यह बात गलत तरीके से प्रचारित की जा रही है कि सरकार उद्योग या निजी कार्यों के लिए जमीन लेगी. संशोधन के बाद आदिवासी अपनी जमीन पर अपनी सुविधा के अनुसार व्यवसाय कर पायेंगे. बदले में वे जो जमीन का व्यवसायिक इस्तेमाल करेंगे, उस पर सरकारी दर का लगभग एक प्रतिशत लगान देंगे. राजधानी में अभी कई आदिवासी जमीन पर बैंक्वेट हॉल आदि हैं. कई अन्य व्यावसायिक कार्य चल रहे हैं. क्या ये विकास विरोधी नेता बतायेंगे कि ऐसे लोगों को व्यवसाय करने का अधिकार है या नहीं.
सरकार अब ऐसी दुकानों या बैंक्वेट हॉल, होटल आदि को नियमित कर सकेगी. पर किसी भी हालत में जमीन का मालिकाना हक नहीं बदलेगा. सरकार अभी भी जमीन अधिग्रहण करती है, लेकिन रैयत को मुआवजा मिलने में न्यूनतम दो साल का समय लगता है. अब यह काम सिर्फ चार माह में हो जायेगा. सरकार ने आजादी के बाद आदिवासियों के हित में एक जो बड़ा फैसला लिया है, वह है एसएआर कोर्ट को समाप्त करना. अब कोई भी मुआवजा देकर आदिवासी जमीन नहीं ले पायेगा. शायद इस बात का दुख: कुछ लोगों को ज्यादा है. इस बदलाव से आदिवासी के जमीन की बंदरबांट बंद हो जायेगी.