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कंप्यूटर ऑपरेटर का चौथे दिन भी नहीं मिला सुराग

मुजफ्फरपुर : नगर थाने के सुतापट्टी डोमा पोखर से रहस्यमय स्थिति में गायब कंप्यूटर ऑपरेटर शोभित का चार दिनों बाद भी सुराग नहीं लग पाया है. मामले का अनुसंधान कर रही पुलिस उसका सुराग लगाने के लिए कॉल डिटेल खंगाल रही है. कॉल डिटेल और टावर लोकेशन के आधार पर उसके बरामदगी की कवायद में […]

मुजफ्फरपुर : नगर थाने के सुतापट्टी डोमा पोखर से रहस्यमय स्थिति में गायब कंप्यूटर ऑपरेटर शोभित का चार दिनों बाद भी सुराग नहीं लग पाया है. मामले का अनुसंधान कर रही पुलिस उसका सुराग लगाने के लिए कॉल डिटेल खंगाल रही है. कॉल डिटेल और टावर लोकेशन के आधार पर उसके बरामदगी की कवायद में लग गयी है.

सुतापट्टी के डोमा पोखर स्थित व्यवसायी राजकुमार तोदी के कार्यालय से रहस्यमय स्थिति में गायब छोटी कल्याणी निवासी कंप्यूटर ऑपरेटर शोभित का चार दिनों बाद भी सुराग नहीं मिल पाया है. गुरुवार के अपराह्न सवा तीन बजे पत्नी संध्या केसरी से उसकी अंतिम बात हुई थी. बातचीत के दौरान कुछ ही देर में घर पर खाना-खाने आने को कहा था. लेकिन शाम सात बजे तक जब वह घर नहीं पहुंचा तो परिजनों को चिंता हुई थी. फोन किया गया तो उसका फोन स्वीच ऑफ मिला था. उसके बाद खोजबीन शुरू की गयी. डोमा पोखर स्थित कार्यालय में ही उसकी बाइक,चाबी और हेलमेट पायी गयी थी. कार्यालय के आसपास के लोगों ने भी उसे गुरुवार की शाम चार बजे तक देखे जाने की बात कही हैं.
पिता उमाशंकर प्रसाद नगर थाने में प्राथमिकी दर्ज करा दी. प्राथमिकी में उसके अपहरण की आशंका जतायी है.
उसके परिजनों का हाल बुरा है. उसकी पत्नी संध्या केसरी का रो-रो कर हाल बुरा है. उसके दोनों बच्चे सुधांशु व साक्षी स्कूल जाना छोड़ पिता के वापसी की राह देख रहे हैं.
अब बंदियों के लिए भी इ-आइकार्ड
कवायद 59 महिलाओं व 1686 पुरुष कैदियों को नवंबर महीने के प्रथम सप्ताह में मिलेगा कार्ड
कैदियों के लिए बनाये गये आइकार्ड उनके गले में 24 घंटे लटके रहेंगे. इस आइकार्ड में अंकित डाटा की हार्ड कॉपी जेल के अंदर कंप्यूटर में अंकित की जायेगी. जेल अधीक्षक कैदियों के बायोडाटा जुटाने में जुट गये हैं.
श हीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा के बंदी अब अपनी पहचान
नहीं छुपा सकेंगे. कैदियों की
पहचान के लिए केंद्रीय कारा में इ आइकार्ड (इलेक्ट्रॉनिक आइकार्ड) बनाया जायेगा. इस आइकार्ड में बंदियों के जेल के अंदर आने से लेकर उन पर कौन-कौन सा केस है, इसका पूरा डाटा अंकित रहेगा. कैदियों के बनाये गये आइकार्ड उनके गले में 24 घंटे लटके रहेंगे. इस आइकार्ड में अंकित डाटा की हार्ड कॉपी जेल के अंदर कंप्यूटर में अंकित की जायेगी. कैदियों का आइकार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है. जेल अधीक्षक कैदियों के बायोडाटा जुटाने में लगे हैं.
केंद्रीय कारा में बंद बंदियों का जो इलेक्ट्रॉनिक आइडेंटीफिकेशन कार्ड (आइकार्ड) बनाया जा रहा है, यह बिहार की जेलों में पहली बार हो रहा है. जेल में बंद 59 महिलाओं व 1686 पुरुष कैदियों के गले में आइकार्ड अगले महीने के प्रथम सप्ताह से दिखने लगेगा. सूबे के सभी जेलों के बंदियों का आइकार्ड बनाया जा रहा है.
ये है कार्ड की खासियत : बंदियों के बनाये गये इ आइकार्ड की खासियत यह होगी कि उसमें बंदियों के फोटो के साथ नाम, पता, केस नंबर समेत पूरी डिटेल होगी. कार्ड के हाथ में आते ही बंदी के बारे में सारी जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जायेगी. बंदी के रिहा होते वक्त कभी-कभी उसका रिकार्ड निकलवाने में समय लग जाता है.
अब आइकार्ड के जरिये मिनटों में कागजी कार्रवाई पूरी कर वे जेल से रिहा सकेंगे साथ ही बंदी जेल से छूट कर घर चले जाते हैं और उसकी पूरी जानकारी चाहिए तो इस कार्ड के जरिये मिल सकती है. बंदी जेल से छूटने के बाद कार्ड को अपने साथ घर ले जा भी सकते हैं.
आम लोगों की तरह बंदियों का भी पहचान पत्र होना जरूरी है. इससे जेल भ्रमण के दौरान किसी भी कैदी की पहचान तुरंत की जा सकेगी. जेल प्रशासन को इससे कई फायदे हैं.
सत्येंद्र कुमार, अधीक्षक, शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा

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