17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

दोपहर में पेड़-पौधों से गुफ्तगू

गिरींद्र नाथ झा ब्लॉगर एवं किसान दोपहर में जब खेत-खलिहान की दुनिया से बाहर निकल कर अपने अहाते में दाखिल होता हूं, तो दो चीजें मुझे सबसे अधिक अपनी ओर खींचती हैं- किताबें और चिड़ियाें की आवाजें. इसके अलावा दोपहर के खाली समय में हवा में लंबे गाछ-वृक्ष को निहारना भी मुझे अच्छा लगता है. […]

गिरींद्र नाथ झा

ब्लॉगर एवं किसान

दोपहर में जब खेत-खलिहान की दुनिया से बाहर निकल कर अपने अहाते में दाखिल होता हूं, तो दो चीजें मुझे सबसे अधिक अपनी ओर खींचती हैं- किताबें और चिड़ियाें की आवाजें. इसके अलावा दोपहर के खाली समय में हवा में लंबे गाछ-वृक्ष को निहारना भी मुझे अच्छा लगता है. लंबे-ऊंचे पेड़ को हवा में झूमते देख कर लगता है कि कोई इन पेड़-पौधों से विनम्रता सीखे. हवा के तेज झोंके जब इन्हें हिला कर रख देती है, तब भी पेड़ अपने कुछ पत्तों को गिरा कर यह अहसास करा देते हैं कि उन्हें जूझना आता है, उन चिड़ियों के लिए, जिनका आशियाना इनकी बाहों में है.

इन दिनों बारिश लगातार हो रही है, लेकिन दोपहर के वक्त तक धूप खिल जाती है. बारिश की वजह से धान के खेतों की सुंदरता और भी बढ़ गयी है. लगता है किसी पेंटर ने धरती मैया को हरे रंग में रंग दिया हो.

उधर, हवा में हल्का ठंडापन भी आ चुका है. खाली दोपहर के अकेलेपन में हवा से भी हम कुछ बातें कर लेते हैं. इन दिनों गाम की दोपहर हमें काफी कुछ सीखा रही है. नारियल के पुराने गाछ को जब भी हवा में झूमते देखता हूं, तो बचपन याद आ जाता है.

स्मृति यही है, हरी-हरी दूब की तरह. स्मृति के जरिये ही हम जीना भी सीखते हैं. अपने अहाते में टहलते हुए नारियल के फल से लदा पेड़ मुझे अपनी ओर खींच रहा है. उसको देख कर मुझे सातवीं क्लास के कामेश्वर मास्टर साब की बातें याद आ रही हैं- ‘फल विनम्र बनाता है, फल से लदे गाछ को देखो, फिर सोचो. भार सहना सीखना चाहिए.’

नारियल का यह गाछ मेरे अहाते का सबसे पुराना सदस्य है. लगभग सौ साल पुराना. बूढ़ा हो चला है, लेकिन अब भी मुस्कुराता रहता है.

इस उम्र में भी करीब बीस फल तो दे ही देता है और साथ ही जाने कितनी चिड़ियां इसके आस-पास घूमती रहती हैं. कुछ ने तो अपना बसेरा इसके सिर पर बना रखा है, लेकिन उस भार को भी यह विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता है. आज की भागमभाग जिंदगी में जब हम केवल अपने लिए ही संघर्ष करते हैं, दूसरों का भार उठाने से बचने लगे हैं, ऐसे में इस वृक्ष की दुनिया को नजदीक से देख कर लगता है कि हम कितने कमजोर हो चले हैं.

यह सब लिखते हुए इस दोपहरिया में बाबूजी की याद आ रही है. नारियल के पेड़ से उन्हें अजीब तरह का लगाव था. उन्होंने सौ से अधिक नारियल के पेड़ लगाये थे. बाबूजी कहते थे कि नारियल और कटहल के पेड़ से चिड़ियों को सबसे अधिक स्नेह होता है, खासकर तोता और गौरैया पक्षी काे.

इस प्रजाति की चिड़ियां इस पेड़ पर सुरक्षित महसूस करती हैं. कटहल के बारे में वे कहते थे कि इसकी खासियत यह होती है कि यह मानव जाति के दुख-सुख को अनुभव करता है. बाबूजी कटहल के पत्तों की कहानियां सुनाया करते थे.

आज धान के खेतों से घूम कर देहाती दुनिया की इन बातों को टाइप कर रहा हूं, तो लगता है कि यहीं बगल में लकड़ी की कुर्सी पर सफेद धोती और कोठारी के मटमैले बांह वाली गंजी में बाबूजी बैठे हैं और अंचल की कहानी मुझे नारियल के इस पुराने पेड़ के बहाने सुना रहे हैं.

हवा में झूलते इस बूढ़े नारियल गाछ से स्नेह बढ़ता ही जा रहा है. 2015 के अप्रैल में जब आंधी में दर्जनों पेड़ गिर पड़े थे, तब भी यह यूं ही झूम रहा था. संघर्ष की सीख हम सभी को यह देता रहा है. किसानी करते हुए लड़ने की आदत हम पेड़-पौधों से सीखते हैं. बे-मौसम बरखा हो या फिर आंधी- तूफान, हमें अन्न उपजाने के लिए लड़ाई लड़नी ही होती है, ऐसे में इन पेड़-पौधों को देख कर हिम्मत बढ़ जाती है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें