मिसाल के लिए उपभोक्ता की शिकायत के निवारण और उसके हितों की सुरक्षा-संरक्षा से जुड़ा विधेयक या फिर एड्स के निवारण-नियंत्रण और एचआइवी ग्रस्त मरीजों के साथ होनेवाले भेदभाव को रोकनेवाला विधेयक. वर्ष 1987 के मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम की जगह लेने के लिए लाया गया विधेयक भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें मानसिक व्याधि से ग्रस्त व्यक्ति के अधिकारों की बात कही गयी है और उनके लिए अलग से विशेष चिकित्सा सुविधा बढ़ाने के प्रावधान हैं. एक विधेयक कर्मचारियों को मिलनेवाले मुआवजे से संबंधित है.
इस क्रम में महिलाओं के हितों की सुरक्षा-संरक्षा से जुड़ा विधेयक भी है, जिसमें मातृत्व अवकाश की अवधि बढ़ा कर 26 हफ्ते करने और 50 कर्मचारियों वाले व्यावसायिक संस्थान में अनिवार्य रूप से शिशु पालनाघर (क्रेच) की व्यवस्था के प्रावधान किये गये हैं. सीधे आम लोगों के हितों से जुड़े होने के कारण देश चाहेगा कि ये सारे विधेयक पर्याप्त बहस-मुबाहिसे के बाद लोकहित के अनुकूल पारित हों. लेकिन, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि संसद के शीतकालीन सत्र पर अभी से हंगामे के बादल मंडरा रहे हैं. नोटबंदी के माहौल में होनेवाले इस सत्र में विपक्ष की पूरी कोशिश होगी कि वह नकदी की किल्लत झेल रहे लोगों की समस्याओं के मद्देनजर सरकार के फैसले को अपने निशाने पर ले.
विभिन्न विरोधी दलों के नेताओं के नोटबंदी के मुद्दे पर एक साथ होने के कारण संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत निश्चय ही तीखे नोंक-झोंक से भरी रहनेवाली है. विपक्ष वन रैंक वन पेंशन और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से जुड़े मुद्दे भी उठा सकता है. देश में कराधान प्रणाली में बड़े बदलाव के रूप में जीएसटी को लागू करने के लिए इसी सत्र में संसद की मंजूरी जरूरी है. पंजाब, हरियाणा, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और तमिलनाडु के सांसद जल-विवादों का मुद्दा उठा सकते हैं. उम्मीद है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष व्यापक देशहित में जरूरी विधेयकों को पारित करेंगे और बड़े मुद्दों पर बिना हंगामा किये सारगर्भित बहस करेंगे.