अरवल (ग्रामीण) : विगत लोकसभा चुनाव एवं विधानसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर जो राजनीतिक परिदृश्य उभरे हैं, उसके कारण प्रदेश में नये राजनीतिक ध्रुवीकरण ने जन्म दिया है. कानून-व्यवस्था की स्थिति लचर हुई है. भ्रष्टाचार बढ़ा है और जातिवाद की घृनित राजनीतिक ने पैर पसार लिया है.
समाज का एक महत्वपूर्ण वर्ग जिसने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अनेकों प्रकार की कुरबानी दी. दुर्भाग्यवश आज प्रदेश की राजनीतिक परिदृश्य में विलुप्त हो चुकी है. उक्त बातें डाॅ श्रीकृष्ण सिंह राजनीतिक चेतना फ्रंट बिहार प्रदेश के संस्थापक प्रो रामजतन सिन्हा ने अरवल अतिथि भवन में पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहीं. उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करनेवाले समाज के लोग राज्य की सत्ता के संचालन से अलग-भलग पड़ गये. समाज का यह वर्ग तो पहले ही देश के नीति निर्धारण में अपनी भूमिका निभाता था.
कुछ कारणों से वह अप्रासंगिक होता चला गया तथा बिहार के इन जातिय कबिलों के राजनीतिक प्रपंच में कहीं-न-कहीं समाज का यह वर्ग पिछलग्गू की भूमिका निभाने को विवश हो गया है. इस वर्ग की व्यग्रता को आवाज देने और इसके हक-हकूक की लड़ाई लड़ने का यह सही वक्त है ताकि देश व प्रदेश के राजनीतिक मानचित्र पर उसकी भागीदारी पुन: सुनिश्चित की जा सके. पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिए जाति विशेष के छात्रों ने समाज को टुकड़े में बांटने का काम किया. परिणाम स्वरूप बिहार में कई जाति कबिले पैदा हो गये हैं, परंतु ऊंची जाति व खास कर भूमिहार जाति के लोग जिन्हें अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए पिछले 20 से 25 वर्षों में सबसे ज्यादा कुरबानियां देनी पड़ी हैं. स्थिति ऐसी हो गयी है कि आज किसी पक्ष में या विपक्ष में वोट करते हैं. यही स्थिति अल्पसंख्यक मुसलमानों की है. इस वर्ग को भी किसी के पक्ष या विपक्ष में वोट करने के बजाय राजनीतिक सत्ता में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वोट करने की जरूरत है. इस अवसर पर पूर्व मुखिया मनोज शर्मा, मुखिया दिलीप कुमार, जयनंदन श्मा, भगवान दास शर्मा, मुखिया जितेंद्र शर्मा आदि मौजूद थे.