नयी दिल्ली : कभी बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य आज भारतीय जनता पार्टी के हो गये. उन्होंने आज भारतीय जनता पार्टी केअध्यक्ष अमित शाह के सामने पार्टी की सदस्यता ली. इस अवसर पर उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने उनका स्वागत किया.पिछले दिनों स्वामी प्रसाद मौर्य ने बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती पर कई गंभीरआरोपलगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी, तभी से उनके भाजपा में जाने के कयास लगाये जा रहे थे.
कुछ दिनों पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा यह कहते हुए छोड़ दी थी कि मायावती दलितों के नाम पर राजनीति तो करती हैं, लेकिन उन्हें दलितों की कोई चिंता नहीं है. उन्होंने मायावती पर टिकट की बिक्री का भी आरोप लगाया था. हालांकि उनके पार्टी छोड़कर जाने के बाद मायावती ने यह कहा था कि अच्छा हुआ वे खुद ही चले गये. मैं उन्हें पार्टी से निकालने वाली थी, उनके खिलाफ कई शिकायतें आ रहीं थीं.मायावती ने कहा था कि वे सदन में विपक्ष के नेता के रूप में सही ढंग से मुद्दे नहीं उठा रहे थे.स्वामी भाजपा के साथ आयेंगे इसके संकेत तभी मिल गये थे जब उन्होंने दो अगस्त को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की थी. हालांकि, बसपा छोड़ने से दो-तीन महीने पहले से भी वे लगातार भाजपा व संघ के नेताओं के संपर्क में थे.
स्वामी प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश के मजबूत नेता हैं, उनका अपना एक वोट बैंक है. स्वामी पडरौना विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं, वे चार बार विधायक रह चुके हैं.
स्वामी के पास नयी पार्टी बनाने का नहीं बचा था विकल्प
उत्तरप्रदेश की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत पांडेय कहते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य कोयरी-कुशवाहा समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनका उत्तरप्रदेश में लगभग पांच से छह प्रतिशत वोट बैंक है. स्वामी प्रसाद मौर्य प्रतापगढ़, इलाहाबाद, रायबरेली व पूर्वी उत्तरप्रदेश एवं बुंदेलखंड के कई इलाकों में अच्छी पकड़ रखते हैं.
रमाकांत पांडेय के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी द्वारा केशव प्रसाद मौर्य को उत्तरप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाये जाने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य के पास नयी पार्टी बनाने का विकल्प नहीं बचा था, क्योंकि केशव को कमान मिलने के बाद मौर्य समाज का झुकाव पहले की भाजपा की ओर हो चुका था. समाजवादी पार्टी द्वारा स्वामी प्रसाद माैर्य को अपने पक्ष में लाये जाने की कोशिश पर रमाकांत पांडेय कहते हैं, दरअसल स्वामी प्रसाद ने यह आकलन कर लिया कि उन्हें सपा में जाने का कोई खास फायदा नहीं होगा, हालांकि सपा उन्हें अपने खेमे में लाकर कुछ खास क्षेत्रों में जहां कुशवाहा प्रभावशाली हैं, वहां बढ़त बनाने की कोशिश में थी.
कौन हैं स्वामी प्रसाद माैर्य?
स्वामी प्रसाद मौर्य उत्तरप्रदेश में पिछड़ी जाति वर्ग में यादव व कुर्मी जाति के बाद सबसे मजबूत जातीय समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनकी यह खासियत ही हर दल को लुभा रही थी. 62 साल के मौर्य खुद बौद्ध धर्म मानते हैं और हिंदू धर्म की जाति प्रथा व वर्गभेद के आलोचक रहे हैं. कुशवाहा जाति को उत्तरप्रदेश में मौर्य, कच्छी, सैनी, शाक्य जैसे दूसरे नामों से जानते हैं, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश की अधिकतर सीटों पर मजबूत वोट बैंक की हैसियत रखते हैं. मौर्य 2012 में हुए यूपी चुनाव के बाद बसपा के विपक्ष में आने के बाद विपक्ष के नेता बनाये गये थे. इससे मायावती के उन पर भरोसे का अनुमान लगाया जा सकता है. प्रतापगढ़ के रहने वाले स्वामी पेशे से वकील हैं और 1980 में लोकदल की युवा शाखा के सदस्य के रूप में उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. 1991 में वे जनता दल में गये और जब उन्होंने पार्टी छोड़ी तो वे पार्टी के प्रदेश महासचिव थे. 1998 में वे बसपा की उत्तरप्रदेश इकाई के अध्यक्ष बनाये गये. वेप्रदेश में सक्रियइकलौते नेता थे, जिन्हें मायावती ने मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत किया था.