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आचमन के लायक भी नहीं रहा गंगाजल

गंगा हो गयी मैली. प्रदूषण इतना कि गंगा के पानी को पीने योग्य नहीं बनाया जा सकता अनुपम कुमारी पटना : हर-हर गंगे बोलते हुए अगली बार गंगा में डुबकी लगाने से पहले एक बार जरूर सोच लें. गंगा मइया तो पवित्र हैं, लेकिन उनके भक्तों ने उन्हें इतना प्रदूषित कर दिया है कि उसका […]

गंगा हो गयी मैली. प्रदूषण इतना कि गंगा के पानी को पीने योग्य नहीं बनाया जा सकता
अनुपम कुमारी
पटना : हर-हर गंगे बोलते हुए अगली बार गंगा में डुबकी लगाने से पहले एक बार जरूर सोच लें. गंगा मइया तो पवित्र हैं, लेकिन उनके भक्तों ने उन्हें इतना प्रदूषित कर दिया है कि उसका जल पीने लायक क्या, नहाने लायक भी नहीं रह गया है. वैसे जल का मुंह में जाना आपके शरीर को बीमारियों का घर बना सकता है.
प्रदूषण की वजह से गंगा के जल में जीवाणुओं की संख्या उस स्तर को पार कर चुकी है, जहां से उसे पीने योग्य भी नहीं बनाया जा सकता है. ऐसे में उसका पानी आचमन करने के लायक भी नहीं है. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की रिपोर्ट इस खतरे की ओर इशारा कर रही है.
इन जगहों पर हो रही है जांच
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की ओर से गंगा जल की जांच 21 प्वाइंट पर की जा रही है. इसके नमूनों की प्रति माह लैब में इसकी टेस्टिंग की जा रही है. जांच स्थलों में बक्सर, पटना, मोकामा, बाढ़, मुंगेर, भागलुपर, कहलगांव, सुल्तानगंज समेत कुल 21 प्वाइंट शामिल हैं. पटना में दानापुर पीपापुल, कुर्जी घाट, कालीघाट, गायघाट व पटना सिटी के मालसलामी घाट शामिल हैं.
बढ़ गये जल में जीवाणु
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की ओर से गंगा जल की जांच 21 जगहों पर की जा रही है. इसकी मॉनीटरिंग मुख्यत: तीन स्तर पर की जा रही है. पहला डीओ ( डिजॉल्व आॅक्सीजन), दूसरा बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) और तीसरा टीसी (टोटल कॉलीफाॅर्म) यानी जीवाणुओं की संख्या के रूप में की जा रही है, जो कि मानक स्तर को भी पार कर गयी है.
रिपोर्ट और प्रस्ताव भेजे
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने रिपोर्ट सेंट्रल बाेर्ड को भेजा है. इसके तहत गंगा जल को प्रदूषित होने से बचाने के लिए उसे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का प्रस्ताव भी भेजा गया है. हालांकि केंद्र द्वारा जारी नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत इस पर काम भी शुरू किया गया है.
गंगा जल पर काम कर रहे डॉ एसएन जायसवाल बताते हैं कि गंगा जल के जीवाणु की संख्या (टीसी) की मात्रा इतनी बढ़ गयी है कि उसका उपचार कर उसे पीने लायक भी नहीं बनाया जा सकता है. इसके लिए सबसे पहले गंगा में प्रवाहित होने वाले नाले की पानी को ट्रीटमेंट करना होगा.
ये हैं प्रदूषण मापने के मानक
डीओ
गंगा के जल में डिजॉल्व ऑक्सीजन यानी पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा 4 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए, लेकिन इसका स्तर मानक से ऊपर 7.5 – 8.5 तक पहुंच गयी है.
बीडीओ
गंगा के जल में बीओडी की मात्रा 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए, जो कि 2- 2.5 मानक के अनुरूप है, लेकिन, ताज्जुब की बात तो यह है कि गंगा जल में मौजूद जीवाणुओं की संख्या इतनी अधिक हो गयी है कि वह पीने के लायक नहीं रहता है. जल में जीवाणुओं की संख्या 500-5000 तक रहेगी, तभी वह जल पीने के लायक बन सकेगा. लेकिन, हकीकत यही है कि पांच हजार से पार कर 17 से 20 हजार तक पहुंच गयी है. यह पूरी तरह खतरनाक है.
टीसी
यदि गंगा के जल में टीसी की मात्रा 500 से अधिक होनी चाहिए. तभी इसका इस्तेमाल स्नान आदि के रूप में किया जा सकता है, जबकि यह मानक से ऊपर है. ऐसे में गंगा का जल स्नान करने के लायक भी नहीं रह गया है.
ये भी जानें : जांडिस व स्किन से जुड़ीं बीमारियां आसान
डिजॉल्व ऑक्सीजन (डीओ) यानि पानी में घुली आॅक्सीजन 4 मिलिग्राम से कम होती है, तो जलीय जीव जंतु के लिए उपयोगी है. वे उस जल में सर्वाइव कर सकते हैं. वहीं, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) आर्गेनिक प्रदूषण है. इसमें कार्बन कंपाउड कारक होते हैं.
इसके अलावा टोटल कॉलीफार्म (टीसी) यानी जीवाणुओं की संख्या 500 एमएनपी से अधिक है, तो जल नहाने लायक नहीं रहता है. वहीं, 5000 एमएनपी से अधिक है, तो उसे पीने लायक बनाया भी नहीं जा सकता है. इस जल के सेवन से जांडिस व स्किन से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं.
इधर, सीवरेज योजना को वर्ल्ड बैंक का है इंतजार
पटना : गंगा को मैली होने से रोकने और सीवरेेज इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए पूरे शहर में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट और सीवरेज नेटवर्क नेटवर्क बनाने की योजना अभी भी वर्ल्ड बैंक की स्वीकृति के लिए लटकी है.
बुडको के अधिकारियों की वर्ल्ड बैंक की टीम के साथ मिलने और डब्ल्यूबी की पड़ताल के बावजूद योजना पर बैंक ने स्वीकृति नहीं दी है. हालांकि बुडको से पूरी योजना तैयार होने के बाद केंद्र की नेशनल मिशन आॅफ गंगा क्लीनिंग एजेंसी ने इस पर मुहर लगा दी है. बुडको के जीएम टेक्निकल ने बताया कि केंद्र की एजेंसी की स्वीकृति के बाद अब वर्ल्ड बैंक को इस पर फाइनल मुहर लगानी है.
क्या होता है एसटीपी
एसटीपी यानी सीवरेज ट्रीटमेंट
प्लांट. एसटीपी में सीवरेज के पानी
को ड्रेनेज और संप हाउस के माध्यम
से गंगा पानी लाया जाता है. प्लांट में
गंदे पानी को साफ किया जाता है.
इसके बाद फिर साफ पानी को ड्रेनेज
की सहायता से पानी गंगा में छोड़ा जाता है.
क्या होगा फायदा
किसी भी सिटी को स्मार्ट सिटी बनने के लिए सीवरेज की बेहतर सुविधा होनी जरूरी है. अगर शहर में सीवरेज नेटवर्क बनता है, तो लोगों को इसकी सुविधा मिलेगी. शौचालय निर्माण में कम लागत आयेगी. लोग ड्रेनेज में सीवरेज पाइप लाइन को नहीं जोड़ेंगे. इसके अलावा गंगा में सीधे गंदा पानी नहीं गिरेगा और गंगा मैली होने से बच जायेगी.
कहां-कहां होने हैं काम
शहर में तीन जगहों पर बढ़े हुए क्षमता के आधार पर एसटीपी का काम किया जाना है. वहीं पूरे शहर में नये सिरे से काम किया जाना है.
स्थान एसटीपी क्षमता लागत
बेऊर 43 एमएलडी 68.16
करमलीचक 37 एमएलडी 77.02
सैदपुर 60 एमएलडी 184.9
स्थान लंबाई लागत
बेऊर 180 किमी 225.77
करमलीचक 97 किमी 170.04
सैदपुर 172.63 किमी 260.63
नोट : लागत करोड़ रुपये में

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