पटना
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सात अक्तूबर 2016 का दिन था, शाम सात बजकर 36 मिनट हुए थे, बिहार में बिजली की खपत का आंकड़ा 3769 मेगावाट पहुंच गया. इससे पहले कभी बिहार राज्य में पीक ऑवर बिजली की खपत का आंकड़ा इतना नहीं पहुंचा था. जो लोग झारखंड के अलग होने के तत्काल बाद बिहार के दौर को देख चुके हैं, उन्हें याद होगा कि एक समय बिहार में बिजली की कुल खपत ही 800-900 मेगावाट हुआ करती थी और वह भी पूरी नहीं हो पाती थी.
2005-06 में बिजली की पीक आवर आपूर्ति महज 1122 मेगावाट थी. महज 10 साल में राज्य में बिजली के उत्पादन, वितरण और खपत में जो अभूतपूर्व बदलाव हुआ है, उसी का नतीजा है कि आज पीक आवर खपत तीन गुनी से भी काफी अधिक हो
गयी है. और राज्य सरकार का लक्ष्य है कि अगले पांच-छह सालों में इसे 11 हजार मेगावाट तक पहुंचा दिया जायेगा. इस अविश्वसनीय बदलाव के दौर को याद करते हुए बिजली विभाग के एक अधिकारी याद करते हुए बताते हैं कि साल 2007 में रमजान महीने के दौरान एक बार बिजली की आपूर्ति 600 मेगावाट से भी कम हो गयी थी. बहुत जल्द दीपावली और छठ का त्योहार भी आने वाला था, राज्य की जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी. उसी वक्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई और केंद्र सरकार को अनुरोध भेजा कि राज्य को इस विपरीत स्थिति से बाहर निकालें. उसी वक्त पहली दफा निजी स्रोत से राज्य के लिए बिजली खरीदी गयी. और सच पूछिये तो उसी वक्त यह भी तय हुआ कि बिहार को बिजली संकट की इस शर्मनाक स्थिति से बाहर निकाला जाये.
मगर यह सब सामान्य बात नहीं थी. यह वह दौर था जब राज्य में सिर्फ 584 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता था. प्रति व्यक्ति खपत सौ किलोवाट के आसपास थी. राज्य में सिर्फ 45 पावरग्रिड स्टेशन थे, जाहिर सी बात है बिजली होते हुए भी हर इलाके में बिजली पहुंचाना आसान काम नहीं था. बिजली बिल वसूलने की व्यवस्था बहुत चाक-चौबंद नहीं थी. राज्य के आधे से अधिक गांव बिजली विहीन थे. विभाग के कामकाज का तरीका गैर व्यावसायिक था. इन तमाम मसलों में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत थी. मगर दृढ इच्छाशक्ति के साथ एक-एक मसले पर काम किया गया. और एक-एक कर तमाम दिक्कतों का समाधान निकालने की कोशिश हुई. यही वजह है कि आज राज्य में बिजली की स्थिति काफी बेहतर हुई है.
ऐसे बढ़ी सालाना पीक आपूर्ति
साल पीक आपूर्ति मेगावाट तारीख
2005-06 1122 10.10.2005
2006-07 1213 21.10.2006
2007-08 1244 19.10.2007
2008-09 1348 28.10.2008
2009-10 1508 17.10.2009
2010-11 1664 26.10.2010
2011-12 1712 08.09.2011
2012-13 1802 18.06.2012
2013-14 2335 03.11.2013
2014-15 2831 21.10.2014
2015-16 3459 02.10.2015
2016-17 3769 07.10.2016
बिजली उत्पादन में झारखंड से आगे निकला बिहार
साल 2000 में जब झारखंड बिहार से अलग हुआ था तो राज्य की 70 फीसदी विद्युत उत्पादन इकाइयां झारखंड के हिस्से में चली गयी थीं. वहां कोयले के खदानों और दूसरी तमाम सुविधाओं की वजह से यह सहज स्थिति थी. 2007 में राज्य की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 586.1 मेगावाट बतायी जाती थी, जिसमें 46.1 मेगावाट पनबिजली थी और 540 मेगावाट बिजली ताप विद्युतगृहों से उत्पादित होती थी. मगर आज महज नौ साल के अंतराल में हमारी विद्युत उत्पादन क्षमता 2759 मेगावाट पहुंच गयी है. इसमें 129.43 मेगावाट पनबिजली है. 114.12 मेगावाट दूसरे स्रोतों से हासिल होती है और 2516.24 मेगावाट बिजली ताप विद्युतगृहों में उत्पादित की जाती है.
जबकि आज झारखंड की विद्युत उत्पादन क्षमता 2625.91 मेगावाट है. हमने इस क्षेत्र में उसे पीछे छोड़ दिया है. आने वाले वक्त में कई और पावर प्लांट स्थापित होने जा रहे हैं. इससे हमारी विद्युत उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी. हालांकि ताप विद्युत गृहों से उत्पादित होने वाली बिजली महंगी होती है और पावर एक्सचेंज में सस्ती बिजली उपलब्ध रहती है, इसलिए कई बार राज्य सरकार को लगता है कि उत्पादन क्षमता बढ़ाने के बदले बिजली खरीदी ही जाये. गौरतलब है कि एनटीपीसी, बाढ़ की बिजली की दर 4.5 रुपये प्रति यूनिट पहुंच जाती है और इस विद्युत गृह की 70 फीसदी बिजली राज्य सरकार ही खरीदती है.
जबकि पावर एक्सचेंज में 2 से 2.5 प्रति यूनिट की दर से बिजली उपलब्ध रहती है.फिर भी अगले कुछ सालों में राज्य में बिजली की खपत तेजी से बढ़ने की संभावनाओं को देखते हुए बिजली उत्पादन के मसले पर भी जोर-शोर से काम हो रहा है. अगर ये तमाम परियोजनाएं पूरी हो जायें तो बिहार की बिजली उत्पादन क्षमता में 9560 मेगावाट की बढ़ोतरी हो जायेगी. अनुमान है कि 2022 तक राज्य में बिजली की खपत 11 हजार मेगावाट तक पहुंच जायेगी. यह बहुत सामान्य सी बात है, क्योंकि मध्यप्रदेश, गुजरात, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्य आज भी इतनी बिजली की खपत करते हैं.
2007 में 586.1 मेगावाट. 46.1 मेगावाट हाइड्रो, 540 थर्मल.
2015 में 2759 मेगावाट. 129.43 मेगावाट हाइड्रो, 114.12 मेगावाट अन्य, 2516.24 मेगावाट थर्मल.
झारखंड की विद्युत उत्पादन क्षमता- 2,625.91 मेगावाट
उत्तर बिहार में खपत का आंकड़ा 1600 मेगावाट पहुंचा
राज्य में एक वह दौर था जब उत्तर बिहार में सिर्फ इस वजह से बिजली संकट रहता था क्योंकि वहां बिजली पहुंचाना आसान काम नहीं था. बीच में गंगा नदी थी और नदी पार कराकर बिजली उस तरफ ले जाना होता था. राज्य की पावर ग्रिड व्यवस्था भी काफी लचर थी. उत्तर बिहार के शहरों की विद्युत वितरण व्यवस्था का भी हाल बुरा था. मतलब इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारना जरूरी थी.
पहला काम पावर ग्रिड की संख्या बढ़ाना और उसकी क्षमता को सुदृढ़ करना था. उस वक्त राज्य में सिर्फ 45 पावर ग्रिड थे. धीरे-धीरे पावर ग्रिड की संख्या बढ़ायी जाने लगी जो आज 99 तक पहुंच गयी है. यह विद्युत वितरण व्यवस्था को सुदृढ़ करने की दिशा में सबसे कारगर उपाय साबित हुआ. इसके साथ-साथ शहरों और गांवों में पुराने तारों को बदला गया. ट्रांसफारमरों की स्थिति सुधारी गयी. ट्रांसफारमर के जलने पर उसे बदले जाने की समय सीमा तय की गयी. उन पर से लोड हटाया गया ताकि वे जलें नहीं. कुल मिलाकर आधारभूत संरचना को बेहतर करने की दिशा में अच्छा काम किया गया. यही वजह है कि आज उत्तर बिहार में बिजली की खपत 1630 मेगावाट तक पहुंच गयी है.
