भारत का स्वतंत्रता दिवस ऐतिहासिक महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन हम राजनीतिक तौर पर आजाद हुए और हमने लोगों के दिल और दिमाग में राष्ट्रीयता का विचार पैदा करना शुरू किया. अगर ऐसा न होता, तो लोग अपनी जाति, समुदाय व धर्म आदि के आधार पर ही सोचते रह जाते. हालांकि, भारतीय होने का यह गौरव केवल एक भौगोलिक सीमा के ऊपर खड़ा था.
भारत का असली व पूरा गौरव, इसकी सीमाओं में नहीं, बल्कि इसकी संस्कृति, आध्यात्मिक मूल्यों तथा सार्वभौमिकता में है. तीन ओर से सागर तथा एक ओर से हिमालय पर्वत शृंखला से घिरा भारत, स्थिर जीवन का केंद्र बन कर सामने आया है. यहां के निवासी एक हजारों सालों से बिना किसी बड़े संघर्ष के रहते आ रहे हैं, जबकि बाकी संसार में ऐसा नहीं रहा. जब आप संघर्ष की सी स्थिति में जीते हैं, तो आपके लिए प्राणों की रक्षा ही जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य बना रहता है. जब लोग स्थिर समाज में जीते हैं, तो जीवन-रक्षा से परे जाने की इच्छा पैदा होती है.
भारत में लंबे अरसे से, स्थिर समाजों का उदय हुआ और नतीजन आध्यात्मिक प्रक्रियाएं विकसित हुईं. आज आप अमेरिका में लोगों के बीच आध्यात्मिकता को जानने की तड़प को देख रहे हैं, उसका कारण यह है कि उनकी आर्थिक दशा पिछली तीन-चार पीढ़ियों से काफी स्थिर रही है. उसके बाद उनके भीतर कुछ और अधिक जानने की इच्छा बलवती हो रही है. भारत में आज से कुछ हजार साल पहले ऐसा ही घट चुका है. यह अविश्वसनीय जान पड़ता है कि हमने कितने रूपों में आध्यात्मिकता को अपनाया है. इनसान बुनियादी रूप से क्या है, इस मुद्दे पर इस धरती के किसी भी दूसरी संस्कृति ने उतनी गहराई से विचार नहीं किया, जैसा हमारे देश में किया गया.
यही इस देश का मुख्य आकर्षण है कि हमें पता है कि मानव-तंत्र कैसे काम करता है, हम जानते हैं कि इसके साथ हम क्या कर सकते हैं या इसे इसकी चरम संभावना तक कैसे ले जा सकते हैं. हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि महान मनुष्यों के निर्माण से ही तो महान देश की रचना हो सकती है. परंतु अब, लोगों को भौगोलिक सीमाओं में ही गौरव का अनुभव होने लगा है.
-सद्गुरु जग्गी वासुदेव