गिरींद्र नाथ झा
ब्लॉगर एवं किसान
पिछले साल पहली जुलाई को केंद्र सरकार ने डिजिटल इंडिया सप्ताह की शुरुआत की थी. आज इसलिए यह याद दिला रहा हूं, क्योंकि मेरे गांव में इन दिनों राशन कार्ड के जरिये मिलनेवाली सुविधाओं को लाभुकों के बैंक खातों से जोड़ने की पहल हो रही है, लेकिन अब तक डिजिटल इंडिया की मूलभूत सुविधाएं गांव तक पहुंची ही नहीं हैं और कागज पर सर्वे जारी है.
ऐसे में क्या डिजिटल इंडिया से रूरल इंडिया दूर होता जा रहा है.
सरकार चाहती है कि डिजिटल इंडिया के मार्फत लोगों को रोजमर्रा की सभी सुविधाएं पहुचायी जाये. यह बढ़िया बात है, लेकिन मेरे गांव तक या फिर देश के कई ग्रामीण इलाके तक यह सुविधा अब तक क्यों नहीं पहुंची, यह एक बड़ा सवाल है.
याद करिये, सरकार ने डिजिटल इंडिया अभियान को नौ क्षेत्रों में बांटने की कोशिश की थी. एक ग्रामीण के तौर पर सरकार की जिस बात को लेकर मैं उस वक्त और आज भी असमंजस में हूं, वह है ब्रॉडबैंड हाइवे. देश के आखिरी घर तक ब्रॉडबैंड के जरिये इंटरनेट पहुंचाने की बात थी. अब सवाल है कि गांव तक कैसे ब्रॉडबैंड सेवा पहुंचेगी. दरअसल, ब्रॉडबैंड हाइवे की शुरुआत आप्टिक फाइबर नेटवर्क से होती है. गांव-गांव तक फाइवर नेटवर्क का तार बिछाना सबसे बड़ी चुनौती है. सरकार को उन गांवों तक पहुंचना होगा, जहां तक अभी भी न सड़क पहुंच पायी है और न ही बिजली.
डिजिटल इंडिया का नारा व्यक्तिगत तौर पर मुझे बहुत ही पसंद है, लेकिन क्या बिहार या देश के अन्य राज्यों के उन गांवों को अब तक इसमें शामिल किया गया है, जो अभी भी विकास की रोशनी से दूर है?
डिजिटल इंडिया के तहत सरकार पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम की बात कहती रही है. लेकिन जरा सोचिये, जिस गांव में बिजली और सड़क नदारद है, वहां तक आप ऐसे ख्वाब कैसे पहुंचायेंगे? पंचायत तक इस योजना को पहुंचाना कठिन चुनौती है. सरकार इ-गवर्नेंस की भी बात कर ही है.
इसका अर्थ यह है कि वह सरकारी दफ्तरों को डिजिटल बनाना चाहती है और सेवाओं को इंटरनेट से जोड़ने का ख्वाब रखती है. इन सभी को अमलीजामा पहनाने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी. सरकार को हर कर्मचारी को डिजिटल कार्यक्रम से रूबरू कराना होगा और ट्रेनिंग देनी होगी.
डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के तहत सरकार इ-क्रांति की बात करती है. मैं इस क्रांति को अब तक समझ नहीं पा रहा हूं.
मैं खुद गांव में रह कर स्मार्ट फोन के जरिये इंटरनेट का इस्तेमाल करता हूं, लेकिन ऐसा हर कोई करेगा, इसकी क्या गारंटी है. जिस देश में अभी भी अन्न-जल चुनौती है. जहां हर दिन लाखों लोगों का चूल्हा आज भी बड़ी मुश्किल से जल रहा है, वहां डिजिटल उपकरणों की उपलब्धता की गारंटी देना एक सपना ही लगता है. लेकिन हम आशा तो रख ही सकते हैं.
डिजिटल इंडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी वादों में से एक है. यह उनके दो बड़े प्रोजेक्ट यानी मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया से जुड़ा है. ऐसे में लोगों की निगाहें उन पर टिकी हुई हैं.
एक ग्रामीण के तौर पर, जिसे डिजिटल इंडिया के नारे से प्रेम है, जो इंटरनेट के जरिये अभी भी अपना काम गांव-देहात से कर रहा है, वह चाहता है कि सरकार इस ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए मिशन मोड में काम करे. गांव-गांव, कस्बे-कस्बे तक इंटरनेट पहुंचाने के लिए व्यापक स्तर पर काम करना होगा.
आधारभूत ढांचे का निर्माण करना होगा. पूरे देश में केबल बिछाना होगा. पहाड़ों, नदियों, जंगलों से होकर हर गांव तक केबल ले जाना कितना कठिन काम है, इसका अनुमान हम लगा सकते हैं. लेकिन, हम एक नागरिक के तौर पर तो साल भर बीत जाने के बाद भी सरकार पर विश्वास कर ही सकते हैं.