एक्सपीरिएंस ऑफ एंटरप्रेन्योर
तकनीकी उभार और बाजार के बदलते रुख के बीच स्टार्टअप की ओर युवाओं का रुझान बढ़ा और देशभर में इसमें तेजी आयी. लेकिन, एक वक्त तेजी से उभरते दिखनेवाले बहुत से स्टार्टअप हाल में अपने बिजनेस मॉडल को बरकरार रख पाने में विफल रहे हैं. ऐसे उद्यमियों की विफलता और उनके अनुभव से काफी कुछ सीखा जा सकता है. आज के आलेख में पढ़ें ऐसे ही एक उद्यमी का अनुभव, जो आपके लिए मार्गदर्शक हो सकता है …
मैं हमेशा अपने उद्यम के बारे में सोचता थी. बतौर प्रोडक्ट मैनेजर मैंने अपने कुछ उत्पाद भी तैयार किये थे. लेकिन, ‘हेलो रोमिंग’ मेरा पहला वास्तविक स्टार्टअप था. पहला इसलिए क्योंकि इससे मुझे मुनाफा हासिल हुआ और एक वास्तविक कारोबार बना. बतौर सह-संस्थापक इसे बंद करना मेरे लिए बेहद कष्टदायी था, एक प्रकार से सपनों के ढह जाने की तरह. हालांकि, जब हमने इसकी शुरुआत की, हमारा विजन ट्रैवल में होनेवाली दिक्कतों को (जैसे कहीं जाने पर उस देश का सिम कार्ड हासिल करने जैसी छोटी-छोटी समस्याएं) दूर करने से जुड़ा था. हम ट्रैवल कम्युनिकेशन आसान बनाना चाहते थे, जिसके लिए विदेशी सिम कार्ड खरीदे. हमने यात्रा शुरू करने से पहले ही लोगों के घरों तक उन देशों के सिम पहुंचाये. इसके नतीजे अच्छे रहे और हमें बढ़िया मुनाफा हुआ और मैंने ये चीजें सीखीं :
1. छोटी लड़ाई जीतने का मतलब यह नहीं कि आपने युद्ध जीत लिया
स्टार्टअप में कामयाबी हासिल करने के लिए आपको कठिन परिश्रम करना होता है और इसमें आराम की कोई जगह नहीं होती है. हमेशा सक्रिय और सतर्क रहना पड़ता है. आपके ग्राहक भले ही आपके प्रोडक्ट की प्रशंसा करें, लेकिन उसमें हमेशा सुधार करते रहना होगा, वरना वे आपके हाथ से निकल सकते हैं. छोटी लड़ाई जीतने का मतलब यह नहीं होता कि आपने युद्ध जीत लिया. इसके लिए आपको नियमित रूप से मैदान में डटे रहना होगा.
2. अपने मार्केट शेयर का आकलन ज्यादा
नहीं करना चाहिए
डिलीवरी एक प्रकार से नंबर गेम है और हमारे लिए यह डिसएडवांटेज रहा कि हमारा प्रोडक्ट केवल एक लोगों के एक छोटे समूह तक पहुंच सका. उसमें भी ग्राहकों को तलाशना बेहद खर्चीली प्रक्रिया थी और केवल सिम कार्ड बेच कर प्रति ट्रांजेक्शन ज्यादा कमाई नहीं हो रही थी. हमने पाया कि हमारा लक्षित बाजार बहुत छोटा है, इसलिए हमने उसमें जरूरी बदलाव किया.
3. नहीं करें किसी बिजनेस मॉडल की नकल
उद्यमिता शुरू करनेवाले ज्यादातर लोग पश्चिमी देशों से मॉडल चयन करते हैं और उसे लोकल मार्केट के अनुरूप ढालते हैं. आंख मूंद कर ऐसा नहीं करना चाहिए. सबसे पहले बड़ी तादाद में यूजर्स की तलाश करके फंडिंग हासिल करना चाहिए. तब जाकर रेवेन्यू के बोर में सोच सकते हैं. पश्चिम में रेवेन्यू के बजाय ग्रोथ को प्राथमिकता दी जाती है.
