पीड़ा की टीस बन जाती है बाढ़ आपदा का कहर प्रतिनिधि, कटिहार, बाढ़ की त्रासदी क्षेत्र की नियति बन चुकी है. गंगा का कोप कोसी के अभिशाप से इलाका प्रतिवर्ष डुब्बा मुल्क बन जाता है. खुशिया अरमान सैलाव में डुब कर रह जाते हैं. पानी की तबाही दर्द के पीड़ा की टीस छोड़ जाया करती है. जनधन व करोड़ों की क्षति तरक्की के रफ्तार को रोक जाया करता है. आपदा का यह आफत कमोवेश प्रत्येक साल आता है और तबाही मचा कर चला जाता है. डुबती जिंदगी के बचाव के यतन बेकार पड़ जाते हैं. पानी का कहर यह इलाका दशकों पूर्व से झेलता आ रहा है. सुरक्षा में कई बड़े छोटे तटबंधो का निर्माण हुआ. नदियों के ताकत के आगे सुरक्षा के तटबंध टूटते चले गये. यानी बाढ़ त्रासदी के आगे हर अवरोध बेकार होते चले गये. इस आपदा को लेकर हालात ऐसे होते हैं कि बाढ़ आने के पूर्व भय से लोग कांप जाते हैं. पिछले चार दशकों के बाद विभीषिका पर गौर किया जाय तो नदियो के उफान में गुजरते वक्त के साथ उफान बढ़ रहा है. जानकारों का कहना है कि वर्ष 1971 से बाढ़ प्रकोप की स्थिति लगातार खराब हो रही है. इसके बाद वर्ष 1978 व 1987 और 1998 के साथ 2013 एवं 2016 में बाढ़ बड़ी तबाही मचायी है. गंगा नदी के साथ कोसी नदी क्षेत्र के भूभाग में प्रवाहित होती है. इन दोनों नदियों के उफान की स्थितियां बाढ़ संकट को बढ़ा जाता है. हालांकि गंगा नदी के घटने की स्थिति में कोसी नदी का उफान शिथिल पड़ जाता है. जब दोनों नदिया एक साथ उफनती है तो बाढ़ की विभीषिका जल प्रलय का रूप ले लेती है. अब तक चार दशको के बाढ़ क्षति के आंकड़े अनुमानतह सौ करोड़ से अधिक हो सकते हैं. इस अनुमान के क्षति के आंकड़े से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाढ़ के तबाही क्षेत्र के प्रगति में कितनी बड़ी बाधक है. भूभाग की उपजाऊ मिट्टी और तमाम संसाधन हर वर्ग के उत्थान रास्ते को गति दे सकती है. किसानों के भदई फसलों पर बाढ़ आपदा बड़ी क्षति दे जाता है. चंद सालो के अंतराल पर लाखो का केला फसल डुब कर बर्बाद हो जाता है. फसलो के बाढ़ तबाही में डुबने से खेतीहर मजदूरों के समक्ष काम का अभाव पड़ जाता है. तबाही का दंश झेलने वाले को नये सिरे से जीवन निर्वाह के रास्ते तलाशने पड़ते हैं. यही वजह है कि बाढ़ आपदा संकट में हर तरफ हाहाकार मच जाता है. जनजीवन के साथ पशु पक्षी आपदा के संकट से बेहाल हो जाते हैं. त्रासदी के आफत में कई जिंदगी बेमौत मर जाती है. आफत आपदा का बाढ़ कहर इस बार भी क्षेत्र पर बरपा. बांधे टूटी और विनाश हर किसी को आहत कर गया. प्राकृतिक रूप से बाढ़ से बर्बादी का सिलसिला कायम बना रहा. चपेट में आये जनमानस को मुसीबतों का पीड़ा दे गया.दुख सहने का दुर्भाग्य——————–नदियों के प्रवाह क्षेत्र के करीब क्षेत्र का भूभाग होने से आबादी को बाढ़ विपदा का दुख सहने का दुर्भाग्य बना हुआ है. जिससे 3 बार नियति के मर्जी पर रह गया है. बाढ़ प्रकोप से मुक्त होने पर यह इलाका तरक्की का नया आयाम रच सकता है. क्षेत्र कृषि अन्य क्षेत्रों में चार कदम आगे निकल सकता है.प्रस्तावित है तटबंध का निर्माण—————————जानकारी के अनुसार बाढ़ कटाव से सुरक्षा के लिये पत्थल टोला से खेरिया होते हुये चार किमी के दायरे में 57 करोड़ के लागत से तटबंध का निर्माण प्रस्तावित है. माना जा रहा है कि अगामी जनवरी माह से प्रस्तावित तटबंध का निर्माण कार्य प्रारंभ हो सकेगा. जिससे एक बड़े भूभाग का नदियों के कटाव और बाढ़ से सुरक्षा हो सकेगी.
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पीड़ा की टीस बन जाती है बाढ़ आपदा का कहर
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