गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने सोमवार शाम को फ़ेसबुक पर इस्तीफ़ा देने की पेशकश की थी.
आनंदीबेन पटेल ने ये जानकारी देते समय उम्र का ज़िक्र किया था. वो नवंबर में 75 साल की हो जाएंगी.
लेकिन गुजरात की राजनीति पर नज़र रखने वाले मानते हैं कि इस्तीफ़े का असल कारण ये था कि गुजरात बीजेपी का ग्राफ़ हर रोज़ नीचे की ओर जा रहा था.
उनके इस फ़ैसले से गुजरात में किसी को आश्चर्य नहीं हुआ. बीजेपी समेत गुजरात में एक बड़ा तबका मानता था कि गुजरात बीजेपी को बचाने के लिए नेतृत्व परिवर्तन के सिवा और कोई चारा नहीं है.
2014 के लोकसभा के चुनाव में एनडीए को बहुमत मिलने के बाद नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री ना बने रहने की बात तो पक्की थी. लेकिन गुजरात में नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में आनंदीबेन पटेल का नाम सामने आने से उस समय ही गुजरात बीजेपी में हड़कंप मच गया था.
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कई वरिष्ठ नेताओं को एक तरफ करके उन्हें मुख्यमंत्री का पद दिया गया था.
इसीलिए जब से आनंदीबेन पटेल ने मुख्यमंत्री का पद संभाला तभी से उनकी स्थिति वन-वुमैन आर्मी जैसी ही गई थी. पार्टी के बहुत कम नेता उनके साथ थे.
आनंदीबेन पटेल को दो साल के कार्यकाल में एक साथ कई मोर्चों पर अकेला ही लड़ना पड़ा.
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सबसे पहले उन पर अपनी बेटी अनार पटेल को वन विभाग की सरकारी ज़मीन सस्ते दामों में देने का आरोप लगा था.
दूसरा आरक्षण को लेकर डेढ़ साल से पाटीदार आंदोलन चल रहा है. अभी यह आंदोलन ख़त्म भी नहीं हुआ था कि दलित आंदोलन शुरू हो गया है.
जानकारों के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का गुट भी आनंदीबेन को हटाए जाने की मांग आला कमान से कर रहा था.
स्पष्ट है कि कई सारे सवालों में घिरी आनंदीबेन और गुजरात बीजेपी का ग्राफ नीचे गिर रहा था.
आनंदीबेन पटेल पर पार्टी के सीनियर नेता ये भी आरोप लगाते थे कि वो पार्टी नेताओं के साथ विचार विर्मश नहीं करती हैं और सभी फ़ैसले ख़ुद ही करती हैं.
गुजरात में पटेल और दलित आंदोलन को उन्होंने गंभीरता से लिया ही नहीं. उसी कारण से पार्टी को काफी नुकसान हुआ है.
पार्टी के नेताओं की भी समझ में आ रहा है कि ऐसा ही चलता रहा तो 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है.
हांलाकि बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता भरत पंड्या ने ज़ोर देकर बीबीसी को बताया कि नवंबर 2016 में आनंदीबेन पटेल 75 साल पूरे कर रही हैं और उसी कारण से उन्होंने इस्तीफ़ा दिया है.
वो इस बात से भी सहमत नहीं हैं कि आनंदीबेन को पटेल और दलित आंदोलनों के चलते इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया गया है.
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