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अंगरेजों के जमाने से कृष्णानगर बड़ी दुर्गा मंदिर हो रही पूजा

आजाद की लड़ाई में शक्ति स्थल के रूप में होती थी पूजा पहले बांस की झाेपड़ी में पूजा होती थी साहिबगंज : कृष्णानगर बड़ी दुर्गा मंदिर में पूजा शुरुआत होने का कोई पुख्ता सबूत तो नहीं है पर बुजुर्गों के अनुसार यहां उस वक्त से पूजा स्थल है. जब रातों में अंगरेज सिपाही घोड़ा पर […]

आजाद की लड़ाई में शक्ति स्थल के रूप में होती थी पूजा

पहले बांस की झाेपड़ी में पूजा होती थी
साहिबगंज : कृष्णानगर बड़ी दुर्गा मंदिर में पूजा शुरुआत होने का कोई पुख्ता सबूत तो नहीं है पर बुजुर्गों के अनुसार यहां उस वक्त से पूजा स्थल है. जब रातों में अंगरेज सिपाही घोड़ा पर घुमा करते थे. कुलीपाड़ा क्षेत्र घने जंगलों से घिरा है. जहां रात के समय कोई गुजरना सुरक्षित महसूस नहीं करता था. देश की आजादी की लड़ाई में जंगे आजादी के सेनानी इन्हीं जंगलों में झोपड़ी बना कर रहते थे. और मां दुर्गा की अराधना करते थे. कमेटी अध्यक्ष जय किशोर प्रसाद बताते हैं कि 1836 के आस पास जब यह इलाका पूरा बिहड़ था. तब भोगली राय नामक एक साधक ने इस स्थल में पूजा अर्चना शुरू की थी.
पहली बार काला भैसा का बलि चढ़ाया था. मुहल्लावासी 80 वर्षीय सरस्वती देवी बताती है कि जब बच्ची थी तब बांस की झाेपड़ी में पूजा होती थी. रेलवे ठेकेदार रामदास किन्नारा ने पूजा में सहयोग किया. बुद्धिजीवी विश्वनाथ सिंह, विज वर्मा, रंजीत गुप्ता, सत्य किशोर प्रसाद, गणेश प्रसाद तिवारी, नागेंद्र तांती आदि ने सहयोग कर मंदिर का निर्माण कराया. तब से यह स्थान शक्ति स्थल के रूप में विख्यात हो गया. यहां पर मन्नते मांगनेवाले कई भक्तों की मुरादें पूरी हो चुकी है. पूजा के दौरान भव्य मेला का आयोजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है.

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