आयोजन. गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा, मुहर्रम है आतंकवाद के खिलाफ जिहाद का पैगाम
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आयोजन. गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा, मुहर्रम है आतंकवाद के खिलाफ जिहाद का पैगाम मजहब नहीं, मजहब के सियासी इस्तेमाल की उपज है आतंकवाद. वास्तव में मजहब प्रेम करना सिखाता है. इसलिए मुहर्रम आतंकवाद के खिलाफ जिहाद का पैगाम है. मुंगेर : सांस्कृतिक क्रांति के लोकमंच गंगोत्री के तत्वावधान में गुरुवार को विशेष गोष्ठी का […]
मजहब नहीं, मजहब के सियासी इस्तेमाल की उपज है आतंकवाद. वास्तव में मजहब प्रेम करना सिखाता है. इसलिए मुहर्रम आतंकवाद के खिलाफ जिहाद का पैगाम है.
मुंगेर : सांस्कृतिक क्रांति के लोकमंच गंगोत्री के तत्वावधान में गुरुवार को विशेष गोष्ठी का आयोजन किया गया. उसकी अध्यक्षता प्रो. अवध किशोर प्रसाद सिंह ने की. जबकि मुख्य वक्ता डॉ शिवचंद्र प्रताप थे. उन्होंने मुहर्रम पर आयोजित चर्चा गोष्ठी में कहा कि मजहब नहीं, मजहब के सियासी इस्तेमाल की उपज है आतंकवाद. वास्तव में मजहब प्रेम करना सिखाता है. इसलिए मुहर्रम आतंकवाद के खिलाफ जिहाद का पैगाम है.
उन्होंने अपने एक शेर ” एक को दूसरे मजहब से लड़ाना खुदा का काम नहीं, सलामती सबकी न चाहे जो वो इस्लाम नहीं ”. उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि इस्लाम को हथियार के तरह इस्तेमाल करने के फिराक में लगा सिरिया का तत्कालीन अधिनायक यजीद बौखला उठा तब हजरत मोहम्मद ने इस्लाम की कमान सौंपने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि इस्लाम का गहरा और दर्दनाक ताल्लुकात मजहबी आतंकवाद से रहा है. गौरतलब है कि इस्लाम के शिया सम्प्रदाय वाले अगर शोक मनाकर संतोष कर लेते हैं. मुहर्रम के दिन तो इससे फकत लाचारी का इजहार होता है और सुन्नी संप्रदायवाले अगर इसे शहादत का दिन मानकर गौरवान्वित हो लेते हैं. हजरत हुसैन और 72 परिजन की कत्लेआम पर तो यह भी बहुत फख की बात नहीं है. क्योंकि यजीद जैसे आतंकवाद के हाथों यों बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया जाना मजहब की जीत नहीं है.
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