4. स्पीड की बनाएं आदत
बेशुमार कागजी कार्रवाई, प्रोक्योरमेंट और बजट एप्रूवल जैसी लंबी प्रक्रिया के जरिये स्टार्टअप को नहीं चलाया जा सकता है. स्टार्टअप की प्रक्रिया कॉरपोरेट से कुछ अलग रखनी होगी, अन्यथा शुरू में आपको दिक्कत हो सकती है. फीचर्स पर डिबेट के लिए कम और वेलिडेटिंग पर ज्यादा समय दें. शुरू करने के बाद आपको प्रत्येक मिनट ऐसे बिताना होगा, ताकि कैसे चीजों को बेहतर तरीके से किया जा सके.
5. जरूरी है सही लोगों का चयन
मानव संसाधन सबसे अहम है और उसी के बूते आप आगे बढ़ सकते हैं. लिहाजा ऐसी टीम तैयार करें, जो पूरी तरह आपके मकसद के प्रति समर्पित हो और कारोबार को समृद्धि की ओर ले जाने में सक्षम हो. चमत्कार भी तब ही होता है, जब आप समर्पित लोगों को रखते हैं.
स्टार्टअप के लिए बेहतर टीम मेंबर वे होते हैं, जिनमें उद्यमिता का माइंडसेट हो, अपने विचारों को व्यक्त कर सके और चुनौतियों से अलग तरीके से निबटने में सक्षम हो. और यह काम उद्यमिता के माइंडसेट वाला ज्यादा सक्षम तरीके से कर सकता है. आपको यह ध्यान रखना होगा कि स्टार्टअप जॉब के लिए हर आदमी फिट नहीं होता है.
(नोट : यह अनुभव सीरीन जेन का है, जो मलयेशिया के स्टार्टअप ‘शॉर्ट बायो’ की सह-संस्थापक रह चुकी हैं. इसे ‘टेक इन एशिया’ से साभार लिया गया है.)
फूड टेक स्टार्टअप का ढहता कारोबारी मॉडल
शहरी जिंदगी में बढ़ती व्यस्तता के बीच देशभर में फूड टेक स्टार्टअप तेजी से फले-फूले और एक समय यह कामयाब बिजनेस मॉडल के तौर पर उभर कर सामने आया. लेकिन, देखते-ही-देखते अनेक फूड टेक स्टार्टअप बंद हो गये. इनमें से कुछ इस प्रकार हैं :
– डैजो : बेंगलुरु आधारित इस स्टार्टअप को कई स्रोतों से निवेश हासिल होने के बावजूद अनेक कारणों से इसे बंद करना पड़ा.
– स्पूनजॉय : ऑनलाइन रेस्टोरेंट चलानेवाले बेंगलुरु आधारित इस स्टार्टअप ने हाल ही में दिल्ली में अपना कारोबार बंद कर दिया है.
– लंगर : अक्तूबर, 2013 में एक बेहतर बिजनेस प्लान से साथ शुरू हुआ यह स्टार्टअप काफी चर्चित हुआ और अनेक स्रोतों से निवेश हासिल होने के बाद यह बंद हो गया.
– ऑर्डरस्नैक : चेन्नई आधारित यह स्टार्टअप खान-पान से ही जुड़ा था. पहले चरण का निवेश हासिल होने के बावजूद बंद करना पड़ा.
– जोमाटो : गुड़गांव आधारित इस स्टार्टअप ने अनेक शहरों में इसकी शुरुआत की, लेकिन लखनऊ, कोच्चि, इंदौर और कोयंबतूर में इसने अपनी सेवा बंद कर दी है.
