फिल्म ‘शोले’ का डायलॉग ‘सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जायेगा’ सुनकर तुरंत आपके दिमाग में अमजद खान का चेहरा आ जाता है. अमजद खान का जन्म 12 नवंबर 1940 को हुआ था. उन्हें कला विरासत के रूप में मिली थी उनके पिता जयंत फिल्म इंडस्ट्री के खलनायक रह चुके थे. उन्होंने बतौर कलाकार अपने सिने करियर की शुरुआत फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ से की थी.
वर्ष 1973 में आई फिल्म ‘हिंदुस्तान की कसम’ में उन्होंने एक अभिनेता के तौर पर काम किया लेकिन इस फिल्म से उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिली. अमजद खान को एक थियेटर में परफॉर्म करते देख पटकथा लेखक सलीम खान ने अपनी फिल्म ‘शोले’ में गब्बर के लिए उनके सामने प्रस्ताव रखा जिसे अमजद खान ने स्वीकार कर लिया.
‘शोले’ में अपने किरदार गब्बर को लेकर अमजद खान ने खूब वाहवाही लूटी. इस किरदार ने उन्हें खलनायकी का बेताज बादशाह बना दिया. इस फिल्म के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अभिनय से दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई रखी. वर्ष 1977 में उन्होंने फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में महान निर्देशक सत्यजीत रे के साथ काम किया. इस फिल्म में भी दर्शकों ने उन्हें बेहद पसंद किया.
उन्होंने पर्दे पर अपने खलनायकी वाले किरदारों के साथ-साथ हास्य किरदारों से भी दर्शकों का मनोरंजन किया. दर्शक उन्हें उनके नाम से कम और गब्बर सिंह के नाम से ज्यादा जानते थे. फिल्म ‘परवरिश’ में उन्होंने एकबार फिर दर्शकों को अपनी खलनायकी से हैरान किया. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना ने भी मूख्य भूमिका निभाई थी. फिल्म ‘मुकद्दर का सिकंदर’ उनकी दूसरी सबसे ज्यादा सफल फिल्मों में एक माने जाते हैं.
वर्ष 1979 में आई फिल्म ‘सुहाग’ भी उनकी सफल फिल्मों में से एक थी. फिल्म ‘कालिया’ अमजद खान के करियर की यादगार फिल्मों में से एक मानी जाती है. फिल्म ‘यराना’ में उन्होंने अमिताभ बच्चन के दोस्त की भूमिका निभाई थी. फिल्म में वे पॉजिटिव रोल में थे. फिल्म के गानों को भी दर्शकों ने बेहद पसंद किया था.
लगभग तीन दशकों तक अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों में राज करनेवाले अभिनेता 27 जुलाई 1992 को इस दुनिया को अलविदा कह गये.