समाजवादी पार्टी में जारी जंग का परिणाम चाहे जो भी लेकिन एक बात तो तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव में उन्हें नुकसान होने वाला है. अब सवाल यह है कि अगर सपा को नुकसान होगा, तो उसका फायदा किसे मिलेगा. प्रदेश में सपा के अतिरिक्त जो पार्टियां दिखतीं हैं उनमें बसपा और भाजपा ही मजबूत स्थिति में है. जहां तक बात कांग्रेस की है, तो वह खुद ही संकटों से जूझ रही है. रीता बहुगुणा के पार्टी छोड़ देने से कार्यकर्ताओं में निराशा है. ऐसे में फायदा पाने वाली जो दो मुख्य पार्टियां नजर आ रहीं हैं उनमें बसपा और भाजपा ही है.
बसपा की ओर जायेंगे मुसलमान वोटर
समाजवादी पार्टी यादव और मुसलमान वोटर्स की राजनीति करती है. सपा में जो झगड़ा चल रहा है उससे यादव वोटर तो कहीं नहीं जायेंगे, लेकिन मुसलमान वोटर इस स्थिति में सपा के साथ नहीं रहेंगे. वे यह जानते हैं कि इस झगड़े के कारण अगर भाजपा को फायदा मिल सकता है, इसलिए उनका एकमुश्त वोट बसपा को मिलेगा. प्रदेश में 2011 की जनगणना के अनुसार 18.26 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, जो किसी भी पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में निणार्यक भूमिका निभायेगी. इस बात को मायावती अच्छी तरह से समझती हैं और इसी कारण से उन्होंने दलितों और मुसलमानों को एक मंच पर लाने के प्रयास तेज कर दिये हैं.
दलित हमेशा बसपा के साथ हैं
उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी 20.5 प्रतिशत है और वे मायावती के कैडर वोटर्स हैं. दलितों के लिए मायावती जिस तरह से आवाज बुलंद करती हैं, कहना ना होगा कि इस चुनाव में भी उन्हें दलितों का समर्थन मिलेगा. दलितों में जाटव आबादी को मायावती जिस तरह स्वामी प्रसाद मौर्य के काट के रूप में पेश कर रही हैं, वह भी उनके लिए फायदे का सौदा है.
मायावती को मिल सकता है मुख्यमंत्री का पद
मायावती जिस तरह अपने दांव खेल रही हैं अगर मुसलमान वोटर उनके साथ आ गये, तो संभव है कि सत्ता की कमान एक बार फिर मायावती के हाथों में आ जाये. हालांकि यह बात समय के गर्भ में है, लेकिन उत्तर प्रदेश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर तो ऐसी संभावना नजर आ रही है.