राज्य के मुख्य सचिव ने इस बाबत सभी विभागों के प्रधान सचिवों को लिखा पत्र
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सरकारी बैठकों में स्टील गिलास से पानी पीयेंगे साहब
राज्य के मुख्य सचिव ने इस बाबत सभी विभागों के प्रधान सचिवों को लिखा पत्र भागलपुर : पर्यावरण के लिए मुसीबत बने प्लास्टिक के बोतल के उपयोग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की दिशा में राज्य सरकार ने कदम बढ़ा दिया है. अगर आदेश ने अमलीजामा पहना तो सरकारी आयोजनों से लेकर बैठक तक […]
भागलपुर : पर्यावरण के लिए मुसीबत बने प्लास्टिक के बोतल के उपयोग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की दिशा में राज्य सरकार ने कदम बढ़ा दिया है. अगर आदेश ने अमलीजामा पहना तो सरकारी आयोजनों से लेकर बैठक तक से प्लास्टिक के बोतल(पीने के पानी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला पेट बोतल) गायब हो जाएंगे. यह पहल पर्यावरण के लिहाज बेहतरीन कदम है
भविष्य में सरकारी विभागों में पेट बोतल का इस्तेमाल न हो, इसके लिए सूबे के मुख्य सचिव ने सभी विभागों के प्रधान सचिवों, सचिव व विभागाध्यक्ष को पत्र लिख आदेश दिया है कि अब सरकारी विभागों में पानी का बोतल(पेट बोतल) का इस्तेमाल नहीं किया जायेगा. इसकी जगह पर अधिकारी-कर्मचारी फ्लास्क या शीशा-स्टील के गिलास का इस्तेमाल करेंगे. 27 जुलाई को बिहार के उद्योग निदेशक ने उद्याेग मित्र पटना के सीइओ, उप विकास अधिकारी शिल्प अनुसंधान, महाप्रबंधक व सभी जिला विकास केेंद्रों को गत 27 जुलाई को जारी पत्र में कहा है कि आदेश का पूर्णरूपेण पालन कराना वे अपने स्तर सुनिश्चित करें.
इसलिए लगी है पाबंदी : गौरतलब हो कि मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने सभी प्रधान सचिव, सचिव व सभी विभागाध्यक्षों को पूर्व में भी पत्र लिख चुके हैं कि वे यह सुनिश्चित करें कि विभागीय बैठकों में पेट बोतलों का किसी भी सूरत में इस्तेमाल न किया जाये. पेट बाेतल आम जिंदगी में इस्तेमाल होने वाले ऐसे नाॅन बायो-डिग्रेडेबल उत्पाद हैं, जिनका उपयोग पर्यावरण के लिहाज से हानिकारक है. केंद्र सरकार 40 माइक्रोन से कम मोटाई के प्लास्टिक थैले पर प्रतिबंध लगा चुकी है, किंतु पेट बोतल का उपयोग अभी भी धड़ल्ले से हो रहा है, जिसे समाप्त करना पर्यावरण के लिहाज से जरूरी होगा.
एक बैठक में खर्च होता है 500 लीटर पानी : अगर 100 व्यक्तियों वाला एक बैठक होता है और उसमें पेट बोतल का इस्तेमाल किया जाता है, तो केवल पेट बोतल से ही 18 किलो कार्बन डाइऑक्साइड, तीन किलो बाॅयो-डिग्रेडबल कचरे निकलेगा. साथ ही इन बोतलों के उत्पादन पर 500 लीटर पानी लगेगा.
प्लास्टिक(पेट) बोतलों के उपयोग से ये हो रहा नुकसान
पेट बोतलों के निर्माण में बाइस्फेनल ए (बीपीए) नामक रसायन का प्रयोग किया जाता है, जो मानव ग्रंथियों के लिए हानिकारक है.
पेट बोतलों के ढक्कन रिसाइकिल नहीं हो पाते हैं. इसे जानवरों द्वारा खाये जाने का खतरा होता है. हर साल प्लास्टिक खाने के कारण 10 लाख से अधिक पशु-पक्षी व मछलियों की माैत हो जाती है.
एक पेट बोतल के निर्माण में छह किलो कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन वायुमंडल में होता है. इसके अलावा एक लीटर क्षमता का पेट बोतल बनाने में पांच लीटर पानी खर्च होता है.
विश्व के कुल तेल खपत का लगभग आठ प्रतिशत तेल सिर्फ प्लास्टिक के निर्माण पर खर्च होता है.
कुल कचरे का चार-पांच प्रतिशत भाग प्लास्टिक का होता है. यहीं कचरा बिखर कर नालियों में इकट्ठा होता है, जो नालियों, गटर व सीवेज को ब्लाॅक कर देता है.
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