कामयाबी की राह
इंटरव्यू देनेवाले उम्मीदवार की सलाह करें नोट
जनसामान्य के बीच स्टार्टअप के प्रचार के लिए व्यापक पैमाने पर खर्च करना पड़ता है. लेकिन, अनेक ऐसे तरीके हैं, जिनके जरिये कम-से-कम खर्च में स्टार्टअप का प्रचार करते हुए बेहतर कर्मचारियों का चयन किया जा सकता है. ऐसी ही प्रक्रिया है- इंटरव्यू का आयोजन, जिसके जरिये अच्छे कर्मचारियों का चयन करते हुए आसानी से लोगों तक पहुंचा जा सकता है. इसके माध्यम से स्टार्टअप का एजेंडा भी लोगों तक सहजता से पहुंचाया जा सकता है. स्टार्टअप को कामयाब बनाने में आजकल इनकी उल्लेखनीय भूमिका देखी गयी है, जो इस प्रकार है :
1. संभावित ग्राहक की तरह करें वार्तालाप : इंटरव्यू के दौरान प्रत्येक उम्मीदवार इतना जरूर कहता है कि वह आपके स्टार्टअप के साथ शिद्दत से जुड़ना चाहता है, भले ही यह उसकी दिली इच्छा न हो. लिहाजा उससे एक सक्षम ग्राहक की तरह वार्तालाप करें.
2. सकारात्मक माहौल : सभी कार्यरत कर्मचारियों को इस तरह से ट्रेनिंग देनी चाहिए, ताकि बाहर से आनेवाले व्यक्ति को यह महसूस हो कि यहां उन्हें अहमियत दी जाती है. साथ ही ऐसा माहौल बनाना चाहिए, ताकि उन्हें वहां अपना भविष्य बेहतर नजर आये.
3. समग्र क्षमता प्रदर्शन पर जोर : अपनी टीम को यह प्रशिक्षण दें कि वह यह समझा सकें कि कैसे इंटरव्यू ही उनके लिए पर्याप्त नहीं और वे ऑडिट इंटरव्यू पर भी जोर देते हैं, ताकि उम्मीदवार की समग्र क्षमता प्रदर्शित हो सके.
4. सटीक जवाब वाले सवाल न पूछें : बेकार के सवालों पर समय खराब न करें. ऐसे सवाल न करें, जिनका एक ही सटीक जवाब हो. ऐसे सवाल करें, जिसके जवाब से उम्मीदवार की सोच-समझ और उसकी प्रतिभा का मूल्यांकन किया जा सके.
5. कम समय में काम निबटाने के गुर जानें : सभी से एक सामान्य सवाल कर सकते हैं कि कम समय में किस तरह काम निबटाया जा सकता है.
6. चेहरे पर चमक रखें कायम : ज्यादातर उम्मीदवार इंटरव्यू लिये जानेवाले से प्रभावित होकर ही स्टार्टअप को ज्वाइन करना चाहते हैं, लिहाजा आपको ज्यादा सचेत रहते हुए अपनी चमक को कायम रखना होता है.
7. इंटरव्यू लेने के बाद जरूरी काम : इंटरव्यू लेने के बाद प्रत्येक उम्मीदवार का डाटाबेस तैयार करके महज तीन शब्दों में उसकी खासियतों के बारे में लिख कर रखें. पिछले उम्मीदवार के मुकाबले यह कितना फीसदी ज्यादा या कम सक्षम है, इसका भी जिक्र करें. बेहतर कार्य के लिए यदि उम्मीदवार ने कुछ सलाह दी हो, तो उसे नोट करें. हो सकता है कि इन्हीं में से कोई उम्मीदवार भविष्य में आपके स्टार्टअप को बहुत आगे ले जा सकता है.
(स्रोत : टेक इन एशिया)
स्टार्टअप क्लास
टेक डेवलपमेंट सीखने का अच्छा तरीका
है कंप्यूटर या आइटी इंजीनियरिंग
– मैं 12वीं का छात्र हूं और वेब व एप्प डेवलपर के तौर पर ऑनलाइन बिजनेस करना चाहता हूं. कहां से सीखें यह और कितना खर्च होगा, कृपया विस्तार से बताएं?
– निशांत कुमार, छोटकी मसौढ़ी
आप चूंकि 12वीं कक्षा में हैं, इसलिए यह अच्छा समय है आपको अपने करियर को दिशा देने का. टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट सीखने का सबसे अच्छा तरीका कंप्यूटर इंजीनियरिंग या आइटी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का है.
यहां पर आपको सिर्फ डेवलपमेंट लैंग्वेज नहीं, बल्कि पूरा सिस्टम और काफी अलग प्रोग्रामिंग लैंग्वेज सीखने को मिलेगी. साथ ही आपको साथ में सीडैक जैसे किसी संस्थान से जुड़ कर थोड़ी और ट्रेनिंग लेनी चाहिए. इसके बाद आपको दो-तीन साल किसी इ-कॉमर्स कंपनी में काम करके मार्केट और अन्य चीजों के बारे में समझना चाहिए. इसके बाद ही आप इतना अनुभव जुटा पायेंगे कि खुद का कारोबार कर सकें. चूंकि हर कॉलेज की अलग फीस होती है, तो खर्च बताना मुश्किल है. आप इसकी जानकारी हर कॉलेज की वेबसाइट से ले सकते हैं.
जोखिम के साथ मौके भी हैं हेल्थकेयर में
– प्रैक्टो व लेब्रेट्स आदि की तरह मैं हेल्थकेयर सेक्टर में स्टार्टअप शुरू करना चाहता हूं. इससे संबंधित अवसरों, जोखिम व बाजार आदि के बारे में जानकारी देकर मार्गदर्शन करें? – सुमित कुमार, जमशेदपुर
आप एक अच्छे सेक्टर की तरफ देख रहे हैं. भारत में हेल्थकेयर का ढांचा काफी लचर है. छोटे शहरों में अच्छे डॉक्टर या टेस्टिंग लैब नहीं हैं. अगर थोड़ी भी समस्या होती है, तो मरीज को बड़े शहर ले कर जाना पड़ता है. उसके बाद भी हर रिपोर्ट या टेस्ट के लिए शहर ही जाना पड़ता है.
अगर आप किसी प्रकार से इस समस्या का समाधान कर पाएं, तो एक बड़ा बिजनेस बना सकते हैं. आप डिजिटल या विडियो टेक का इस्तेमाल कर काफी ऐसे लोगों को घर बैठे डॉक्टर से जोड़ सकते हैं, जो छोटे शहर या गांव में होते हैं. आप टेलीमेडिसिन के बारे में भी पढ़ सकते हैं. इस सेक्टर में जोखिम भी हैं. सबसे बड़ा जोखिम सरकारी नीतियां हैं, जो काफी लचर हैं और किसी भी नयी तकनीक को जल्दी बाजार में आने नहीं देती. साथ ही अच्छे और अनुभवी डॉक्टर भारत में काफी कम हैं और जो हैं भी उनके पास मरीजों की भीड़ लगी रहती है. अगर आपको मार्केट या सेक्टर से जुड़ी कोई और जानकारी चाहिए तो केपीएमजी या इवाइ की इस सेक्टर से जुड़ी रिपोर्ट पढ़ें.
बड़े स्कूल के क्लास की लाइव फीड में संभावनाएं
– देशभर में स्कूल एजुकेशन सेक्टर में कोचिंग की भरमार है़ नयी तकनीकों के जरिये किस तरह के आइडिया आधारित स्टार्टअप की शुरुआत की जा सकती है, ताकि इन कोचिंग के बीच वह लोकप्रिय और मुनाफाप्रद कारोबार बन सके?
– सुशील कुमार, मोतीझील, मुजफ्फरपुर
कोचिंग की भरमार के साथ-साथ देश में आजकल शिक्षा से जुड़े स्टार्टअप्स की भी भरमार हो गयी है. विडियो से ले कर ऑडियो सिलेबस और स्मार्ट लर्निंग के तरह-तरह के एप्प और वेबसाइट आ गयी हैं.