हालांकि यह काम अभी पूरा नहीं हुआ है. कई इलाकों में अभी भी स्थिति नियंत्रण में नहीं है. बिजली विभाग पावर ग्रिड की संख्या को बढ़ाकर 150 तक पहुंचाने की कोशिश में है, तभी स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में आ सकेगी. तभी विभिन्न शहरों में घंटों होने वाले पावर कट की स्थिति से निबटा जा सकेगा. आज भी कई ग्रिडों को मांग से आधा या उससे कुछ अधिक बिजली की ही आपूर्ति हो रही है. हालांकि विभाग के लोग कहते हैं कि अगले छह महीने या एक साल में बेहतर नतीजे सामने आ सकते हैं.
दरअसल बिजली के मामले में हमारा इतिहास इतना बुरा रहा है कि उसके मामले आज जो हुआ वह किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं लगता. अब जैसे ग्रामीण विद्युतीकरण के मामले को ही देखें. 2005 में राज्य के 39 हजार से अधिक गांवों में से सिर्फ 19,251 गांव तक ही बिजली पहुंची थी. 19,764 गांव बिजली विहीन थे. यह बहुत बड़ी चुनौती थी. राज्य के आधे से अधिक गांवों को रोशन करना था.
मगर इस दिशा में ताकत झोंकी गयी और शर्मनाक स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश की गयी. पिछले 11 सालों में लगभग 19 हजार गांवों तक बिजली पहुंचायी गयी. आंकड़े बताते हैं कि 2016 के सितंबर माह तक अब सिर्फ 767 गांव ऐसे बचे हैं, जहां बिजली पहुंचायी जानी है. इनमें से भी 571 गांवों में विद्युतीकरण की प्रक्रिया जारी है. पिछले वित्तीय वर्ष में 1752 गांवों का विद्युतीकरण हुआ है. और जिस रफ्तार से काम हो रहा है उससे लगता है कि बहुत जल्द यह लक्ष्य हासिल कर लिया जायेगा.
2005- में 19764 गांव बिजली विहीन थे. जो कुल गांवों के आधे से अधिक थे. बिजली सिर्फ 19251 गांवों में आती थी.
तीन साल में प्रति व्यक्ति खपत दोगुनी से अधिक
वैसे तो प्रति व्यक्ति खपत के मामले में बिहार की स्थिति आज भी बहुत दयनीय है. गुजरात के लोग बिहार के मुकाबले प्रति व्यक्ति आठ गुना अधिक बिजली खपत करते हैं. पड़ोसी राज्य यूपी दो गुना, बंगाल दो गुने से अधिक और झारखंड तीन गुने से अधिक बिजली की खपत करता है. ओड़िशा जैसा बीमारू राज्य हमसे प्रति व्यक्ति बिजली की खपत के मामले में छह गुने से अधिक आगे है. मध्य प्रदेश के लोग भी तीन गुनी बिजली खपत करते हैं.
मगर महज तीन साल पहले हमलोग प्रति व्यक्ति जितनी बिजली खपत करते थे वह तो और भी शर्मनाक आंकड़ा था. पिछले कुछ सालों में हुए बदलाव का नतीजा है कि आज बिहार में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 265 किलोवाट पहुंच गयी है. 2012-13 में यह सिर्फ 120 किलोवाट थी. खपत की इस दर में बढ़ोतरी उपलब्धता की वजह से ही हुई है.
2001 में बिहार के सिर्फ 5 फीसदी गांव के लोग बिजली का इस्तेमाल करते थे. देश का औसत 44 फीसदी था. 2011 में 10 फीसदी और देश 55 फीसदी हुआ. आज यह 89 फीसदी पहुंच गया है.
बिलिंग की व्यवस्था सुधरी
पहले बिहार में बिजली उत्पादन, वितरण और बिलिंग जैसे तमाम काम एक ही संस्था देखती थी बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड. जिसे हम बिजली बोर्ड के नाम से पुकारते थे. मगर काम को अधिक व्यावसायिक और प्रभावी बनाने के लिए इसे बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड का नाम दिया गया और इसे पांच अलग-अलग हिस्सों में बांटा गया.
अलग-अलग पांच कंपनियां
1. बिहार स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड- काम विद्युत उत्पादन.
2. बिहार स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड- काम विद्युत ट्रांसमिशन.
3. नार्थ बिहार पावर डिस्ट्रीव्यूशन कंपनी लिमिटेड- उत्तर बिहार में बिजली की आपूर्ति एवं बिलिंग.
4. साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीव्यूशन कंपनी लिमिटेड- दक्षिण बिहार में बिजली की आपूर्ति एवं बिलिंग.
5. बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड- एपेक्स होल्डिंग कंपनी.
इन कंपनियों के जरिये राज्य में बिजली के उत्पादन, ट्रांसमिशन, आपूर्ति, बिलिंग आदि व्यवस्था को प्रभावी बनाने की कोशिश की गयी. कुछ साल पहले तक बिहार में बिल वसूलना काफी डेढ़ी खीर माना जाता था, मगर हाल के वर्षों में इसमें भी सुधार हुआ और बिल की गड़बड़ियों को लेकर जो अव्यवस्था का माहौल बना था, उसे भी ठीक करने की कोशिश की जा रही है.
देश के 15 बड़े राज्यों में उत्पादन, पीक आवर खपत और प्रति व्यक्ति खपत की स्थिति
उत्पादन(एमबी) पीक आवर खपत(एमबी) प्रति व्यक्ति खपत(केबी)
1. उत्तर प्रदेश 15,721.80 14,454 502
2. मध्य प्रदेश 16,550.81 12,439 813
3. गुजरात 29,431.13 15,480 2,105
4. महाराष्ट्र 38,372.83 22,100 1,257
5. बंगाल 9,563.84 8,138 647
6. कर्नाटक 15,271.02 9,905 1,211
7. छत्तीसगढ़ 13,688.19 4,588 1,719
8. झारखंड 2,625.91 1,160 835
10. बिहार 2,759.79 3769 265
11. राजस्थान 17,228.55 11,610 1,123
12. पंजाब 10,590.38 10,525 1,858
13. तमिलनाडु 23,104.91 15,511 1,616
14. आंध्र प्रदेश 13,688.80 6,773 1,040
15. ओड़िशा 9,036.52 4,576 1,419
प्रमुख विद्युत उत्पादन इकाइयां
बरौनी थर्मल पावर स्टेशन कांटी थर्मल पावर स्टेशन एनटीपीसी कहलगांव एनटीपीसी बाढ़
कोसी जलविद्युत परियोजना
लेिकन अब भी हैं हम पीछे
इन उपलब्धियों के बावजूद दूसरे राज्यों के मुकाबले हमारी स्थिति बहुत बेहतर नहीं है. देश के 15 बड़े राज्यों को देखें तो उत्पादन और पीक आवर खपत में हमारा स्थान 14वां है और प्रति व्यक्ति खपत के मामले में हम देश के सभी राज्यों में सबसे पिछड़े हैं. इस लिहाज से इन उपलब्धियों का सिर्फ सांकेतिक महत्व है कि हमारी दिशा सही है. मगर अभी काफी बड़ी चुनौती हमारे सामने है. राज्य सरकार यह मानकर चल रही है कि 2022 तक राज्य में बिजली की खपत का आंकड़ा 11 हजार मेगावाट तक पहुंच जायेगा. ऐसे में उत्पादन और ट्रांसमिशन क्षमता को और बेहतर बनाने की जरूरत है. हालांकि इस दिशा में काम भी चल रहा है. कई कंपनियां पावर प्लांट लगाने में जुटी हैं. नये बिजली सब स्टेशनों की स्थापना का काम भी चल रहा है. अब देखना है कि इन कोशिशों के जरिये आने वाले समय में हम इन उपलब्धियों को कहां तक ले जा सकते हैं.