28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड की 80 हजार हेक्टेयर जमीन आठ साल में हो गयी बंजर : सर्वे

मिथिलेश झा रांची: झारखंड में अाठ साल में 80 हजार हेक्टेयर भूमि मिट्टी के कटाव के कारण लगभग बंजर हाे गयी है. इस भूमि की उपजाऊ परत (15 सेंटीमीटर की परत) बारिश आैर बाढ़ में बह चुकी है. इसमें उपज अब नहीं के बराबर हाे रही है. उपजाऊ मिट्टी बारिश और बाढ़ के कारण नालों […]

मिथिलेश झा

रांची: झारखंड में अाठ साल में 80 हजार हेक्टेयर भूमि मिट्टी के कटाव के कारण लगभग बंजर हाे गयी है. इस भूमि की उपजाऊ परत (15 सेंटीमीटर की परत) बारिश आैर बाढ़ में बह चुकी है. इसमें उपज अब नहीं के बराबर हाे रही है. उपजाऊ मिट्टी बारिश और बाढ़ के कारण नालों और नदियों में बहती जा रही है. भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) की संस्था स्पेस एप्लिकेशंस सेंटर, अहमदाबाद की अगुवाई में देश भर के 20 शिक्षण संस्थानों की मदद से सर्वे कराया है, जिसमें ये चौंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं.
वर्ष 2003-05 और 2011-13 के बीच रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट से ली गयी तसवीरों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गयी है. आंकड़े बताते हैं कि आठ साल में 80,050 हेक्टेयर (1.01%) नये क्षेत्र कटाववाले क्षेत्र में शामिल हुए हैं. झारखंड की कुल 79,71,600 हेक्टेयर भूमि में से 54,98,726 हेक्टेयर (कुल क्षेत्र का 68.98 फीसदी) कटाव के दायरे में है. इसमें से 23 लाख हेक्टेयर में कटाव की दर खतरनाक स्तर तक पहुंच गयी है. यदि इसे रोकने की तत्काल पहल नहीं हुई, तो भविष्य में खेती के लायक जमीन नहीं बचेगी. अध्ययन में झारखंड में कटाव की सबसे बड़ी वजह पानी को बताया गया है. हालांकि, आठ वर्ष बाद इसमें मामूली 0.01 फीसदी की कमी आयी है. वर्ष 2003-05 के दौरान हुए सर्वे में 50.65 फीसदी भूमि की गुणवत्ता बारिश और बाढ़ के कारण होनेवाले कटाव से प्रभावित हुई थी, जबकि वर्ष 2013-15 के दौरान यह प्रतिशत 50.64 ही रहा.
जंगलों का नष्ट होना भी कारण
झारखंड में सॉयल इरोजन की दूसरी सबसे बड़ी वजह वनस्पतियों और जंगलों का नष्ट होना बताया गया है. वन और वनस्पतियों के नष्ट होने से वर्ष 2003-05 के दौरान 16.40 फीसदी नये भू-भाग कटाव के दायरे में थे, तो वर्ष 2011-13 में 17.30 फीसदी. यानी 0.90 फीसदी नये इलाके कटाव क्षेत्र में आ गये.
कृषि वैज्ञानिक चिंतित
कृषि योग्य भूमि के लगातार बंजर होने से देश-दुनिया के कृषि वैज्ञानिक चिंतित हैं. भारत के कई राज्यों में इस स्थिति से निबटने के लिए युद्धस्तर पर काम हो रहा है. कई राज्यों ने बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने की दिशा में कुछ हद तक सफलता भी हासिल की है. झारखंड में निजी तौर पर कुछ किसान बंजर भूमि पर खेती कर रहे हैं, लेकिन संबंधित विभाग (सॉयल कंजरवेशन डायरेक्टरेट) इसके प्रति संवेदनशील नहीं है. समस्या के प्रति निदेशालय की उदासीनता इसी बात से समझी जा सकती है कि उसके पास कटाव से जुड़े आंकड़े तक नहीं हैं. हालांकि, इस निदेशालय का गठन ही मिट्टी का कटाव रोकने के लिए किया गया था. कृषि विभाग हो या कटाव रोकने के लिए विशेष रूप से गठित सॉयल इरोजन डायरेक्टरेट. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख के पास भी इससे जुड़ा कोई आंकड़ा नहीं है.
भारत सरकार की संस्था सर्वे ऑफ लैंड यूज एंड सॉयल, ने वर्ष 2007 में 65 जिलों की मिट्टी की गुणवत्ता पर रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें झारखंड के चार जिलों को शामिल किया गया था. इसके तथ्य भी चौंकानेवाले हैं.
विभाग बेपरवाह
स्थिति इतनी भयावह है, इसका किसी को अंदाजा भी नहीं होता, यदि भारत सरकार ने कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय और विज्ञान एवं अंतरिक्ष मंत्रालय के माध्यम से यह सर्वे न कराया होता. एक ओर झारखंड की संस्थाओं को आसन्न संकट का आभास तक नहीं है या वे इस तरफ से नजरें फेरे हुए हैं, तो दूसरी तरफ कुछ राज्यों ने गंभीर पहल की और बड़े भू-भाग को पूरी तरह से बंजर होने से बचा लिया. पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, ओड़िशा, राजस्थान, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में 19.5 लाख हेक्टेयर भूमि का उपचार कर उसे बंजर होने से बचाया गया. इन राज्यों में 4.4 लाख हेक्टेयर भूमि को गंभीरतम से कम खतरनाक श्रेणी में लाया गया है, जो इन राज्यों की सरकारों और वहां के अधिकारियों की गंभीरता को दर्शाता है.