लेकिन एक छोटी सुविधा, जो कोई नहीं देता वह है, छोटे शहर और गांव के बच्चों को अच्छे क्लास का अनुभव. इतना जरूरी है कि क्लास में शिक्षक से सीखी गयी बात सबसे जरूरी होती है और कोई भी कोचिंग या एप्प उस शिक्षा को बदल नहीं सकता. इस कारण से छोटे शहर और गांव के बच्चे अच्छे स्कूल और शिक्षकों की सुविधा नहीं उठा पाते. बड़े स्कूल के क्लास की लाइव फीड छोटे शहर और गांव में दिखाएं, तो एक अच्छा बिजनेस खड़ा किया जा सकता है.
टीवी चैनल के बाद आ रहा इंडिपेंडेंट कंटेंट का जमाना
– क्या टीवी या टीवी चैनल के क्षेत्र में स्टार्टअप आये हैं? और अगर आये हैं तो ये कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं?
– आर्यन उमाशंकर, राजेंद्र नगर, पटना
टीवी और टीवी कंटेंट का पूरा बिजनेस अचानक से जोखिम में जाने लगा है. जैसे-जैसे लोगों को इंटरनेट की आदत लग रही है, काफी कंटेंट मोबाइल पर ही देख रहे हैं. इसी कारण काफी नये स्टार्टअप इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. अमेरिका में पैदा हुआ नेटफ्लिक्स आज दुनिया में तीसरा सबसे ज्यादा देखा जानेवाला चैनल है. इसके लिए आपको टीवी की जरूरत नहीं है. इसके पास अपने प्रोड्यूस किये धारावाहिक भी हैं, जो काफी लोकप्रिय हैं. भारत में भी 3-4 इस प्रकार के स्टार्टअप हैं. वायरल फीवर नामक एक वेब चैनल है, जिसने 20 धारावाहिक बनाये हैं और लगभग 10 करोड़ लोग इसे देखते हैं. वूट नामक दूसरा चैनल है, जो सिर्फ अपना ही नहीं, बल्कि टीवी चैनल के धारावाहिक भी अपनी वेबसाइट पर दिखाता है. इसके भी करीब एक करोड़ दर्शक हैं. यह चलन रेडियो पर भी है. सावन नामक एप्प के रेडियो पर आप ऐसे धारावाहिक सुन सकते हैं, जो आपको कहीं और नहीं मिलेंगे. ऐसे कंटेंट को ‘इंडिपेंडेंट कंटेंट’ कहते हैं. यह सेक्टर काफी बड़ा बननेवाला है. बड़े प्रोजेक्ट में सब-कांट्रेक्ट से करें शुरुआत
– कंस्ट्रक्शन सेक्टर में ज्यादातर बड़ी कंपनियों का दबदबा है. बतौर स्टार्टअप इस सेक्टर में छोटे स्तर से काम शुरू करने के इरादे के साथ कैसे कदम रखा जा सकता है? – ऋत्विक
पटना : कंस्ट्रक्शन का कारोबार खर्चीला इसलिए है, क्योंकि इसमें लगनेवाली मशीनरी महंगी होती है. साथ ही आपको पेमेंट काम खत्म होने के बाद मिलती है, जबकि खर्चे रोजाना होते हैं. इसलिए इसमें छोटे स्टार्टअप नहीं खुलते. साथ ही नयी तकनीक नहीं आने से इस सेक्टर में किसी प्रकार का बदलाव भी नहीं आया है.
लेकिन सड़क और पुल बनाने के मामले में चीन और अमेरिका में नयी तकनीक आयी है, जो सस्ती है. अगर आप उस तकनीक को यहां ला पाएं, तो कम खर्च में बड़े प्रोजेक्ट ले सकते हैं. दूसरा उपाय यह है कि बड़े प्रोजेक्ट में सब-कांट्रेक्ट का काम लें. इसमें आपका खर्च कम होगा, लेकिन साथ ही मुनाफा भी कम ही मिलेगा.