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विदेशों तक पहुंचा रहीं देसी खाने का स्वाद

स्टार्टअप : खाने-खिलाने के बिजनेस में महिलाएं कमा रहीं हैं नाम आमतौर पर जब स्टार्टअप की बात होती है तो हम आइटी जगत से बाहर सोच ही नहीं पाते. लेकिन ऐसे भी कई स्टार्टअप्स हैं, जो इंटरनेट के तामझाम से दूर धरातल पर अपनी सेवाओं के जरिये नाम और पैसा कमा रहे हैं. इन्हीं में […]

स्टार्टअप : खाने-खिलाने के बिजनेस में महिलाएं कमा रहीं हैं नाम

आमतौर पर जब स्टार्टअप की बात होती है तो हम आइटी जगत से बाहर सोच ही नहीं पाते. लेकिन ऐसे भी कई स्टार्टअप्स हैं, जो इंटरनेट के तामझाम से दूर धरातल पर अपनी सेवाओं के जरिये नाम और पैसा कमा रहे हैं. इन्हीं में से एक है फूड स्टार्टअप, जिसमें पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. आइए जानें –

ब्रिटेन में आसमां खान एक जाना-माना नाम है. उनका स्टार्टअप दार्जिलिंग एक्सप्रेस, ब्रिटेन में रहनेवाले लोगों को दक्षिण एशियाई, खासकर पारंपरिक भारतीय व्यंजन मुहैया कराता है. बुलंदशहर और बंगाल के शाही परिवार से संबंध रखनेवाली आसमां खान का जन्म कोलकाता में हुआ. पढ़ाई-लिखाई और परवरिश भी वहीं हुई. 1990 के दशक की शुरुआत में वह ब्रिटेन चली गयीं. शुरुआत में आसमां को खाना बनाना नहीं आता था, इसलिए उनके पति को जो रूखा-सूखा बनाना आता था, वह उससे ही काम चलाती रहीं. ब्रिटेन में उन्हें उन स्वादिष्ट व्यंजनों की कमी खलने लगी, जिन्हें खाते हुए वे कोलकाता में बड़ी हुई थीं. वे इन्हें ‘कलकत्ता मुसलिम फूड’ कहती हैं.

यानी अवध, बंगाल और हैदराबाद की पाक कलाओं का मिलाजुला रूप. बहरहाल, आसमां खाना बनाना सीखने के लिए भारत लौटीं, खासकर उन पकवानों के लिए जो उनके परिवार में परंपरागत तरीकों से पीढ़ियों से बनते आ रहे हैं. और इस तरह खाना पकाने की शाही विरासत से उनकी मोहब्बत हुई. उन्होंने वर्ष 2012 में लंदन में अपने घर में एक सुपर क्लब खोला और उसे दार्जिलिंग एक्सप्रेस का नाम दिया. आसमां खान अपनी सफलता का श्रेय अपनी टीम को देती हैं. वो कहती हैं, ये सभी महिलाएं हैं और सभी मुझसे ज्यादा उम्रदराज हैं. ये हर जगह की हैं – भारतीय, रोमानियाई, इजराइली और ऑस्ट्रेलियाई. उन्हें यह देखकर अच्छा लगता है कि महिलाएं लंदन में खानपान पर अपना दावा मजबूत कर रही हैं क्योंकि आज भी हमारे घरों में जो खाना बनता है, उन्हें ज्यादातर महिलाएं ही बनाती हैं.

आसमां अकेली नहीं हैं. लंदन में ऐसी बहुत-सी दक्षिण एशियाई महिलाएं हैं, जिन्होंने इतनी ही सफलता से अपने काम को अंजाम दिया है. इनमें से ज्यादातर ने शेफ बनने की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है.

उनके पास रेस्तरां खोलने के लिए संसाधन भी नहीं थे. लेकिन वे वैश्विक चलन को समझते हुए स्ट्रीट फूड के तौर तरीकों को नया रूप दे रही हैं. वो सुपर क्लब खोल रही हैं या रेस्तरां को पाक कला के सुझाव दे रही हैं. आसमां कहती हैं कि जब उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया तो उनके घर चिकन चॉप, चुकंदर का रायता और कलकत्ता बिरयानी का जायका लेने के लिए प्रवासी भारतीय, फ्रांसीसी पड़ोसी और फूड ब्लॉगर्स की भीड़ जुटनी शुरू हो गयी. इससे उत्साहित होकर आसमां ने अपने व्यवसाय को एक पब में ले जाने का फैसला किया.

इसी तरह धारिणी शिवाजी ने साल 2014 में विजुअल मर्केंडाइजर की नौकरी छोड़ लंदन में श्रीलंकाई खाने का प्रचार करने के लिए स्ट्रीट फूड कोथु कोथु शुरू किया. गौरतलब है कि कोथु रोटी श्रीलंका में एक लोकप्रिय स्ट्रीट फूड है जो गोधाम्बा रोटी से बनती है. इसे मांस, सब्जी, अंडा, मसाले और नारियल के साथ मिलाकर बनाते हैं.

इसमें लहसुन, मिर्च और नींबू भी पड़ता है. कोथु-कोथु की सफलता ने श्रीलंकाई व्यंजनों को गैर श्रीलंकाइयों के मुख्य भोजन का हिस्सा बना दिया और उपलब्धता बढ़ा दी. धारिणी कहती हैं, कई लोगों की सलाह के बावजूद मैंने शाकाहारी खाने में पनीर को शामिल नहीं किया, क्योंकि पनीर श्रीलंकाई नहीं है. मैं वही करती हूं जो मेरी मां ने सिखाया था, यानी मसाले की सही मात्रा, ताकि यह बहुत तीखा न हो.

इसी बीच कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जो सेहतमंद भारतीय खाने में कुछ नया करने की कोशिश कर रही हैं.

उपमा अरोड़ा और आरती बारेजा को वर्ष 2014 में ढाबा लेन शुरू करने का आइडिया आया, जो उचित मूल्य पर सेहतमंद भारतीय भोजन मुहैया कराता है. इस बारे में उपमा कहती हैं, भारतीय व्यंजनों को चिकनाईवाला (तैलीय और वसायुक्त) खाना बतानेवाले लोगों की बातों से मैं तंग आ गयी थी. मेरा आइडिया था कि हर चीज ताजी हो, 600 कैलोरी के अंदर हो और कीमत छह पाउंड से अधिक न हो. अब उनके ग्राहकों में कॉग्नीजेंट, ट्रांसफरवाइज और उबर जैसी कंपनियां हैं.

उपमा का मानना है कि भोजन के व्यवसाय में अधिक महिलाओं के आने के पीछे लंदन की समावेशी संस्कृति का बड़ा हाथ है. वहीं आसमां का मानना है कि महिलाओं को अक्सर ‘3-सी’ यानी कैपिटल (पूंजी), कनेक्शंस (संपर्क) और कांफिडेंस (आत्मविश्वास) की कमी का सामना करना पड़ता है.

इसलिए प्रोत्साहन और समर्थन बहुत मददगार होता है. आसमां कहती हैं कि आनेवाले समय में वह एक ऐसा फोरम बनाने की सोच रही हैं, जो प्रवासी महिलाओं और उनकी विविध पाक कला विरासत को बढ़ावा दे. वे वहां अपने अनुभव बांट सकें, दूसरों से प्रेरणा ले सकें, खाने और यादों के सहारे एक-दूसरे से घुल-मिल सकें.

(इनपुट बीबीसी से साभार)

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