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जानें! बाबा नगरी देवघर मंदिर प्रांगण के अन्य मंदिरों के बारे में

देवघर में श्रावणी मेले की शुरुआत के बाद से ही कांवरियों की भीड़ बाबा भोलेनाथ पर गंगाजल चढ़ाने के लिए उमड़ पड़े हैं. हर रोज करीब 30 से 40 हजार श्रद्धालु बाबा पर जलार्पण कर रहे हैं. विश्‍वप्रसिद्ध श्रावणी मेले में पूरे माह करोड़ों कावरिये बाबा को जल अर्पित करते हैं. केवल देश से ही […]

देवघर में श्रावणी मेले की शुरुआत के बाद से ही कांवरियों की भीड़ बाबा भोलेनाथ पर गंगाजल चढ़ाने के लिए उमड़ पड़े हैं. हर रोज करीब 30 से 40 हजार श्रद्धालु बाबा पर जलार्पण कर रहे हैं. विश्‍वप्रसिद्ध श्रावणी मेले में पूरे माह करोड़ों कावरिये बाबा को जल अर्पित करते हैं. केवल देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बाबा के भक्त यहां जल चढ़ाने आते हैं. श्रावण मास में श्रद्धालु सुल्तानगंज से कांवर पर गंगाजल लेकर बाबा नगरी देवघर आते हैं. यहां बाबा भोलनाथ का उसी जल से जलाभीषेक करते हैं. श्रावणी मेले के दौरान सुरक्षा के पुख्‍ता इंतजाम किये गये हैं. पुलिस चप्पे-चप्पे पर नजर रख रही है. मुख्‍य मंदिर परिसर में भगवान भोलेनाथ और माता पावर्ती के मंदिरों के अलावे की कई देवी-देवताओं के मंदिर स्थापित हैं. आइए जानते हैं परिसर के अंदर के अन्य मंदिरों के बारे में –

पार्वती मंदिर :

मुख्य मंदिर के ठीक सामने पूर्व की ओर पश्चिममुखी पार्वती मंदिर का चबूतरा अन्य मंदिरों की अपेक्षा ऊंचा है. मंदिर के अन्य दो प्रतिमाएं हैं. बायें ओर पार्वती और दायें ओर मां दुर्गा की प्रतिमा है.

जगत जननी मंदिर :

पार्वती मंदिर के दक्षिण में जगत जननी मंदिर है. जगत जननी की मूर्ति आराधना की मुद्रा में ध्यानावस्थित है. इस मंदिर की दूसरी मूर्ति वीणाधारी शिवजी की है. शिवजी की मूर्ति के अतिरिक्त माता श्यामा, भगवान कार्तिकेय, माता काली की चतुर्भुज मूर्ति तथा माता गंगा व माता यमुना की भी मूर्तियां हैं.

गणेश मंदिर :

जगत जननी मंदिर के पश्चिम में उत्तराभिमुख गणेश मंदिर है. विघ्नविनाशक गणेश जी की चित्ताकर्षक प्रतिमा है. इसमें मूर्तिकला की मराठी शैली का प्रभाव दिखता है.

ब्रह्मा मंदिर :

गणेश मंदिर के पश्चिम दिशा में उत्तराभिमुख यह मंदिर है. यह और मंदिरों की अपेक्षा कुछ छोटा है. सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा मंडलाकार शिव के बीच स्थित है.

संध्या देवी मंदिर :

ब्रह्मा मंदिर के पश्चिम में यह मंदिर भी उत्तराभिमुख है. इसमें स्थापित भगवती संध्या देवी की मूर्ति भग्नावस्था में है. कहा जाता है कि महामाया कामाख्या ही संध्या देवी के नाम से विख्यात है. महर्षि वशिष्ठ के शाप से कामाख्या देवी बैद्यनाथधामचली गयी और संध्या देवी के नाम से यहां विख्यात हुईं.

काल भैरव मंदिर :

यह मंदिर संध्या देवी मंदिर से पश्चिम दिशा में उत्तराभिमुख स्थित है. इसके अंदर काले चमकीले पत्थर से बनी भगवान काल भैरव की विशाल एवं भव्य मूर्ति स्थापित है. पुरातात्विकों के अनुसार, यह मूर्ति बुद्धकालीन है.

हनुमान मंदिर :

काल भैरव मंदिर के पश्चिम में हनुमान मंदिर स्थित है. यह मंदिर उत्तराभिमुख है. मंदिर में कोई दरवाजा नहीं है. कहा जाता है कि इस मंदिर का उपयोग नाथ सिद्ध लोग करते थे.

मनसा मंदिर :

हनुमान मंदिर से पश्चिम में मनसा मंदिर स्थित है. यह भी उत्तराभिमुख बना हुआ है. मंदिर के अंदर मनसा देवी पद्मासन मुद्रा में है.

