सीतामढ़ी : हमानिया कमेटी मेहसौल के सौजन्य से आजाद चौक पर बुधवार की संध्या अमन-चैन व सद्भावना को समर्पित ‘मुशायरा सह कवि-सम्मेलन’ का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता शफी आजिज ने की. मंच संचालन गीतकार गीतेश ने किया. कमेटी की ओर से कवि एवं शायरों को डायरी व कलम देकर सम्मानित किया गया. सर्वप्रथम मेहसौल के प्रसिद्ध मरहूम शायर बदरूल हसन बद्र को उनके भतीजे मो जुनैद आलम द्वारा काव्यांजलि अर्पित की गयी.
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… इनसानियत से ही मजहब की पहचान है
सीतामढ़ी : हमानिया कमेटी मेहसौल के सौजन्य से आजाद चौक पर बुधवार की संध्या अमन-चैन व सद्भावना को समर्पित ‘मुशायरा सह कवि-सम्मेलन’ का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता शफी आजिज ने की. मंच संचालन गीतकार गीतेश ने किया. कमेटी की ओर से कवि एवं शायरों को डायरी व कलम देकर सम्मानित किया गया. सर्वप्रथम […]
तत्पश्चात कमेटी के सचिव अलाउद्दीन बिस्मिल ने अमन-चैन व एकता का पैगाम दिया. कार्यक्रम का आगाज गीतकार गीतेश की रचना ‘मंदिर की आड़ से न मसजिद की आड़ से, आओ देखें एक दूजे को प्यार से, राष्ट्रहित का सम्मिलित स्वर गूंजे, एकता की ऊंची मीनार से’ हुआ. युवा कवि पंकज कुमार की प्रेमपरक गजल ‘कभी हंस-हंस के जीते हैं कभी अश्कों को पीते हैं, मुहब्बत के हम दीवाने कब चैन से सोते हैं’ ने महफिल को गति प्रदान की.
शफी आजिज की गजल ‘जानकार मुफलिस मुझे तुमने निगाहें फेर ली’ एवं तौहीद अश्क की गजल ‘किसी पे जां लुटाने का निशाना हम भी रखते हैं, भिखारी हैं, मुहब्बत का खजाना हम भी रखते हैं’ ने एक अलग छाप छोड़ दी. कटिहार से आये चर्चित कवि रमाशंकर मिश्र की रचना ‘द मीनिंग ऑफ लव समझाओ न, यूं टॉप कर जाओ न’ ने महफिल को जवां बना दिया. अलाउद्दीन बिस्मिल की गजल ‘इनसानियत से बड़ा धर्म कोई नहीं, इनसानियत से हीं मजहब की पहचान है’
ने भरपूर वाहवाही बटोरी. उमाशंकर लोहिया, मुरलीधर झा मधुकर, राम किशोर सिंह चकवा, गुफरान राशिद, मो जुनैद आलम, ताबिश रामपुरी, इरशाद साहिर, शराफत अली दिलकश, अशरफ मौलानगरी एवं जमील अख्तर शफीक ने अपनी बेहतरीन शायरी से महफिल में इंद्रधनुषी छटा बिखेर दी.
अपनी रचना सुनाते गीतकार गीतेश.
रहमानिया कमेटी की ओर से मुशायरा सह कवि सम्मेलन का आयोजन
कवि व शायरों को डायरी व कलम देकर किया सम्मानित
जानें, हजरत इमाम हुसैन के बारे में
हजरत इमाम हुसैन मोहम्मद साहब के नवासा (नाती) थे. वे मदीना के रहने वाले थे. वहां का राजा यजीद हुआ करता था. उस दौरान तमाम मुस्लमान मोहम्मद साहब को अपना सब कुछ मानते थे, जबकि राजा यजीद का कहना था कि लोग उसे सब कुछ माने. हजरत इमाम हुसैन भी उन लोगों में शामिल थे जो यजीद को राजा नहीं मानते थे. एक बार की बात हैं कि यजीद ने हजरत इमाम को कर्बला में आने का निमंत्रण भेजा. वहां आने पर उसने इमाम से कहा कि वे उसे राजा मान ले. वे इंकार कर गये और निमंत्रण को दगाबाजी बताया. इमाम हुसैन की जिद्द पर यजीद ने उन्हें युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा. उनके परिवार व उनके रिश्तेदारों का हुक्का-पानी बंद कर दिया. यहां तक कि यजीद ने जलाशयों पर सेना का पहरा बैठा दिया. युद्ध हुआ और उसमें एक-एक कर इमाम हुसैन के तमाम रिश्तेदार शहीद हो गये, जिसमें अब्बास, अकबर व मासूम असगर भी शामिल थे. अंत में यजीद ने इमाम हुसैन को भी सजदा यानी नमाज के दौरान शहीद कर दिया.
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