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मोबाइल के जरिये हाथियों से बचाव
रक्षक : व्हिटली अवार्ड विजेता आनंद कुमार का एलिफैंट वार्निंग सिस्टम तमिलनाडु का वालपराय पठार कभी अपने घने जंगलों और इनमें रहनेवाले हाथियों के लिए जाना जाता था, लेकिन अब इस क्षेत्र में इनसानी गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं. इस क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन फैलते चाय के बागानों ने हाथियों का बसेरा छीन लिया है. इसके […]
रक्षक : व्हिटली अवार्ड विजेता आनंद कुमार का एलिफैंट वार्निंग सिस्टम
तमिलनाडु का वालपराय पठार कभी अपने घने जंगलों और इनमें रहनेवाले हाथियों के लिए जाना जाता था, लेकिन अब इस क्षेत्र में इनसानी गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं. इस क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन फैलते चाय के बागानों ने हाथियों का बसेरा छीन लिया है. इसके जवाब में हाथी गाहे-बगाहे अपने जंगल से बाहर आकर चाय बागानों और उससे भी आगे बढ़ कर इनसानी बस्तियों में जा कर जम कर उत्पात मचाते हैं.
इसमें फसलों को तो नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही जान और माल की भी हानि होती है. आखिर निहत्थे इनसानों का विशालकाय हाथियों से कैसा मुकाबला! खैर, न तो हाथी और न ही इनसान इतनी आसानी से अपनी आदत बदलनेवाले हैं, ऐसे में इन दोनों के बीच होनेवाले टकराव को टालने और विध्वंस की सीमा कम करने के लिए वन्यजीव संरक्षक आनंद कुमार ने मोबाइल फोन की मदद से एक अनोखा तरीका ईजाद किया है.
बचपन से ही पशुओं के स्वभाव को जानने-समझने में दिलचस्पी रखनेवाले आनंद को उनके एक प्रोफेसर इस कार्यक्षेत्र में लेकर आये. कुमार बताते हैं, शुरू में मैं बंदरों को देखता और उनके स्वभाव को समझने की कोशिश करता था. इसमें मुझे बड़ा मजा आता था. कुछ दिनों बाद स्थानीय प्लांटेशन कंपनी ने उन्हें इनसानी बस्तियों में हाथियों द्वारा मचाये जा रहे उत्पात पर लगाम कसने की जिम्मेवारी सौंपी.
फिर क्या था? आनंद ने दो और वन्यजीव संरक्षकों के साथ मिल कर एक टीम बनायी और कुछ ही दिनों में उन्होंने इस समस्या का एक दिलचस्प समाधान निकाल लिया. इसके तहत उन्होंने एक ऐसा सिस्टम बनाया, जिसमें हाथियों के दल की सही स्थिति जानी जा सकती है.
यानी हाथी कब जंगल में हैं और कब वे चाय बागानों से होते हुए बस्तियों तक पहुंचे, इस बात का पता जीपीएस ट्रैकर के जरिये टीवी पर बने नक्शे पर पता चलता है. इससे फायदा यह हुआ कि लोग हाथियों की स्थिति को जान कर अपनी दिनचर्या तय कर लेते हैं और उन क्षेत्रों में जाने की अपनी योजना टाल देते हैं, जहां हाथी आनेवाले होते हैं.
इस सिस्टम को तैयार करने में स्थानीय लोगों के साथ-साथ सरकारी सहयोग भी लिया गया. यह सब तो ठीक है कि लोग घर बैठे हाथियों की स्थिति जान कर परिस्थिति से निबटने के लिए सावधान हो जाते हैं, लेकिन जो लोग घर से बाहर हैं या खेतों में काम कर रहे हैं, उन्हें हाथियों के आने की सूचना कैसे दी जाये? इसके लिए आनंद ने हाथियों को ‘ट्रैक’ करनेवाले इस सिस्टम को क्षेत्र में रहनेवाले लोगों के मोबाइल फोन से जोड़ा.
इस प्रणाली में मोबाइल फोन के एक एसएमएस से यूजर्स को इस बात की इत्तिला दी जाती है कि हाथी किस वक्त कहां हैं और यूजर की जगह पर उन्हें पहुंचने में कितना वक्त लगेगा. लोगों को हाथियों से सतर्क करनेवाला यह एसएमएस अंगरेजी और तमिल भाषाओं में आता है.
यही नहीं, मान लीजिए कि आपके पास मोबाइल फोन नहीं है या आप नेटवर्क एरिया से बाहर हैं, ऐसी स्थिति में हाथियों से सावधान करने के लिए क्षेत्र में एक निश्चित ऊंचाई पर सायरन के साथ लाइटें लगी हुई हैं. सायरन के साथ ये लाइटें तब जलती हैं, जब हाथी दो किलोमीटर के दायरे में हों. 2002 में शुरू हुई इस सेवा से अब तक चार हजार से ज्यादा मोबाइल फोन यूजर्स जुड़ चुके हैं और इस तरह कई जानें बचायी जा चुकी हैं.
हाथियों से सावधान करनेवाले इस सिस्टम का फायदा भी देखने को मिल रहा है. तमिलनाडु के वालपराय पठार में, जहां हर साल औसतन पांच लोग हाथियों के उत्पात का शिकार होते थे, वहीं अब यह संख्या घट कर एक व्यक्ति पर सिमट आयी है. इस सफलता से उत्साहित आनंद कुमार, हाथियों से सावधान करनेवाले अपने सिस्टम से अन्य जंगली जानवरों को भी जोड़ कर इसे अन्य राज्यों में भी शुरू करना चाहते हैं.
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