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नक्शा घोटाले में सुप्रीम कोर्ट में हारी सीबीआइ

रांची : नक्शा घोटाले के कानूनी जंग में सीबीआइ कोर्ट में हार गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें हाइकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गयी थी. हाइकोर्ट ने सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश की अदालत द्वारा अभियुक्तों के खिलाफ लिये गये संज्ञान(कॉगनिजेंस) को रद्द कर दिया था. […]

रांची : नक्शा घोटाले के कानूनी जंग में सीबीआइ कोर्ट में हार गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें हाइकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गयी थी. हाइकोर्ट ने सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश की अदालत द्वारा अभियुक्तों के खिलाफ लिये गये संज्ञान(कॉगनिजेंस) को रद्द कर दिया था. साथ ही अपने आदेश में कहा था कि इस मामले में अगर याचिकादाताओं के खिलाफ मुकदमा चलाया जाता है, तो वह न्याय की हत्या होगी.
सीबीआइ गयी थी सुप्रीम कोर्ट : हाइकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसमें नक्शा घोटाले में न्यायिक कार्रवाई के दौरान लिये गये संज्ञान को रद्द नहीं करने का अनुरोध किया गया था, ताकि अभियुक्तों को दंडित करने के लिए आगे की न्यायिक प्रक्रिया शुरू की जा सके. सीबीआइ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एए बोबदे व न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अदालत में सुनवाई हुई. अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद सीबीआइ की याचिका खारिज कर दी. फैसले में कहा कि अगर इस मामले में ऐसी ही कोई इंटरलोकेट्री एप्लीकेशन लंबित हो, तो उसे भी निष्पादित समझा जाये.
सरकारी कार्रवाई में सिर्फ एक बरखास्त : राज्य सरकार ने इस मामले में सीबीआइ के आरोप पत्र के आधार पर सरकारी अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की. इस क्रम में विभागीय कार्यवाही के बाद आरआरडीए के तत्कालीन निगरानी अधिकारी मनौवर आलम को बरखास्त कर दिया गया है. नक्शा घोटाले के इसी मामले में सीबीआइ की ओर से आरोपित इंजीनियर शंकर प्रसाद, रामकुमार सिंह के खिलाफ विभागीय कार्यवाही नहीं हुई है. दोनों इंजीनियर सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं. तत्कालीन सचिव अजय शेखर व नरेश कुमार सिंह के खिलाफ भी विभागीय कार्यवाही में आरोप प्रमाणित नहीं हुए. दोनों ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं.

इसके अलावा तत्कालीन सचिव सुरेंद्र नाथ मंदिलवाल और सहायक उमेश प्रसाद सिंह भी सेवानिवृत्त हो चुके हैं. आरोपी अधिकारी दुर्गानंद मिंज फिलहाल दिल्ली (डीडीए) में कार्यरत हैं. आरोपित अधिकारियों पर नगर निगम की जमीन को असलेशा कंपनी की बता कर नक्शा पास करने का आरोप है.

कानूनी लड़ाई का मुख्य बिंदु : इस पूरी कानूनी में एमएस प्लॉट नंबर 1735 पर मालिकाना हक को आधार बनाया गया था. इस प्लॉटों पर मेसर्स असलेशा कॉरपोरेशन लिमिटेड और रांची नगर निगम की बीच मालिकाना हक को लेकर विवाद कायम था. कंपनी का दावा था कि उन लोगों ने जमीन सावित्री घोष व उनके पारिवारिक सदस्यों से खरीदी थी, जो पूरी तरह वैध है. दूसरी तरफ नगर निगम का कहना था कि यह जमीन उसकी है. सीबीआइ ने मामले की जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में यह लिखा था कि जमीन निगम की है. इसलिए निगम की जमीन को भी कंपनी का दिखा कर गलत तरीके से व्यापारिक भवन बनाने का नक्शा पास किया गया है.

इसमें सरकारी अधिकारियों और कंपनी के लोगों की मिलीभगत है. साथ ही सीबीआइ ने इस मामले में 11 लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया था. आरोपियों में आठ सरकारी अधिकारी और तीन अन्य लोग शामिल थे. आरोप पत्र के आधार पर सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश की अदालत ने 25 अक्तूबर 2011 को अभियुक्तों के विरुद्ध संज्ञान लिया. इसे चुनौती देनेवाली असलेशा कंपनी की याचिका पर सुनवाई के बाद हाइकोर्ट ने 27 नवंबर 2015 को अपना फैसला सुनाया और संज्ञान को निरस्त कर दिया. न्यायिक लड़ाई में अदालत ने जमीन पर असलेशा कंपनी की दावेदारी को सही करार दिया गया. साथ ही यह माना गया कि नक्शा पास करने में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है.

सीबीआइ ने जिनके विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया था
अजय शेखर, तत्कालीन सचिव
मनौवर आलम, तत्कालीन निगरानी अधिकारी
राम कुमार सिंह, तत्कालीन टाउन प्लानर
शंकर प्रसाद, तत्कालीन सहायक अभियंता
नरेश कु सिंह, तत्कालीन सहा अभियंता
दुर्गानंद मिंज, तत्कालीन टाउन प्लानर
उमेश प्र सिंह, तत्कालीन सहायक
सुरेंद्रनाथ मंदिलवाल, तत्कालीन सचिव
विनय प्रकाश, निदेशक, मेसर्स असलेशा कॉरपोरेशन लिमिटेड
विभूति भूषण, निदेशक, अरोमा कंस्ट्रक्शन
विजय कु सिंह, निदेशक, अरोमा कंस्ट्रक्शन

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