उर्मिला कोरी
फिल्म: सात उचक्के
निर्देशक: संजीव शर्मा
कलाकार: मनोज बाजपेयी, के के मेनन, विजय राज, अनु कपूर, अदिति शर्मा, अनुपम खेर और अन्य
रेटिंग: ढाई
पिछले कुछ समय से सिनेमा नायक खलनायक के सीमित दायरे से निकलकर ग्रे किरदारों के बीच जा पहुंचा है लेकिन इस में भी बहुत कम किरदार ऐसे नज़र आए हैं जो नीचे तबके और परिवेश के हो. गीतकार और अस्सिटेंट निर्देशक रह चुके संजीव शर्मा ने अपने निर्देशन के लिए इसी तबके को फिल्म ‘सात उचक्के’ के लिए चुना है. जो बुरे हैं लेकिन दिल के मासूम भी हैं.
फिल्म की कहानी पुरानी दिल्ली के कुछ किरदारों की हैं जो छोटी मोटी चोरी और हेरा फेरी करके अपनी ज़िन्दगी बसर कर रहे लोगों हैं. जिनकी ज़रूरत और लालच उन्हें एक साथ कर देती है. फिर ये सभी ‘सात उचक्के’ एक होकर एक बड़ी चोरी की तैयारी करते हैं. हवेली में छिपे पुराने खजाने को चुराने की तैयारी होती है लेकिन यह सब आसान नहीं है. पुलिस का डर तो है ही हवेली का पागल मालिक बात-बात पर गोली चलाता है.
इसके लिए इन सात उचक्कों को कई पापड़ बेलने पड़ते हैं. फिल्म का क्लाइमेक्स सीख देने वाला है जो इस रस्टिक ट्रीटमेंट लिए फिल्म के जायके को बिगाड़ जाता है. उसके बाद मनोज बाजपेयी के किरदार को 2 करोड़ की लॉटरी लगना. हिंदी सिनेमा के हैप्पी एंडिंग के प्रचलित फार्मूले से यह फिल्म भी नहीं बच पायी है. फिल्म की कमज़ोर कड़ी इसका क्लाइमेक्स ही है. दिल्ली अब तक परदे पर कई बार नज़र आई है लेकिन इस फिल्म में नज़र आई पुरानी दिल्ली से राजधानी दिल्ली बिलकुल ही अलग नज़र आई है.
इसके लोकेशन्स फिल्म को और ज़्यादा रियल बना जाते हैं. इस फिल्म का एक अहम किरदार पुरानी दिल्ली की तंग गलियां और रास्ते हैं. फिल्म में जमकर गलियां और द्विअर्थी शब्द हैं. शायद हर एक वाक्य में एक गाली या फिर डबल मीनिंग संवाद छुपा है. फिल्म का यह पहलु भी फिल्म को कमज़ोर कर जाता है. इस वजह से यह फिल्म शायद सभी को अपील न करे.
अभिनय की बात करें तो फिल्म की यूएस पी इससे जुड़े कलाकार और उनका अभिनय है. मनोज बाजपेयी और के के मेनन अभिनय के ये नाम है जो परदे पर हमेशा ही कमाल कर जाते हैं. इस बार भी यही नज़र आया. अभिनेता विजय राज ने भी इनका बखूबी साथ दिया. सभी अपने अपने स्पेस में उम्दा अभिनय कर गए हैं. इनका साथ ही इस फिल्म को खास बना जाता है. अभिनेत्री अदिति शर्मा की भी तारीफ करनी होगी. इतने मंझे हुए कलाकारों के बीच उन्होंने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्शायी है.
अनु कपूर रहस्य से भरे अपने किरदार को खूबी के साथ अपने संवाद अदायगी के उतार चढ़ाव से निभा गए हैं. अनुपम खेर के लिए फिल्म में करने को कुछ ख़ास नहीं था. बाकी के किरदार अपनी भूमिका में पूरी तरह से रचे बसे हैं. फिल्म के गीत संगीत की बात करें तो नज़र लागी राजा जैसे लोकगीतों का फिल्म में इस्तेमाल हुआ है जो सिचुएशन से बखूबी मेल खाते हैं.