अब तक अस्थिर सरकारों के कारण नीतियों में निरंतरता की कमी रही
प्रभात कुमार
पूर्व राज्यपाल, झारखंड
झारखंड राज्य की मांग काफी लंबे अरसे से होती रही और अंतत: लोगों की जनभावना को देखते हुए 15 नवंबर को नये राज्य के तौर पर इसका गठन किया गया. गठन के पीछे मूल मकसद था कि राज्य का विकास समुचित तरीके से हो पायेगा. लेकिन, अगर 16 वर्षों के सफर पर गौर करें, तो जिन उम्मीदों के आधार पर इसका गठन किया गया था, उस पैमाने पर राज्य पूरी तरह खरा नहीं उतरा है. राज्य की सफलता और असफलता पर चर्चा अक्सर होती रहती है और आगे बढ़ने के लिए यह जरूरी है. लेकिन, सबसे गंभीर सवाल है कि आगे का रास्ता क्या हो और इसे कैसे पूरा किया जाये? इन 16 सालों में राज्य में पहली बार एक स्थिर सरकार का गठन हुआ है. गवर्नेंस और विकास के लिए स्थिर सरकार का होना जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही नीतियोंका क्रियान्वयन सही तरीके से करना जरूरी है.
अस्थिर सरकारों के कारण नीतियों में निरंतरता की कमी तो रही ही, इसके अलावा कानून-व्यवस्था की स्थिति भी खराब होती गयी. साथ ही भ्रष्टाचार भी बढ़ा. जहां तक खनिज संपदा की बात है, झारखंड खनिज संपदा के मामले में भारत में सबसे अमीर राज्य रहा है. लेकिन, इसके बावजूद राज्य में गरीबी काफी है. अलग राज्य बनने के बाद राज्य में उद्योगों की स्थापना के लिए कई एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये, लेकिन बहुत कम उद्योग धरातल पर उतर पाये. इसकी वजह पर गौर करने की जरूरत है. आखिर क्या वजह रही कि खनिज संपदा की उपलब्धता के बावजूद राज्य में गठन के बाद औद्योगिकीकरण की रफ्तार धीमी पड़ती गयी. जमशेदपुर जैसे शहर का विकास नहीं हो पाया. यह राजनीतिक नेतृत्व पर निर्भर करता है कि राज्य का विकास किस तरह से किया जाये.
मानव विकास सूचकांक पर गौर करें, तो इस मामले में भी राज्य काफी पीछे है. शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं का हाल बेहाल है. शिक्षा के क्षेत्र पर गौर करें, तो प्राथमिक स्कूलों में नामांकन दर तो बढ़ी है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आयी है. माध्यमिक और उच्च शिक्षा की स्थिति भी कोई खास अच्छी नहीं है. सिर्फ नामांकन दर बढ़ाने से लोगों को अच्छी शिक्षा नहीं मिल सकती है.
इसके लिए अच्छे शिक्षकों की नियुक्ति अौर शिक्षा तंत्र में आमूल-चूल बदलाव करने की आवश्यकता है. बच्चों में कुपोषण बड़ी समस्या है. राज्य की अधिकांश आबादी गांवों में रहती है और ग्रामीण क्षेत्र के विकास पर ध्यान देने की जरूरत है. इसके लिए कृषि क्षेत्र के विकास के अलावा कृषि आधारित उद्योगों के विकास पर फोकस किया जाना चाहिए.
राज्य में नक्सलवाद एक बड़ी समस्या रही है. इसे सिर्फ कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं माना जा सकता है, इसके लिए राज्य के सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में काम करने की जरूरत है.
विकास से नक्सलवाद को खत्म किया जा सकता है. ऐसा नहीं है कि इन 16 सालों में राज्य में विकास नहीं हुआ है. इस दौरान बदलाव आये हैं, लेकिन जिन उम्मीदों के आधार पर इसका गठन किया गया, वह पूरा नहीं हो पाया है.
वर्तमान में राज्य में एक स्थिर सरकार है और प्रधानमंत्री भी देश के पूर्वी राज्यों के विकास को तवज्जो देने की बात कह रहे हैं.
यह राज्य के लिए सबसे अच्छा समय है. नयी सरकार ने कृषि के साथ उद्योग के विकास के लिए नीतियां बनायी है और इसके क्रियान्वयन पर भी जोर दिया जा रहा है. खनिज संपदा के अलावा सरकार को वन संपदा के विकास पर जोर देने की आवश्यकता है, ताकि आदिवासी समुदाय के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा हो सकें. यह सही है कि झारखंड के बनिस्पत साथ बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में विकास अधिक हुआ है.
इसकी प्रमुख वजह रही है राजनीतिक स्थिरता. इन राज्यों में ढांचागत सुविधा झारखंड से बेहतर है. झारखंड को बुनियादी सुविधाएं जैसे बिजली, सड़क का उतना विकास नहीं हो पाया है. लेकिन, अब इस दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं और उम्मीद है कि आनेवाले समय में राज्य का समुचित विकास हो पायेगा.