बुलंदशहर गैंगरेप केस के बाद उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल उठाये जा रहे हैं. हालांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है कि वह एक शर्मनाक घटना थी जिसके दोषियों को सरकार सजा दिलायेगी. उन्होंने पीड़िताओं को तीन-तीन लाख रुपये मुआवजा और फ्लैट देने की भी घोषणा की. उनका कहना था कि विपक्ष इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहा है, ताकि उन्हें राजनीतिक फायदा हो. भले ही सत्ता पक्ष और विपक्ष बुलंदशहर रेपकेस का इस्तेमाल अपने-अपने फायदे के लिए करने में जुटा हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हैं. अगले विधानसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही शेष हैं ऐसे में महिलाओं के खिलाफ बढ़ता अपराध निश्चततौर पर एक चुनावी मुद्दा बनेगा. इसके अतिरिक्त दलित उत्पीड़न भी आगामी चुनाव में एक मुद्दा होगा, क्योंकि इस तरह की घटनाएं देश में लगातार सामने आ रहीं हैं.
दलित महिलाओं के साथ अपराध बड़ा मुद्दा
यूं तो उत्तर प्रदेश में महिला उत्पीड़न एक बड़ी सामाजिक समस्या का रूप ले चुका है लेकिन दलित महिलाओं की स्थिति और भी बदतर है. आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 में पूरे देश में बलात्कार की 2233 घटनाएं हुईं, जबकि अकेले यूपी में दलित महिलाओं के साथ बलात्कार की 459 घटनाएं दर्ज हुईं. छेड़खानी के 483 और अपहरण की 383 घटनाएं हुईं.
उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक होती हैं दलित उत्पीड़न की घटनाएं
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2014 में उत्तरप्रदेश में दलितों के खिलाफ अपराध की सर्वाधिक घटनाएं सामने आयीं. कुल 8,075 मामले दर्ज हुए. जबकि राजस्थान में 8,028, बिहार में 7898 और मध्यप्रदेश में 4,151 मामले दर्ज हुए. उत्तरप्रदेश में कुल आबादी का 20.5 प्रतिशत दलित आबादी है. ऐसे में अगर दलितों के खिलाफ अपराध नहीं थमे, तो कहना ना होगा कि चुनाव में इन घटनाओं का असर दिखेगा और जो भी पार्टी दलितों को अपने हिसाब से मैनेज कर पायी, फायदा उसे ही होगा.