सरस्वती मंदिर :

यह मंदिर हनुमान मंदिर से पश्चिम में स्थित है. उत्तराभिमुख इस मंदिर से पहले माता सरस्वती और माता लक्ष्मी की प्रतिमाएं थीं. दोनों प्रतिमाएं के खंडित होने पर उन्हें हटा दिया गया. उनके स्थान पर वीणापाणि माता सरस्वती की आकर्षक की दुग्धधवल नयी प्रतिमा स्थापित की गयी है.

सूर्य मंदिर :

यह मंदिर सरस्वती मंदिर से पश्चिम में है. मंदिर के अंदर भगवान सूर्य की भव्य मूर्ति स्थापित है. कहा जाता है कि पहली मूर्ति को तस्करों ने चुरा लिया था. मूर्ति की चोरी हो जाने पर तत्कालीन सरदार पंडा भवप्रीतानंद ओझा ने सत्संग नगर के एकशिल्पी से दूसरी मूर्ति बनवाकर प्रतिस्थापित की थी.

मां बंगला मंदिर :

यह मंदिर सूर्य मंदिर के उत्तर में है और पूर्वाभिमुख है. दुष्टों का संहार करनेवाली मां बगला घोड़े पर आरूढ़ है. उनके एक हाथ में सोंटा है और दूसरा हाथ दुष्टों के दलन करने की मुद्रा में हैं.

श्रीराम-लखन, जानकी मंदिर :

यह मंदिर मां बंगलामुखी मंदिर से उत्तर दिशा में स्थित है और पूर्वाभिमुख है. मंदिर में श्रीराम, लक्ष्मण, जानकी की सुंदर प्रतिमाओं के नीचे भरत और शत्रुघ्‍न की छोटी प्रतिमाएं बनायी गयी हैं.

गंगा-जाह्न्वी मंदिर :

श्रीराम आनंद भैरव मंदिर के बीच प्रांगण में दक्षिणाभिमुखी गंगा जाह्न्वी मंदिर स्थित है. मंदिर का दरवाजा इतना छोटा है कि श्रद्धालुओं को झुक कर जाना पड़ता है.

आनंद भैरव मंदिर :

यह मंदिर राम मंदिर से उत्तर दिशा में है और पूर्वाभिमुख है. मंदिर के अंदर आनंद भैरव की एक विशाल और भव्य मूर्ति स्थापित है. मूर्ति का निर्माण काले पत्थर से किया गया है.

गौरी शंकर मंदिर :

यह मंदिर आनंद भैरव मंदिर से पूर्व दिशा में है. मंदिर दक्षिणाभिमुख है. मंदिर के अंदर गौरी शंकर की युगल मूर्ति बनी हुई है, जो संगमरमर पत्थर की है. मूर्ति कलात्मक है.

नर्मदेश्वर महादेव मंदिर :

गौरी शंकर मंदिर के पीछे तारा मंदिर के बगल में भीतरी खंड के दायें और नर्मदेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण किया गया है. यह मंदिर दक्षिणाभिमुख है. मंदिर के अंदर भगवान नर्मदेश्वर महादेव की मूर्ति स्थापित है.

तारा मंदिर :

गौरी शंकर मंदिर के पूर्व तारा मंदिर स्थित है. मंदिर दक्षिणाभिमुख है. मंदिर के अंदर मुंडमालाधारिणी माता तारा की मूर्ति ऊंचे चबूतरे पर एक लौह प्रकोष्ठ में स्थापित है.

काली मंदिर :

यह मंदिर दक्षिणाभिमुख है. मंदिर के अंदर एक ऊंचे चबूतरे पर रणचंडी माता काली सुप्त शिव के ऊपर आसीन हैं. मंदिर पालयुगीन वास्तुकला की शैली में निर्मित है.

अन्नपूर्णा मंदिर :

बंगाल वास्तुकला शैली में निर्मित माता अन्नपूर्णा मंदिर दक्षिणाभिमुख है. प्रतिमा खंडित हुईं और आशीर्वाद प्रदान करने की मुद्रा में हैं.

लक्ष्मीनारायण मंदिर :

पश्चिमाभिमुख यह मंदिर प्रांगण के अन्य मंदिरों की अपेक्षा भव्य, विशाल और विस्तृत है. मंदिर के अंदर माता लक्ष्मी के साथ शंख, चक्र, गदा और पद्मधारी भगवान श्रीहरि की मूर्ति लगी हुई है. इसे देखने से लगता है कि इसे शिव मंदिर के समान ऊंचा करने की योजना रही होगी.

नीलकंठ मंदिर :

यह मंदिर लक्ष्मीनारायण मंदिर के दक्षिण में स्थित है. मंदिर पश्चिमाभिमुख है. मंदिर के अंदर भगवान नीलकंठ महादेव घोड़े पर सवार हैं. उनके बगल में शुक्र , शनि और दंडपाल की मूर्तियां हैं.

नंदी बैल बसहा:

शिव मंदिर के बाहर पूर्वी दरवाजे के बायीं ओर नंदी बैल बसहा की तीन मूर्तियां स्थापित हैं. ये मूर्तियां पत्थर की बनी हुई हैं.

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