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दूसरा विश्व युद्ध : 70 वर्ष पूरे, जर्मनी में जहां-तहां जमीन के भीतर मिल रहे बम

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्रों ने यूरोप पर जम कर बमबारी की थी. कहा जाता है कि मित्र राष्ट्रों ने करीब 2.7 मिलियन टन बम गिराये थे. इसमें से कई बमों के फ्यूज को इस तरह से डिजाइन किया गया था, जिससे वह गिराने के कुछ घंटों या कुछ दिनों […]

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्रों ने यूरोप पर जम कर बमबारी की थी. कहा जाता है कि मित्र राष्ट्रों ने करीब 2.7 मिलियन टन बम गिराये थे. इसमें से कई बमों के फ्यूज को इस तरह से डिजाइन किया गया था, जिससे वह गिराने के कुछ घंटों या कुछ दिनों बाद फटे. यह भय फैलाने की नीति का हिस्सा था, जिसके तहत शहर अपने को व्यवस्थित नहीं कर पाये. मित्र राष्ट्रों ने आधे से ज्यादा बम जर्मनी पर गिराये थे. उनमें से दस फीसदी बम फटे ही नहीं थे.
जर्मनी में किसी को पता नहीं कि ये बम कहां हैं. ये कभी किसी के घर के नीचे मिल जाते हैं, तो कभी स्कूल के पास. सबसे ज्यादा बम ओरानबर्ग में मिलते हैं. पिछले हफ्ते, जहां कभी बर्लिन की दीवार थी, वहां से एक मील की दूरी पर रम्मेल्सबर्ग में निर्माण कार्य में लगे एक मजदूर को 550 पौंड का एक अमेरिकी बम दिखा. उसका फ्यूज निकला हुआ नहीं था. इसे मित्र राष्ट्र ने गिराया था. 70 साल से यह बम सोया हुआ था, लेकिन इसका फ्यूज खराब हो रहा था और वह कभी भी फटने की स्थिति में आ गया था.हर साल इस तरह के एक या दो बम फटते हैं. बमों का इस तरह से मिलना जर्मनी के लोगों के लिए आम बात है.
वहां बम को निष्क्रिय करने वाले स्क्वायड को केएमबीडी कहा जाता है. कहा जाता है कि वह हर वर्ष 2000 टन बमों को निष्क्रिय करता है. इसमें सबसे ज्यादा बम ओरानबर्ग में मिलते हैं, लेकिन बमों का मिलना अब इस शहर की आदत में शुमार हो गया है. वहां कोई हड़बड़ाहट नहीं दिखती है. जब भी बम मिलने की खबर आती है, पूरा सिस्टम अपने आप समन्वय में काम करने लगता है. शहर की जनता ने भी इसके साथ जीना सीख लिया है.
केएमबीडी पर वर्ष 2015 में ‘द बांब हंटर’ नाम से फिल्म बनी थी. ये बम कहां मिलेंगे, किसी को पता नहीं. एक बार वोक्सवैगन के मुख्यालय के नीचे 550 पाउंड का बम मिला था. जब बम का पता चलता है, उस समय पूरा शहर स्थिर हो जाता है. वर्ष 2011 में कोबलेंज शहर में एक नदी के किनारे दस फुट का दो टन वजनी बम मिला था. उस पूरा शहर थम गया था. करीब 45000 लोगों को हटाया गया था. जेल, अस्पताल, होटल और ट्रेन, सभी जगह से लोगों को हटा लिया गया था.
सिर्फ जर्मनी ही इस तरह की मुसीबत को नहीं झेल रहा है. पहले और दूसरे विश्व युद्ध के वैसे बम, जिनका विस्फोट नहीं हुआ, लंदन, फ्रांस और बेल्जियम में भी मिले हैं. विशेषज्ञ इसे खतरनाक बताते हैं.
पांच करोड़ से ज्यादा लोगों की हुई थी मौत
1939 से 1945 तक चला था दूसरा विश्व युद्ध. इसमें लगभग 70 देशों की थल, जल और वायु सेनाओं ने हिस्सा लिया था. इस युद्ध में विश्व दो भागों में बंट गया था – मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र. यह मानव इतिहास का सबसे ज्यादा घातक युद्ध साबित हुआ. इस महायुद्ध में करीब पांच करोड़ लोगों की जानें गयीं थी. विनाश की सबसे बड़ी वजह यह थी कि इसमें आम नागरिकों का भी संहार और परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हुआ था.

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