रश्न पूछते दिख रहे हैं. घर में रुपये रहने के […]
समस्तीपुर : मम्मी स्कूल की फीस कब जमा होगी. टीचर पूछ रहे थे … अधिकांश घरों में स्कूल से लौटने के बाद बच्चे अपने अभिभावकों से कुछ इसी तरह का प्रश्न पूछते दिख रहे हैं. घर में रुपये रहने के बाद भी अभिभावक स्कूलों में फी जमा नहीं कर पा रहे हैं. पांच सौ व हजार के नोट बंदी के बाद यह समस्या अब आम हो चुकी है.
वहीं जिले के अधिकांश स्कूल नोटबंदी की घोषणा होने के बाद से उक्त दोनों नोट लेने से कतरा रहे हैं. जिन छात्रों के अभिभावक सरकारी या निजी कार्यालय में कार्यरत हैं उनके लिये घंटों लाइन में लग नोटों को प्राप्त करना टेढ़ी खीर साबित हो रही है. वहीं कुछ ऐसे परिवार भी हैं, जहां महिलाएं घर का काम काज छोड़ बैंक की ओर रुख कर रहे हैं. बाद भी उन्हें निराशा ही हाथ लग रही है. इधर, नोटबंदी का असर अब रसोई घर में भी हो रहा है.
आटा से लेकर सब्जी आदि की खरीदारी में भी लोगों के पसीने छूट रहे हैं. हाथ में पांच सौ का नोट लेकर लोग दैनिक जरूरतों की खरीदारी करने के लिए दुकान दर दुकान घूम रहे हैं. रोजमर्रा की जरूरत के समान के लिए जदोजहद लेकर गृहिणी के समक्ष यह सवाल खड़ा हो रहा है कि परिवार को दो वक्त का भोजन कौन से बजट से पूरी की जाये.
मिश्रा जी उधार खा रहे पान : शहर के सोनवार्षा चौक निवासी वीरेंद्र मिश्रा पान खाने के काफी शौकिन हैं. लेकिन रोजाना पांच वक्त पान खाने वाले मिश्रा जी इन दिनों पान वाले से उधार पान खा रहे हैं. उन्होंने अपनी परेशानी को बयां करते हुए कहा कि परिवार चलाने में ही अधिकांश छुट्टे रुपये खर्च हो रहे हैं. जो बच रहा है उससे एक वक्त का पान तो पैसा देकर खा लेते हैं. लेकिन शौक के आगे अब उधार लेने के बजाय कोई उपाय नहीं बचा है. दस का सिक्का देने पर पान वाला उधार पान खाने की सलाह दे रहा है. यह कहानी सिर्फ मिश्रा जी की ही नहीं है.
प्रधान डाकघर के बाहर रुपये के लिए लाइन में खड़े लोग.
सरकारी कार्यालय में कर्मियों के बीच चर्चा आम
सरकारी कार्यालयों में नोटबंदी को लेकर चर्चाओं का दौर गरम है. मंगलवार को सहकारिता कार्यालय खुलते ही कर्मचारी एक दूसरे से पहले यह प्रश्न करते है, आखिर कब तक बैंकों की स्थिति सामान्य होगी. साथियों के जेब से खुदरे टटोलकर कर्मचारी अपने रद्दी पुराने पांच सौ व हजार के नोट की अदला बदली करने को कहते हैं. जब सभी जेबों की हालात एक जैसी सुन कर्मी मनमसोस कर रह जाते हैं. कुछ मदद की चाह में चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों को हजार के नोट थमा कर उन्हेंं कहीं से भी बदल कर आने को कहते हैं.
लोगों का टूट रहा धैर्य
आने जाने के लिए भी नहीं हैं रुपये : सहकारिता विभाग में कार्यरत कर्मी उपेंद्र कुमार ने कहा कि छठ पर्व के कारण अधिकांश राशि खर्च हो गये. हाल यह है कि घर से कार्यालय आने जाने के लिये भी जेब में पैसे नहीं हैं. खाता में राशि है पर एटीएम से निकासी नहीं हो पा रही है.
उधार पर ही चल रहा काम: चाय का दुकान चलाने वाले राम सागर ने कहा कि नोटबंदी का असर व्यापार पर हो रहा है. लोग 500-1000 का नोट लेकर दुकान पर आते हैं.
व्यापार घटा तो ही. इसका असर घर परिवार पर भी हुआ है. आसपास के दुकानों से उधार लेकर काम हो रहा है.
वेतन भी नहीं निकाल पाया : पदाधिकारी हो या कई सामान्य कर्मी सभी की समस्याएं एक जैसी हैं. नोटों का असर सभी लोगों पर हुआ है. डाक अधीक्षक बीएल मिश्रा ने कहा कि नोटों ने उनके घर गृहस्थी को भी प्रभावित किया है. नोटों की समस्या के कारण वेतन भी नहीं निकाल पाया हूं. कोई कार्ड वगैरह भी नहीं है. इससे खरीदारी हो सके. पुरानी कुछ राशि शेष है उसी का बदलाव कर काम चल रहा है.
व्यवस्था में हो सुधार : बारहपत्थर निवासी संजय कुमार ने सरकार से जल्द-से-जल्द समस्या के निदान करने को कहा है. जेब में रुपये नहीं रहने के कारण बाजार जा नहीं पा रहे हैं. स्थानीय व्यवसायियों से ही समान खरीद कर दैनिक जरूरतों को पूरा किया जा रहा है.
कैसे चलेगी गृहस्थी : कोरबद्धा निवासी गीता देवी ने कहा कि अगर ऐसे हालात रहे तो घर गृहस्थी कैसे चलेगा. बच्चों की छोटी-छोटी जरूरतों भी पूर्ण नहीं हो रही है. अगर, घर में काई सदस्य बीमार पड़ जाये, तो कैसे उसका इलाज होगा. कुछ तो उपाय होनी चाहिए.
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