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‘भारत में लोग जल्दी नाराज़ हो जाते हैं’

Supriya Menon Cochin फ़िल्म ’31 अक्टूबर’ के एक सीन में सोहा अली खान. ‘रंग दे बसंती’, ‘मुम्बई मेरी जान’, ‘खोया खोया चाँद’ में अभिनय की छाप छोड़ने वाली अभिनेत्री सोहा अली खान का मनना है कि भारत में लोग बेवजह छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ हो जाते हैं. 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद […]

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फ़िल्म ’31 अक्टूबर’ के एक सीन में सोहा अली खान.

‘रंग दे बसंती’, ‘मुम्बई मेरी जान’, ‘खोया खोया चाँद’ में अभिनय की छाप छोड़ने वाली अभिनेत्री सोहा अली खान का मनना है कि भारत में लोग बेवजह छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ हो जाते हैं.

1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिख समुदाय पर हुए हमले ने जब दंगों का रूप लिया तो कई सिख परिवार तबाह हुए. अपनी अगली फ़िल्म ’31 अक्टूबर’ में सोहा ऐसे ही एक परिवार की दास्तां लेकर आ रही हैं.

लेकिन क्या भारत के लोग ऐसे संवेदनशील हादसों पर फ़िल्मी कहानी देखने के लिए तैयार हैं.

इस पर बीबीसी से ख़ास बातचीत में सोहा कहती हैं, "यहाँ लोग बहुत जल्दी नाराज़़ हो जाते हैं, फ़िल्म रिलीज़ होने तक का भी इंतज़ार नहीं करते. मैं मानती हूँ कि सबकी अपनी-अपनी राय होनी चाहिए लेकिन समझदारी वाली राय होनी चाहिए"

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सोहा अली खान का कहना है कि उनकी फ़िल्म संवेदनशील हादसे का फायदा उठाने की कोशिश कत्तई नहीं है.

सोहा अली खान ने साफ़ किया कि उनकी फ़िल्म में इस संवेदनशील हादसे का फायदा उठाने की कोशिश कतई नहीं की गई है.

सोहा 1984 में बहुत छोटी थीं. वो अपनी 1984 की धुंधली हो चुकी यादों को याद करते हुए कहती हैं, "दादी की तबियत ख़राब होने के कारण हम बॉम्बे से दिल्ली उसी दौरान शिफ्ट हुए थे. पटौदी में एक गुरुद्वारा भी था जो इसी दौरान नष्ट किया गया था. हमारे साथ पटौदी में एक सरदार काम करते थे जिन्होंने इसे बड़ी नज़दीकी से देखा था और उसी दौरान अपना सिर मुंडवाया था. लेकिन वहां उस दौरान दूसरे समुदाय के ऐसे भी लोग थे जिन्होंने सिखों की मदद कर उन्हें आसरा दिया था."

सोहा पाटौदी के नवाबों के खानदान से आती हैं. यह इलाका हरियाणा में पड़ता है.

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सोहा अली खान को लगता है कि फिलहाल देश में ’31 अक्ट्बर’ जैसी कहानियों को दिखाने की ज़रूरत है.

भारत की राजनीतिक उथल-पुथल पर ध्यान रखने वाली सोहा अली खान महसूस करती हैं कि फिलहाल देश में ऐसी कहानियों की ज़रूरत है. वो कहती हैं कि देश में इस समय सांप्रदायिक मेल को दर्शाती कहानियों की ज़रूरत है क्योंकि अभी देश में राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियां थोड़ी अलग हैं.

इसकी पीछे की वजहों के बारे में बताते हुए सोहा कहती हैं, "लोकतंत्र के लिहाज़ से हम फिलहाल काफ़ी जवान देश हैं. ऐसे में धर्म जैसे संवेदनशील मुद्दों का कुछ बुरे लोग फ़ायदा उठाते हैं और लोगों को भड़काते हैं. लोग भी ऐसे झांसों में आ जाते हैं. ये सिर्फ ताकत के लिए किया जाता है और इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है."

सोहा अपने आप को एक जिम्मेदार नागरिक मानती हैं पर राजनीति में फिलहाल हाथ आज़माने का उनका कोई इरादा नहीं है.

राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले निर्देशक शिवजी लोहान पाटिल निर्देशित फ़िल्म ’31 अक्टूबर’ में सोहा अली खान ऐसे सिख महिला का किरदार निभा रही हैं जो दंगों की एक रात फंस जाती है.

फ़िल्म में वीर दास भी अहम् भूमिका निभा रहे हैं. यह फ़िल्म सात अक्टूबर को रिलीज़ होगी.

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