मिट्टी में एसिड की मात्रा अधिक होने की वजह से हो रहा है कटाव : प्रो बीके झा
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के सहायक प्रोफेसर डॉ बीके झा कहते हैं कि मिट्टी का क्षरण या कटाव एक प्राकृतिक और निरंतर प्रक्रिया है. मानव सभ्यता को बचाये रखने के लिए मिट्टी बेहद अहम है. इसलिए मिट्टी के क्षरण को रोकना बेहद जरूरी है. 1,000 साल लग जाते हैं मिट्टी की एक परत तैयार होने में. 15 सेंटीमीटर की सबसे ऊपरी सतह को एक परत माना जाता है, जो सबसे अधिक उपजाऊ होती है. पानी को रोकने की व्यवस्था नहीं होने और वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण यही परत तेजी से बह रही है, क्योंकि झारखंड की मिट्टी में एसिड की मात्रा बहुत ज्यादा हो गयी है. इसके कारण मिट्टी में आयरन (लोहा) और अल्युमीनियम के तत्व ज्यादा हो गये और मिट्टी भुरभुरी या कंकरी हो गयी. यही वजह है कि जो मिट्टी पानी को सोख लेती थी, अब उसी पानी में बह जाती है. हल्की बारिश में भी. 15 सेंटीमीटर की परत बह जाने के बाद भूमि बंजर हो जाती है. श्री झा कहते हैं कि ऐसी जमीन में खाद डालने का भी कोई फायदा नहीं होता. उन्होंने कहा कि जहां जमीन में एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, वहां चूना डाल कर मिट्टी के पीएच बैलेंस को बढ़ाया जाता है, जिससे मिट्टी के पोषक तत्व पूरी तरह से नष्ट होने से बच जाते हैं.
दो से पांच साल में बदल जायेगी परिस्थितियां : प्रो रुसिया
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के प्रो डीके रुसिया ने बताया कि सॉयल इरोजन को रोकने के लिए गंभीर प्रयास करने की जरूरत है. पेड़-पौधे लगा कर, चेकडैम और तालाब व डोभा बना कर मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है. झारखंड में इस दिशा में कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन समस्या के निदान के लिए जो गंभीरता दिखनी चाहिए, वह अभी नहीं दिख रही है. उन्होंने बताया कि यदि पूरी ईमानदारी से कोशिश हो, तो दो से पांच साल के अंदर खेती योग्य जमीन का रकबा बढ़ाया जा सकता है.
सर्वे में सामने आये चौंकानेवाले तथ्य
स्पेस एप्लिकेशंस सेंटर (अहमदाबाद) के सर्वे में ये चौंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं. वर्ष 2003-05 और 2011-13 के बीच रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट से ली गयी तसवीरों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गयी है. आंकड़े बताते हैं कि आठ साल में 80,050 हेक्टेयर (1.01 फीसदी) नये क्षेत्र कटाववाले क्षेत्र में शामिल हुए हैं.
कई अध्ययन, एक रिपोर्ट
इससे पहले, वर्ष 2003 में वीसी झा और एस कापट ने समुद्र तल से 650 से 750 मीटर की ऊंचाई स्थित भू-भाग पर अध्ययन किया था. यह रिपोर्ट वर्ष 2013 में एशियन जर्नल ऑफ सॉयल साइंस में छपी. इसमें कहा गया कि वनों की अंधाधुंध कटाई और असमान भौगोलिक परिस्थितियों के कारण झारखंड में निरंतर मिट्टी का कटाव हो रहा है, जो भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है. वर्ष 2002 में सुंदरियाल और वर्ष 1999 में ध्यानी एवं त्रिपाठी ने भी अलग-अलग शोध रिपोर्ट में ऐसा ही निष्कर्ष निकाला था. दोनों ने कहा था कि दुनिया भर में मिट्टी के कटाव के कारण भूमि के बंजर होने का सिलसिला जारी है. वर्ष 1992 में रवांडा के किनोग ने अपनी शोध रिपोर्ट में कहा था कि जिन क्षेत्रों की मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक है, वहां कटाव तेजी से हो रहे हैं.
चार जिलों में है स्थिति भयावह
रिपोर्ट बताती है कि पलामू के कुल भू-भाग 8,02,291 हेक्टेयर में से 50,363 हेक्टेयर भूमि कटाव के दायरे में है. प सिंहभूम, पू सिंहभूम व सरायकेला-खरसावां की स्थिति बेहद खराब है. प सिंहभूम के कुल भू-भाग 5,29,021 में से 58,539 हेक्टेयर, पू सिंहभूम के 3,37,155 में से 27,783 हेक्टेयर व सरायकेला खरसावां के 2,72,340 में से 37,050 हेक्टेयर भूमि की मिट्टी में कटाव हो रहा है. यानी मिट्टी अपनी उर्वरा शक्ति खोती जा रही है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें