देवाधिदेव महादेव भगवान सदाशिव ओघड़दानी के रूप में प्रख्यात हैं. उनका जो कोई भी सच्चे मन से अराधना करता है, अपने नाम के अनुसार शिव उनके सभी मनोरथों की पूर्ति करते हैं. देवताओं के साथ सबों को अतुल ऐश्वर्य प्रदान करते हैं. उनकी महिमा का कोई अंत नहीं है. वह उमामहेश्वर, अर्द्धनारीश्वर, मृत्युंजय, पंचवक्र, पशुपति, कृतिवास, योगेश्वर आदि रूपों में प्रसिद्ध हैं. एकादश रूद्र, रूद्रानियां, चौसठ यौगिनियां, मातृकाएं, भैरव आदि सहचर हैं. जिनके अध्यक्ष वीरभद्र हैं. उनके साथ माता पार्वती व उनकी सखी जया व विजया रहती हैं. भगवान शिव धर्मावतार नंदी पर आरुढ़ होकर तीनों लोगों का विचरण करते रहते हैं व अपनेभक्तों के हृदय में निवास करते हैं. साधना के अनुसार लोगों को फल प्रदान करते रहते हैं. मुनी, ज्ञानी, ध्यानी, योगी, महात्मा के अलावा नाग व मनुष्य उनकी पूजा कर सिद्धि एवं लाभ प्राप्त करते हैं. ईश्वर के ईश्वर होने के कारण उन्हें महेश्वर कहा जाता है. तीन नेत्रों वाले महामृत्युंजय महादेव का शास्त्रों में ध्यान के लिये निम्नलिखित श्लोक को प्रतिपादित किया गया –
ध्याये नित्यं महेशं रजतं गिरिनिभं चारूचंद्रा वतंसं।
रत्नकल्पोज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।।
पदमासीनं समन्तात स्तुतममरग्नेकृतिं वसानं।
विश्वाद्यं विश्वबीजं, निखिलभयहरं पंचवक्रं त्रिनेत्रम।।
अर्थात जो चांदी के श्वेत पर्वत के समान कांति हैं. जो सुंदर चंद्रमा के आभूषण के रूप में धारण किये हुए हैं. रत्नमय अलंकार से जिनका शरीर उज्वल है, जिनके हाथों में परशु, मृग, वर और अभय है जो प्रसन्न हैं, पद्म के आसन पर विराजमान हैं, देवगणजिनके चारों ओर खड़े होकर स्तुति करते हैं, जो जगत के बीज की उत्पत्ति और समस्त भयों को हरने वाले हैं एवं पांच मुख और तीन नेत्र वाले हैं उन महेष्वर का प्रति दिन ध्यान करें.
शिव जी को प्रसन्न करने के लिए मंत्र उपासना में ॐ नम: शिवाय. पंचाक्षरी मंत्र को सबसे सरल एवं उत्तम मंत्र व सबसे फलदायी माना गया है. जिसे पुरानों में मंत्रराज की संज्ञा दी गई है, जिन्हें अतिफलदायी कहा गया है. इस मंत्र के जाप से सभी पाप, ताप नष्ट हो जाते हैं. भगवान भोलेनाथ अपने अराधक पर सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं. कहा गया है कि इस पंचाक्षरी मंत्र के जाप से मृत्यु भय दूर हो जाता है. मानव दीघार्यु होकर अमरत्व को प्राप्त करता है. अतिवृष्टि, अनावृष्टि, महामारी, आदि की शांति के लिए शिव पंचाक्षरी मंत्र से रूद्राभिषेक कर अभिष्ठ फल की प्राप्ति की जा सकती है.
शिवोपासना में वर्णन मिलता है कि रूद्राष्टाध्यायी का पाठ, पंचोपचार या शोडषोपचार पूजन व जलधारा से विशेष कामना के लिए इक्षुरस पंचामृत आदि से शिव अभिषेक का विधान है. महारुद्र, कोटिरुद्र, अतिरुद्र यज्ञ भी विशेष अवसर पर किये जाते हैं. जिसमें रूद्राध्याय की आहुतियां दी जाती है. वहीं उनको प्रसन्न करने के लिये सबसे सरल मार्ग के संबंध में पुराणों में वर्णित है किकेवल विल्व पत्र, जल, अक्षत, अर्पित कर मुख वाध्य के द्वारा बम बम की ध्वनि निकालने से ही शिव पूजा संपन्न हो जाती है एवं अपने नाम के अनुरूप अवढर दानी के रूप में प्रख्यात भगवान भोलेनाथ अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं एवं अपने भक्तों की सभी अभिलाषाओं की पूर्ति करते हैं. इसिलिये तो उन्हें आशुतोष एवं उदार शिरोमणि कहा जाता है.
पुराण की कथा के अनुसार जब माता पार्वती ने मानवों के कल्याण के लिये उनसे पूछ था कि आपको प्रसन्न करने के लिये सबसे सुगम व सरल मंत्र कौन सा है, जिससे आसानी से आपकी पूजा कर सके तो उन्होंने माता को इसकी जानकारी देते हुए कहा था कि मंत्र राज के रूप में जाना जाने वाला ॐ नम: शिवाय ही ऐसा पंचाक्षरी मंत्र है, जिसका अनुष्ठानपूर्वक जाप करने से मानवों का सहज ही कल्याण करता हूं.