इनोवेशन में भारत की दस्तक-10 : बेंगलुरु का स्टार्टअप एक्सियोम रिसर्च लैब अगले वर्ष चांद पर भेजेगा रोवर
‘इनोवेशन में भारत की दस्तक’ शृंखला की दसवीं कड़ी में आज पढ़ें राहुल नारायण, रामनाथ बाबू और शीलिका रविशंकर की टीम इंडस के बारे में, जो बेंगलुरु के स्टार्टअप एक्सियोम रिसर्च लैब का अहम हिस्सा है. यह टीम चांद पर लैंड करने और चलनेवाला स्पेसक्राफ्ट बना रही है. गूगल के एक्स प्राइज लूनर चैलेंज के इस मिशन पर यह युवा टीम वर्ष 2010 से काम कर रही है.
बेंगलुरु के स्टार्टअप एक्सियोम रिसर्च लैब (एआरएल) की टीम इंडस चांद पर लैंड करने और चलने वाला स्पेसक्राफ्ट बना रही है. गूगल के एक्सप्राइज लूनर चैलेंज के इस मिशन पर यह टीम वर्ष 2010 से काम कर रही है. इसके तहत एक स्पेसक्राफ्ट का निर्माण करना है, जो एक रोवर को सफलतापूर्वक धरती से चांद की सतह पर उतारने में समक्ष हो और सतह की बारीक से बारीक जानकारी जुटा सके. यह चैलेंज जीतने के लिए भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के रिटायर और कुछ युवा इंजीनियर्स की इंडस टीम के सदस्य जी जान से जुटे हुए हैं.
बिना किसी सरकारी मदद के हो रही इस प्रतियोगिता में भारत की टीम इंडस समेत दुनियाभर की 18 टीमें शामिल हैं. यहां यह जानना जरूरी है कि प्रतियोगिता के एक चरण में टीम इंडस 10 लाख डॉलर (लगभग छह करोड़ 69 लाख रुपये) का माइलस्टोन प्राइज जीत चुकी है. वर्ष 2015 की शुरुआत में मिला यह पुरस्कार टीम इंडस के बनाये उस रोवर के लिए था, जो चांद की सतह पर उतरने में सक्षम है. टीम ने इस राशि को प्रतियोगिता के अगले चरण में लगा दिया. टीम इंडस इस बारे में आश्वस्त है कि अगले साल वह अपने प्रतिस्पर्द्धियों में सबसे पहले चांद की सतह छूने में कामयाब होगी.
एआरएल के संस्थापकों में से एक दिलीप छाबड़िया कहते हैं, यह प्रतियोगिता हम जीत सकते हैं. इसी वजह से हम इस प्रतियोगिता में हैं.
इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे एक्सियोम रिसर्च लैब के सीइओ राहुल नारायण बताते हैं, हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती प्रॉपल्शन सिस्टम की थी. यह इंजन इसरो अपने मिशन में इस्तेमाल कर चुका था, जो कि भारी सैटेलाइट्स के लिए तो अच्छे हैं, लेकिन टीम इंडस के छोटे से सैटेलाइट के साथ इसका सामंजस्य बिठाना किसी चुनौती से कम नहीं था. राहुल आगे बताते हैं, हमारा इरादा सैटेलाइट (लैंडर और रोवर) को पीएसएलवी से लांच करने का है.
लैंडर का वजन 210 किलोग्राम है और ईंधन के साथ इसका कुल वजन 600 किलोग्राम हो जायेगा. प्रोजेक्ट की अद्यतन स्थिति के बारे में राहुल कहते हैं कि हमारा मिशन प्रगति पर है. चांद की सतह पर उतरनेवाले रोबोट और लैंडर का इंजीनियरिंग मॉडल तैयार है. हमारे उपग्रह को प्रोटोटाइप और इंजीनियरिंग टेस्ट में सफलता मिल चुकी है. निर्धारित समयसीमा के भीतर हमारा उपग्रह तैयार हो जायेगा.
गौरतलब है कि गूगल एक्सप्राइज लूनर चैलेंज प्रतियोगिता जीतने पर 30 मिलियन डॉलर (लगभग दो अरब 72 लाख रुपये) की राशि पुरस्कार में मिलेगी. 2007 में गूगल ने इस प्रतियोगिता की शुरुआत एक्सप्राइज फाउंडेशन के साथ मिल कर की थी. यह चांद पर अन्वेषण के लिए निजी क्षेत्र द्वारा वित्तपोषित विश्व की पहली प्रतियोगिता है, जिसका उद्देश्य चांद पर अन्वेषण के लिए निजी क्षेत्र से नवाचार और निवेश को बढ़ावा देना है.
इस वैश्विक प्रतियोगिता के तहत प्रतिभागी टीमों को एक किफायती स्पेसक्राफ्ट और रोवर का निर्माण करना है, जिसे चांद पर भेजा जा सके और जो इसकी सतह के बारे में जानकारी जमा करने में सक्षम हो. रोवर के चांद पर उतरने के साथ लैंडिंग साइट के आसपास की 500 मीटर क्षेत्र की जांच-पड़ताल करनी होगी और पृथ्वी तक हाई डेफिनेशन तसवीरें, वीडियोज और डेटा भेजने होंगे.
(इनपुट : आउटलुक बिजनेस से साभार)