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मरीजों के परिजन रोज करते हैं हंगामा
औरंगाबाद शहर : औरंगाबाद का सदर अस्पताल वैसे तो मॉडल अस्पताल है, जहां मरीजों के हर मर्ज का इलाज होना चाहिए. लेकिन इस अस्पताल की व्यवस्था अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से भी बदतर हो गयी है. यहां प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में मरीज पहुंचते हैं, लेकिन इलाज सर्दी और बुखार जैसे सामान्य रोगों से पीड़ित […]
औरंगाबाद शहर : औरंगाबाद का सदर अस्पताल वैसे तो मॉडल अस्पताल है, जहां मरीजों के हर मर्ज का इलाज होना चाहिए. लेकिन इस अस्पताल की व्यवस्था अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से भी बदतर हो गयी है. यहां प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में मरीज पहुंचते हैं, लेकिन इलाज सर्दी और बुखार जैसे सामान्य रोगों से पीड़ित रोगियों का ही हो पाता है. गंभीर स्थिति में रोगियों को या तो यहां से रेफर कर दिया जाता है, या फिर भरती कर खानापूर्ति की जाती है.
महज तीन डॉक्टरों के भरोसे यह सदर अस्पताल चल रहा है. गुरुवार की सुबह ओपीडी प्रारंभ होने के पहले लगभग 200 मरीज कतार में लग गये थे. जैसे-जैसे दिन चढ़ते गया, वैसे-वैसे मरीजों की कतार लंबी होती चली गयी. दोपहर 12 बजे तक लगभग 800 मरीज पहुंच चुके थे, लेकिन इनके इलाज के लिये सिर्फ दो डॉक्टर आरबी चौधरी और खुद डीएस राजकुमार प्रसाद ओपीडी की कमान संभाल रहे थे. वर्तमान में उपाधीक्षक सहित चार डॉक्टर मरीजों के इलाज के लिये सदर अस्पताल में कार्यरत हैं. डाॅ. आरबी चौधरी, डाॅ अशोक दूबे, डाॅ सुनील कुमार और उपाधीक्षक डाॅ राजकुमार प्रसाद.
उपाधीक्षक के ऊपर अस्पताल की व्यवस्था देखने की भी जिम्मेदारी है. सवाल उठता है कि अगर उपाधीक्षक मरीजों के इलाज में ही लगे रहे, तो अस्पताल की अन्य व्यवस्था कौन देखेगा. पता चला कि डाॅ मुकेश, डाॅ आशुतोष और डाॅ सुजीत मनोहर की प्रतिनियुक्ति सदर अस्पताल में की गयी है. इसमें डाॅ सुजीत पीएचसी देव से सदर अस्पताल में लाये गये हैं.
डाॅ मुकेश और डाॅ आशुतोष को एडिशनल पीएचसी से सदर अस्पताल की जिम्मेवारी दी गयी है, वह भी सप्ताह में मात्र दो दिन. कान का डॉक्टर है ही नहीं. आये दिन मरीजों के परिजन इलाज काे लेकर अस्पताल में हंगामा करते हैं.
छोटे कमरे में चल रहा पुरुष वार्ड : सदर अस्पताल की व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी है. कहने को तो यहां कई वार्ड हैं, लेकिन सिर्फ नाम का. रेफर का पुरजा मरीजों को थमाना यहां एक आदत सी बन गयी है. सदर अस्पताल के पुरुष वार्ड को तोड़ कर आइसीयू वार्ड बनाया जा रहा है, जबकि पुरुष वार्ड को छोटे कमरे में शिफ्ट कर दिया गया है. नशा मुक्ति केंद्र की व्यवस्था तो देखने लायक है, लेकिन यहां भी डॉक्टर नहीं हैं. पता चला कि नशामुक्ति केंद्र के डॉक्टर छुट्टी पर हैं और इसकी देखरेख डीएस के जिम्मे है. प्रसव वार्ड की स्थिति भी बदतर है.
क्या कहते हैं उपाधीक्षक
सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डाॅ. राजकुमार प्रसाद अस्पताल की व्यवस्था पर खुद ही सवाल खड़ा करते हैं. उन्होंने स्पष्ट कहा कि व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिये कई बार विभाग के वरीय पदाधिकारियों का ध्यान आकृष्ट कराया गया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. अभी जो व्यवस्था है, उसी में काम चलाना पड़ रहा है. मरीजों की संख्या प्रतिदिन हजार से 1200 के करीब होती है. किसी तरह इनका इलाज हो पाता है.
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