भारत प्रशासित कश्मीर के अधिकांश हिस्से में हिंसा और कर्फ्यू के कारण स्कूल बंद हो गए हैं.
लेकिन कुछ वालंटियरों ने अपने घरों, मस्जिदों में अस्थाई स्कूल खोल लिए हैं ताकि बच्चों की पढ़ाई जारी रहे.
बीती 9 जुलाई को प्रदर्शनों की शुरुआत के बाद से ही प्रशासन ने मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी में कर्फ्यू लगा दिया है.
ये प्रदर्शन लोकप्रिय चरमपंथी नेता बुरहान वानी की भारतीय सुरक्षा बलों के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद शुरू हुए.
प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसक भिड़ंत में अबतक 60 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश नौजवान हैं, जबकि कई हज़ार लोग घायल हुए हैं.
विवादित कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपना दावा करते हैं और पिछले 60 सालों से ये सुर्खियों में रहा है. इसे लेकर दोनों देशों के बीच दो बार युद्ध भी हुए.
मुस्लिम बहुल इस विवादित इलाक़े में कुछ चरमपंथी संगठनों ने भारतीय शासन से आज़ादी या पाकिस्तान में शामिल होने के लिए हथियार उठा लिए.
फ़ोटोग्राफ़र आबिद ने इन अस्थाई स्कूलों का दौरा किया ये जानने के लिए अशांति के बीच बच्चे कैसे पढ़ाई कर रहे हैं.
नियमित स्कूली पढ़ाई की गैरमौजूदगी में बच्चे दूर दूर से पढ़ाई करने आते हैं.
ताबी दूसरी कक्षा की छात्रा हैं, लेकिन हिंसा शुरू होने के बाद से ही उनका स्कूल बंद है.
उनके पिता सुबह की कक्षाओं के लिए उन्हें साइकिल से यहां ले आते हैं.
वो कहती हैं कि उन्हें नियमित स्कूली पढ़ाई की बहुत याद आती है लेकिन "वो अब अपने नये शिक्षक और दोस्तों से घुल मिल गई हैं."
श्रीनगर के रैनावारी इलाक़े की मस्जिद में 200 छात्रों को वालंटियर टीचर पढ़ाते हैं.
नियमित पढ़ाई के अलावा, बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे मुश्किल विषयों को भी प्रोफेशनल ट्यूटरों से पढ़ रहे हैं.
इस मस्जिद का रखरखाव करने वालों ने इस स्कूल की तब शुरुआत की जब 20 नौजवानों ने यहां पढ़ाने के लिए खुद को वालंटियर करने की बात कही.
मेज, कुर्सियां और ज़रूरी पैसे चंदे से इकट्ठा किए जाते हैं.
प्रदर्शन के कारण बंद हो चुके कुछ सरकारी स्कूलों ने भी इन अस्थाई स्कूलों को अपने फर्नीचर उधार दिए हैं.
अधिकांश बच्चों को इन वैकल्पिक स्कूलों तक पहुंचने के लिए भारी सुरक्षा बलों के बीच से होकर गुजरना पड़ता है.
कुछ यहां पढ़ने और घर जाते समय समूह में रहते हैं और ऐसे रास्ते चुनते हैं जहां सुरक्षा बल कम होते हैं,
वालंटियर कहते हैं कि इन वैकल्पिक स्कूलों को बनाने में उन्हें काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.
इन्हीं में से एक ख़ालिद का कहना है, "वैकल्पिक पढ़ाई का आइडिया अचानक साकार नहीं हुआ, हमने स्टूडेंट तलाशने के लिए सर्वे किया, उनकी कक्षाओं के बारे में जाना और उनके लिए टीचर तलाश किये."
कुछ वैकल्पिक स्कूल तो बरात घरों में चल रहे हैं क्योंकि अधिकांश लोगों ने प्रदर्शन के चलते शादियों को रद्द कर दिया है.
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